बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर आरएसएस से जुड़ी पत्रिका पांचजन्य ने कहा है कि अब देश विरोधी ताक़तें शीर्ष अदालत का इस्तेमाल औजार के रूप में कर रही हैं। पत्रिका ने इस पर संपादकीय तब लिखा है जब बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को साझा करने वाले सोशल मीडिया लिंक को हटाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया गया है।
वह नोटिस जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए पांचजन्य ने कहा है कि शीर्ष अदालत का औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर का संपादकीय आयकर विभाग द्वारा बीबीसी के दिल्ली और मुंबई कार्यालयों में एक कथित सर्वेक्षण किए जाने से एक दिन पहले प्रकाशित किया गया था।
बीबीसी पर आयकर विभाग की इस कार्रवाई के बीच ही बुधवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का भी बयान आया है। सूचनाओं को आक्रमण का एक नया औजार करार देते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि भारत के विकास की गाथा को कम करने के लिए छेड़छाड़ वाले नैरेटिव को अब चलने नहीं दिया जा सकता है। हालाँकि उन्होंने किसी मीडिया का नाम नहीं लिया, लेकिन समझा जाता है कि उनका निशाना बीबीसी था।
हाल ही में बीबीसी की 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नामक दो-भाग की श्रृंखला में डॉक्यूमेंट्री आयी है। बीबीसी ने इस सीरीज के डिस्क्रिप्शन में कहा है कि 'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक के बीच तनाव को देखते हुए 2002 के दंगों में उनकी भूमिका के बारे में दावों की जांच कर रहा है, जिसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे।'
इसी बीबीसी पर अब आयकर छापा मारा जा रहा है। उप राष्ट्रपति ने कहा, 'पिछले एक दशक में, एक मीडिया हाउस द्वारा एक नैरेटिव को चलाया गया था जो अपनी प्रतिष्ठा पर दावा करना चाहता है। यह कहता है कि किसी के पास सामूहिक विनाश के हथियार हैं और इसलिए, यह मानवता के लिए कार्रवाई करना ज़रूरी है। चीजें हुईं। सामूहिक विनाश के कोई हथियार नहीं मिले। अब, जब भारत तरक्की कर रहा है तो सूचनाओं के मुक्त प्रवाह द्वारा एक नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए भयावह डिजाइन आ गया है। हमें सतर्क रहना होगा।'
धनखड़ भारतीय सूचना सेवा के प्रोबेशन के अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 'अब उन्होंने सूचना को डंप करने का सहारा लिया है, जो असत्य है, ऐसी जानकारी जिसे हमारे पास मौजूद न्यायिक प्रणाली का कोई समर्थन नहीं मिला है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।'
इधर, आरएसएस की पत्रिका पांचजन्य ने हिंदी में संपादकीय में कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्माण और संरक्षण राष्ट्र के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। इसने आरोप लगाया कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री झूठ और कल्पना पर आधारित थी और यह भारत को बदनाम करने का प्रयास था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 3 फ़रवरी को जारी नोटिस का हवाला देते हुए संपादकीय में कहा गया है, 'सर्वोच्च न्यायालय भारत का है, जो भारत के करदाताओं की राशि से चलता है; उसका काम उस भारतीय विधान और विधियों के अनुरूप काम करना है जो भारत के हैं। सर्वोच्च न्यायालय नामक सुविधा का सृजन और उसका रख-रखाव हमने देश के हितों के लिए किया है। लेकिन वह भारत विरोधियों के अपना मार्ग साफ करने के प्रयासों में एक औजार की तरह प्रयोग हो रहा है।'
संपादकीय में मानवाधिकारों के नाम पर आतंकवादियों के कथित संरक्षण और पर्यावरण के नाम पर भारत की प्रगति में बाधाएं पैदा करने के उदाहरणों का हवाला दिया गया है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार संपादकीय में कहा गया है, 'आप पाएंगे कि राष्ट्र-विरोधी तत्व भारत के लोकतंत्र, उदारवाद और सभ्यतागत बेंचमार्क का उपयोग अपना एजेंडा चलाने के लिए कर रहे हैं। (उनका) अगला कदम यह सुनिश्चित करना है कि देश विरोधी तत्वों को देश में गलत सूचना फैलाने का अधिकार हो; धर्मांतरण के माध्यम से देश को कमजोर करने का अधिकार हो। और इतना ही नहीं, इन अधिकारों का प्रयोग करने के लिए, उन्हें भारतीय कानूनों का संरक्षण मिलना चाहिए।'