आरएसएस अपने भगवा प्रेम के कारण तिरंगे को लेकर हमेशा विवादों में रहा है। कुछ ऐसी भी घटनाएं हुईं हैं, जिनसे पता चलता है कि संघ तिरंगे को लेकर गंभीर नहीं रहा और कई बार तो उसने तिरंगा लहराने का विरोध तक किया है। अब जब पीएम मोदी ने हर घर तिरंगा का आह्वान किया है तो आरएसएस को भी खुद का भगवा सोशल मीडिया पर बदलना पड़ा। लेकिन अब यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या तिरंगे को इस तरह अपनाकर संघ अपने पुराने दाग धोना चाहता है।
नागपुर की घटना और संघ
नागपुर कोर्ट का केस नंबर 176 बहुत मशहूर है। इसकी तहकीकात करने पर आपको आरएसएस की असलियत पता चलेगी। अगस्त 2013 में नागपुर की एक निचली अदालत ने 2001 के एक मामले में दोषी तीन आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया था। इन तीनों आरोपियों बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी का कथित अपराध मात्र इतना था कि वे 26 जनवरी 2001 को नागपुर के रेशमीबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय में घुसकर गणतंत्र दिवस पर तिरंगा झंडा फहराने की कोशिश में शामिल थे। संघ इस कोशिश पर इतना तिलमिला गया कि तीनों युवकों पर मुकदमा दर्ज करा दिया। 12 साल तक वो युवक संघ के निशाने पर बने रहे। अंत में संघ ने खुद ही इस घटना से पीछा छुड़ाना चाहा, क्योंकि इस घटना से साफ हो गया था कि संघ किसी भी कीमत पर अपने नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराने देना चाहता। इतिहास में यह मामला केस नंबर 176 के रूप में मशहूर है।
कांग्रेस ने इस मामले को लगातार उठाया। संघ बैकफ़ुट पर आ गया।आरएसएस यह समझ गया कि इस मुकदमे का हवाला देकर उसकी देश के प्रति निष्ठा पर सवाल खड़े किये जायेंगे। इसके बाद आरएसएस ने वो शिकायत वापस ले ली और संघ मुख्यालय पर तिरंगा फहराने वाले वो युवक बरी हो गए। इसके बाद संघ ने तिरंगे को लेकर ऐसा प्रचार किया कि अब ऐसा लगता है कि देश को संघ ने आज़ाद कराया था।
उदयपुर की घटना और संघः उदयपुर कोर्ट पर 14 दिसंबर 2017 को भगवा झंडा लहाराया गया। आरोप है कि आरएसएस के संगठनों से जुड़े लोगों ने फहराया था। हालांकि उस कोर्ट पर तिरंगा पहले से ही लहरा रहा था। दरअसल, एक मुस्लिम की हत्या में शंभूनाथ रैगर को गिरफ़्तार किया गया था। उसी घटना के विरोध में संघ के फ्रंटल संगठनों ने उदयपुर में आंदोलन किया। उसके आह्वान पर उसके कार्यकर्ता भगवा झंडा हाथ में लेकर उदयपुर कोर्ट पहुंचे और कोर्ट की बिल्डिंग पर चढ़कर तिरंगा उतारकर भगवा लहरा दिया। इस घटना में सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। यह घटना नागपुर की घटना से कम गंभीर नहीं है, लेकिन इस घटना पर प्रशासनिक अधिकारियों ने भी हाथ खींच लिए।
कासगंज की घटना
पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाने वाले भारतीय सेना के सूबेदार वीर अब्दुल हमीद की शहादत को हर साल 26 जनवरी को यूपी के कासगंज में वीर अब्दुल हमीद चौक पर याद किया जाता है। 26 जनवरी 2018 को जब यह कार्यक्रम चौक पर चल रहा था तो उसी समय आरएसएस से जुड़े संगठनों के युवक तिरंगा यात्रा लेकर पहुँच गए। उन्होंने वहाँ समुदाय विशेष के खिलाफ नारे लगाए। इसके बाद वहाँ ज़बर्दस्त हिंसा हुई। कासगंज प्रशासन ने जानबूझकर तिरंगा यात्रा को उस चौक तक आने की इजाज़त दी थी, जबकि वीर अब्दुल हमीद पर हर साल वहां कार्यक्रम होता था। जिसमें सभी समुदाय के लोग तिरंगा लहराते थे।
