सम्मेद शिखरजी को लेकर सड़कों पर क्यों है जैन समुदाय?
देश के कई शहरों में इन दिनों अल्पसंख्यक जैन समुदाय के लोग सड़क पर हैं। दिल्ली से लेकर मुंबई, राजस्थान, झारखंड के कई शहरों में इस समुदाय के लोग जोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
इन प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में जैन समुदाय के पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल हुए हैं। इस मामले में दिल्ली में इंडिया गेट में भी जैन समुदाय के लोग बड़ा प्रदर्शन कर चुके हैं। यह जानना जरूरी होगा कि उनके विरोध प्रदर्शन की वजह क्या है।
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने कुछ दिन पहले गिरिडीह जिले में स्थित सम्मेद शिखरजी नाम के धार्मिक स्थल को पर्यटन स्थल बनाने के संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया था। लेकिन जैन समुदाय का साफ कहना है कि सम्मेद शिखरजी कोई पर्यटक स्थल नहीं है यह उनकी धार्मिक और पवित्र भूमि है। उनका कहना है कि सम्मेद शिखर जी को धार्मिक स्थल ही बनाए रखा जाना चाहिए और इसे पर्यटन स्थल नहीं बनाया जाना चाहिए।
यह मामला अल्पसंख्यक आयोग के पास भी पहुंच चुका है। साथ ही राष्ट्रपति को भी इसे लेकर ज्ञापन भेजा जा चुका है। कुछ दिन पहले झारखंड में इसे लेकर जैन समुदाय के लोगों ने एक दिन का बंद भी रखा था।
यह भी जानना जरूरी होगा कि सम्मेद शिखरजी जैन समुदाय के लिए इतना अहम क्यों है और वे क्यों इस धार्मिक स्थल को पर्यटन स्थल बनाए जाने के खिलाफ हैं।
सम्मेद शिखरजी झारखंड के गिरिडीह जिले की पारसनाथ पहाड़ियों पर स्थित है। यह जैन धर्म के दिगंबर और श्वेतांबर समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। जैन समुदाय का कहना है कि जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने इस जगह तपस्या के बाद निर्वाण प्राप्त किया था और सम्मेद शिखरजी जैन समुदाय की आत्मा है।
सम्मेद शिखरजी में शिखरजी शब्द का मतलब है कि यह सम्मानित शिखर है। पारसनाथ पहाड़ी का नाम जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नाम पर रखा गया है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ को भी यहां पर मोक्ष मिला था।
विहिप, ओवैसी भी समर्थन में
जैन समुदाय के इस विरोध प्रदर्शन को विश्व हिंदू परिषद का भी समर्थन मिला है। एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी जैन समुदाय की इस मांग का समर्थन किया है और झारखंड सरकार से इस फैसले को रद्द करने की मांग की है।जैन समुदाय के लोग गुजरात के पलिताना में स्थित उनके मंदिर में हाल ही में हुई तोड़फोड़ का भी विरोध कर रहे हैं।
2019 का है नोटिफिकेशन
इस मामले में विवाद फरवरी, 2019 में झारखंड की तत्कालीन बीजेपी सरकार के पर्यटन विभाग के द्वारा जारी नोटिफिकेशन के बाद शुरू हुआ था। इस नोटिफिकेशन में पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटक स्थल घोषित किया गया था। इसके अलावा राज्य में कई और जगहों को भी पर्यटक स्थल बनाने की बात कही गई थी। इसके पीछे मकसद राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देना बताया गया था।
केंद्र सरकार ने अगस्त, 2019 में राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर पारसनाथ अभ्यारण्य के आसपास के क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन घोषित कर दिया और इसके साथ ही यह अनुमति भी मिल गई कि यहां पर विकास कार्य कराए जा सकते हैं।
जुलाई, 2022 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य सरकार की नई पर्यटन नीति को लागू किया। इसमें कहा गया कि पारसनाथ पहाड़ी को एक धार्मिक पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा और इसके साथ ही देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर और रामगढ़ जिले में रजरप्पा मंदिर को भी इसी तर्ज पर वितरित किया जाएगा। राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी करने के बाद दिसंबर में जैन समुदाय के लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया।
जैन समुदाय की मांग है कि इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार दोनों को अपने-अपने नोटिफिकेशन को वापस लेना चाहिए। जैन समुदाय के जोरदार प्रदर्शन के बाद कहा जा रहा है कि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार इस संबंध में कोई फैसला ले सकती है।
क्या कहना है जैन समुदाय का?
जैन समुदाय के लोगों का कहना है कि सम्मेद शिखरजी को पर्यटक केंद्र घोषित किए जाने से इसकी पवित्रता भंग हो जाएगी। उनका कहना है कि वे लोग विकास के खिलाफ नहीं हैं लेकिन धार्मिक स्थल की मर्यादा से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। जैन समुदाय का कहना है कि उनके सभी तीर्थ स्थलों की सुरक्षा होनी चाहिए।
सुज्ञेयसागर महाराज का निधन
जैन समुदाय का आक्रोश इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि झारखंड सरकार के फैसले के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठे 72 साल के जैन संत सुज्ञेयसागर महाराज का निधन हो गया है। वह राजस्थान के बांसवाड़ा के रहने वाले थे और सम्मेद शिखरजी को पर्यटक केंद्र घोषित किए जाने के विरोध में अनशन पर बैठे थे।
जैन समुदाय ने चेतावनी दी है कि उनकी मांग के संबंध में 15 जनवरी तक फैसला ले लिया जाए वरना उसके बाद वे शांत नहीं बैठेंगे।