राजस्थान: क्या "चन्नी" की तलाश कर रहा है कांग्रेस आलाकमान?
भले ही अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से माफी मांग ली है। लेकिन राजस्थान का विवाद फिलहाल थमा नही है। जल्दी थम जाएगा, इसकी दूर दूर तक कोई संभावना भी नजर आती है। दिल्ली दरबार संकट से निपटने की मुकम्मल योजना तैयार करने में जुटा हुआ है। आलाकमान इस बार गहलोत और सचिन पायलट की परस्पर सहमति से ऐसा रास्ता खोजने में जुटा है जिसके क्रियान्वन से दोनो के बीच टकराहट में विराम लग सके।
विवाद थामने की गरज से आलाकमान राजस्थान में सीएम की कुर्सी पर गहलोत और पायलट के स्थान पर किसी तीसरे व्यक्ति को बैठाने पर विचार कर रहा है। तीसरा नाम बुजुर्ग नेता हेमाराम चौधरी का हो सकता है। इस नाम पर गहलोत गुट के विधायकों को ज्यादा आपत्ति नही होगी।
यद्यपि गहलोत गुट की प्रमुख शर्त है कि सीएम 102 विधायको में से ही बनाया जाए। इसके अलावा यह शर्त भी रखी हुई है कि नया मुख्यमंत्री गहलोत की पसंद का होना चाहिए।
इस हकीकत से बिल्कुल इनकार नही किया जा सकता है कि गहलोत और पायलट के बीच जबरदस्त रूप से तलवार खिंच चुकी है। राजस्थान में भले ही कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाए। लेकिन गहलोत को पायलट और पायलट को गहलोत कतई स्वीकार नही है।
यदि गहलोत सीएम बने रहते है तो पायलट गुट खमोश नही बैठने वाला नही है। यदि पायलट को सीएम की कमान सौंपी जाती है तो गहलोत को यह कतई स्वीकार नही होगा। किसी तरह पायलट सीएम बन भी जाते है तो गहलोत का फिर एकमात्र काम होगा, उनकी कारसेवा करना।
मान लिया कि आलाकमान के दबाव और समझाइश से पायलट के नाम पर गहलोत सहमत हो भी जाते हैं तो उनके समर्थक विधायक फिर से बगावत का बिगुल बजा सकते हैं। अगर इस दफा विधायक बगावत पर उतर आए तो उनको नियंत्रित करना बेहद कठिन होगा।
गहलोत के जीवनकाल में यह पहली बार हुआ है कि किसी ने जबरन उनसे कुर्सी छीनने की कोशिश की। पायलट की वजह से गहलोत को भले ही विधायको को भड़काने के लिए मजबूर होना पड़ा हो। लेकिन वे ताजिंदगी इस बात को कभी नही भूल पाएंगे कि पायलट की वजह से उनको न केवल आलाकमान से माफी मांगनी पड़ी बल्कि पूरे देश के सामने उन्हें बुरी तरह शर्मिंदा होना पड़ा। पिछले 45 वर्षों में जो इज्जत गहलोत ने अर्जित की थी, एक ही झटके में उसे गंवाना पड़ा। भले ही गहलोत ने नियोजित तरीके से ड्रामा किया हो, लेकिन पायलट के कारण गहलोत की उजली छवि पर स्थायी दाग लग गया है।
हेमाराम चौधरी
नई परिस्थितियों में तीसरा नाम हेमाराम चौधरी का उभरकर आया है जिस पर आलाकमान की ओर से गंभीरतापूर्वक विचार किया जा रहा है। गहलोत की पसंद के उम्मीदवार सीपी जोशी और गोविंद सिंह डोटासरा के नाम पायलट गुट को मंजूर नही है। हालांकि हेमाराम चौधरी को पायलट गुट का व्यक्ति माना जाता है। बगावत करके मानेसर जाने वालों में वे भी शरीक थे। लेकिन गहलोत गुट को इनके नाम पर इसलिए आपत्ति नहीं होगी, क्योकि वर्तमान में वे गहलोत मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री है तथा उनकी उज्ज्वल छवि है।
दरअसल आलाकमान को किसी चन्नी की तलाश है। हेमाराम चौधरी से बेहतर कोई और कोई चन्नी हो ही नही सकता। हेमाराम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे जाट है। इसके अलावा वे विध्वंसकारी बिल्कुल भी नही है। वे गुढ़ामलानी से छह बार विधायक निर्वाचित हो चुके है। गहलोत के पिछले कार्यकाल में वे राजस्व मंत्री और 2008 में विपक्ष के नेता रह चुके है। उनकी छवि ईमानदार नेताओ में शुमार है।
हेमाराम को सीएम बनाकर गहलोत जाटो पर भी एहसान जता सकते है। गहलोत पर आक्रामक दिव्या मदेरणा जैसी विधायक को शांत होकर बैठना पड़ेगा। मध्यावधि चुनाव की धमकी देने वाले गोविंदराम मेघवाल सरीखे विधायको को चुप्पी साधनी पड़ेगी। पायलट गुट भी इनके नाम पर तुरन्त सहमत हो जाएगा। इन परिस्थितियों में गहलोत और पायलट का क्या होगा, अभी कुछ कहना बेमानी होगा।