2001 की वजह से 2002 में बदला संघ
आरएसएस ने सिर्फ दो बार 1947 और 1950 में नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा फहराया। उसके बाद पांच दशक बीत गए। तिरंगा नागपुर मुख्यालय से गायब रहा। हालांकि इसके जवाब में संघ ने कई तर्क गढ़े हुए हैं। लेकिन जब 2001 की घटना (केस नंबर 176) के लिए संघ की चौतरफा थू-थू होने लगी और कांग्रेस ने भी अटैक किया तो आरएसएस ने चुपचाप 26 जनवरी 2002 को नागपुर मुख्यालय पर झंडा फहरा दिया और संघ समर्थित मीडिया ने इसका जोरशोर से प्रचार कर दिया। बहुत साफ है कि अगर 2001 का मुकदमा सामने न आया होता तो आरएसएस 2002 में कभी भी तिरंगा नहीं फहराता।
संघ के बदलते जुमलेः मौजूदा वक्त में आरएसएस जिस तरह से तिरंगे का जोरशोर से प्रचार कर रहा है, 2015 में उसके विचार कुछ और थे। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक चेन्नै (मद्रास) में 2015 में एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई थी, जिसमें आरएसएस के लोगों ने कहा था कि तिरंगे पर एकमात्र ध्वज भगवा ही होना चाहिए था, क्योंकि अन्य रंग साम्प्रदायिक विचार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
खतरनाक सपना
कर्नाटक के पूर्व मंत्री और आरएसएस के पूर्व प्रचारक के.एस. ईश्वरप्पा ने 29 मई 2022 को कहा था कि संघ का ध्वज एक दिन राष्ट्रीय ध्वज बनेगा। भगवा झंडे का सम्मान इस देश में हजारों वर्षों से हो रहा है। बता दें कि ईश्वरप्पा बाद में करप्शन के आरोपों से घिरे और उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया। ईश्वरप्पा अब फिर से संघ का काम देख रहे हैं।
गोलवलकर के विचार
संघ के महत्वपूर्ण स्तंभ एमएस गोलवलकर ने अपनी किताब बंच ऑफ थॉट्स में लिखा है कि हमारे देश के नेता एक नया झंडा लाए हैं। उन्होंने ऐसा क्यों किया। यह सिर्फ बहकने और नकल करने का मामला है। 1947 में संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया था कि तिरंगे के साथ कई समस्याएं हैं। यह कैसे राष्ट्रीय ध्वज हो सकता है। भारतीय नेता भले ही हमारे हाथों में तिरंगा दे दें लेकिन यह कभी भी हिन्दुओं के सम्मान में नहीं होगा। तीन रंगों वाला झंडा देश के लिए हानिकारक है। यह निश्चित रूप से बुरा प्रभाव डालेगा।
बहरहाल, अब आरएसएस जिस तरह नए रूप में तिरंगा लेकर देशप्रेम का प्रचार करने के लिए आगे आ रहा है, उसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि कल को संघ इसी तिरंगे को आगे रखकर इसका भी प्रचार कर सकता है कि देश को तो उसी ने आजाद कराया है। जिस तरह उसने शहीद-ए-आजम भगत सिंह और डॉ आम्बेडकर को अपनाने की भोंडी कोशिश की थी, ठीक उसी तरह वो तिरंगे के साथ भी कर सकता है। इसलिए इस जुमले को याद रखा जाना चाहिए - सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।