‘राष्ट्रवाद’ और 'हिटलर के राष्ट्रवाद' के शोर के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की इस पर प्रतिक्रिया आयी है। उन्होंने कहा है कि भारत का ‘राष्ट्रवाद’ हिटलर के ‘राष्ट्रवाद’ से अलग है।
भागवत ने कहा, ‘राष्ट्रवाद लोगों को डराता है क्योंकि वे तुरंत इसे हिटलर और मुसोलिनी के साथ जोड़ते हैं। लेकिन भारत में राष्ट्रवाद वैसा नहीं है, क्योंकि यह राष्ट्र अपनी साझा संस्कृति के आधार पर बना है।’
भागवत का यह बयान ऐसे समय में आया है जब ‘राष्ट्रवाद’ को लेकर ज़ोर-शोर से चर्चा है। हाल ही में महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती के मौक़े पर निकाली गई अपनी यात्रा का उल्लेख करते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधा था। उन्होंने आरोप लगाया था कि इनका राष्ट्रवाद बापू के राष्ट्रवाद से बिल्कुल उलट है। बघेल ने कहा था कि ‘मैं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से पूछना चाहता हूँ कि क्या उनका राष्ट्रवाद हिटलर और मुसोलिनी से प्रभावित नहीं है’
बता दें कि हिटलर और मुसोलिनी की सत्ता ‘उग्र राष्ट्रवाद’ पर आधारित थी, जहाँ हर मुद्दे, फ़ैसले को इसी आधार पर सही ठहराया जाता था। यहाँ तक कि आम लोगों की ज़िंदगी को भी ‘राष्ट्रवादी’ नज़रिए से देखा जाता था। हिटलर का मानना था कि उसकी नस्ल दुनिया की श्रेष्ठ नस्ल है तथा पूरी दुनिया पर उसे शासन करने का ईश्वरीय अधिकार प्राप्त है। इसलिए उसने दूसरी नस्ल के लोगों की हत्याएँ करवाईं। हिटलर ने क़रीब 60 लाख यहूदियों को मरवा दिया था। इसके अलावा एक करोड़ से ज़्यादा दूसरे लोगों को भी हिटलर के नाज़ी शासन के दौरान जान गँवानी पड़ी थी।
‘राष्ट्रवाद’ पर बहस लंबे समय से हो रही है। कहा यह जाने लगा कि किसी भी मुद्दे को ‘राष्ट्रवादी’ नज़रिए से पेश करने का चलन बढ़ा है। कई मामलों में आरोप यह लगाया जाता है कि सरकारी फ़ैसलों को भी ‘राष्ट्र के हित’ में कहकर सही साबित करने की कोशिश की जाती है। अक्सर कुछ विवादास्पद फ़ैसलों पर भी ‘राष्ट्रवाद’ का आवरण चढ़ा दिया जाता है! सोशल मीडिया पर फ़ेक न्यूज़ के इस दौर में तो इसका दायरा और तेज़ी से बढ़ा है।
बहरहाल, 'राष्ट्रवाद' की इन चर्चाओं के बीच भागवत ने कहा है कि भारत सिर्फ़ एक राष्ट्र-राज्य नहीं है, जहाँ अगर राज्य विफल होता है तो राष्ट्र खतरे में होता है। उन्होंने समझाया कि कैसे विभिन्न देशों को अलग-अलग नींव या साझा मान्यताओं और लक्ष्यों के आधार पर बनाया गया था, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना ‘स्वतंत्रता’ और ‘खुशी की तलाश’ के आधार पर की गई थी। इसे उन्होंने ‘व्यापार सुरक्षा’ के रूप में समझाया। उन्होंने कहा, ‘देश में बसी विभिन्न राष्ट्रीयताएँ एक राजा को हटाने के लिए एक साथ आईं, जो उनके व्यापार में एक बाधा था। संयुक्त राज्य अमेरिका इस तरह बनाया गया था।’
उन्होंने कहा, ‘भारत अलग और अद्वितीय है। यहाँ हमने सबसे अमीर लोगों या सबसे शक्तिशाली लोगों की पूजा नहीं की है। इस भूमि में बलिदान के लिए सर्वोच्च सम्मान है।’ उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के सम्मान का उदाहरण दिया, जिनके पास कोई पैसा, शिक्षा की डिग्री या निर्वाचित सत्ता नहीं थी।
संघ प्रमुख शनिवार को भुवनेश्वर में एक विशिष्ट नागरिक सम्मिलानी (सम्मेलन) में बोल रहे थे। भागवत ओडिशा के नौ दिवसीय दौरे पर शनिवार को भुवनेश्वर में पहुँचे हैं।
भागवत के लिए हिंदू का मतलब
उन्होंने कहा, 'हिंदू' कोई धर्म या भाषा नहीं है और न ही यह किसी देश का नाम है। 'हिंदू' उन सभी की संस्कृति है जो भारत में रहते हैं... जो विभिन्न संस्कृतियों को स्वीकार करता है और उनका सम्मान करता है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘यह हमारा हिंदू राष्ट्र है। भारत में कई लोग अपनी हिंदू पहचान बताने में शर्म महसूस करते हैं। कुछ ऐसे हैं जो कहेंगे कि उन्हें हिंदू होने पर गर्व है। ऐसे अन्य लोग हैं जो कहेंगे कि वे हिंदू हैं, लेकिन इसे बार-बार बोलने पर अपनी झुंझलाहट दिखाते हैं। कुछ ऐसे हैं जो अपनी हिंदू पहचान को लेकर सतर्क हैं। जब आप उनसे बंद दरवाजों के पीछे पूछेंगे, तो वे स्वीकार करेंगे कि वे हिंदू हैं। क्योंकि उनका हित प्रभावित होता है।’
सबसे सुखी मुसलमान भारत में
संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि दुनिया में सबसे सुखी मुसलमान भारत में हैं। उन्होंने कहा, ‘मारे-मारे यदूही फिरते थे अकेले भारत है, जहाँ उनको आश्रय मिला। पारसी की पूजा और मूल धर्म सुरक्षित केवल भारत में है। विश्व में सर्वाधिक सुखी मुसलमान, भारत में मिलेंगे। ये क्यों है क्योंकि हम हिंदू हैं।’
उन्होंने आगे कहा कि हमारी उन्नति अंग्रेज़ों की वजह से हुई, यह कहना ग़लत है। भागवत ने कहा कि हम क्लासलेस सोसायटी की स्थापना वेदों के आधार पर कर सकते हैं। उन्होंने कहा, आरएसएस का लक्ष्य सिर्फ़ हिंदू समुदाय को बदलना नहीं हैं, बल्कि देश में पूरे समाज को संगठित करना है।