1970-80 के दशक में अगर किसी खिलाड़ी को भारत के लिए कप्तानी का दावा पेश करना पड़ता था तो उस खिलाड़ी को इस काबिलियत की झलक रणजी ट्रॉफी में अपने राज्य के लिए पहले दिखानी पड़ती थी। 1995-2005 वाले दशक में सीमित ओवर वाले घरेलू टूर्नामेंट यानी चैलेंजर्स ट्रॉफ़ी में इंडिया ए और बी नाम की दो और टीमें बना दी जाती थीं और देखा जाता था कि भविष्य के कप्तान कौन हो सकते हैं। अब वो दौर ख़त्म हो चुका है और इसकी जगह आईपीएल ने ली है। कोई भी कप्तान आईपीएल में कैसे अपनी टीम को जीत दिलाता है और किस अंदाज़ में टीम को एक सूत्र में बांधे रखता है, उसकी झलक आईपीएल में दिखाई देती है। 2008 में जब ऑस्ट्रेलियाई शेन वार्न ने राजस्थान रॉयल्स में बच्चों से भरी टीम को अपनी कप्तानी के ज़रिए चैंपियन बनवा दिया तो पूरी दुनिया ने यह महसूस किया कि ऑस्ट्रेलिया के लिए वार्न को नियमित तौर से कप्तानी नहीं देने का उस मुल्क को कितना नुक़सान हुआ होगा।
एक और मौजूदा ऑस्ट्रेलियाई डेविड वार्नर को भी राष्ट्रीय टीम के लिए कप्तानी के दावेदार के तौर पर अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है लेकिन सनराइजर्स हैदराबाद के लिए वार्नर ने दिखाया है कि उनमें लीडर के तौर पर किस तरह की काबिलियत है।
लेकिन वार्न और वार्नर से ज़्यादा परेशानी तो रोहित शर्मा को झेलनी पड़ रही है। आख़िर उनका क्या कसूर है कि एक नहीं, दो नहीं, 3 नहीं बल्कि 8 सालों में 6 फ़ाइनल और 5 ट्रॉफ़ी जीतने के बाद भी उन्हें टीम इंडिया के लिए सफेद गेंद की क्रिकेट में कप्तानी के लायक समझा नहीं जा रहा है।
गंभीर ने रखी बेबाक राय
पूर्व भारतीय कप्तान और दो बार आईपीएल ट्रॉफ़ी जीतने वाले गौतम गंभीर ने साफ़-साफ़ कहा है कि अगर रोहित को सफेद गेंद की कप्तानी भारत के लिए नहीं मिलती है तो नुक़सान मुंबई के बल्लेबाज़ का नहीं बल्कि भारतीय क्रिकेट का है। गंभीर ने बड़ी बेबाकी से कहा है कि वो विराट कोहली की कप्तानी की आलोचना के संदर्भ में ऐसा नहीं कर रहे हैं लेकिन यह बात तो सही है कि कोहली की कप्तानी को लेकर एक ईमानदार आकलन भारतीय क्रिकेट में नहीं हो रहा है।
कई पूर्व खिलाड़ी और दिग्गज साल दर साल आईपीएल में विराट की नाकामी के बावजूद बहुत कुछ नहीं कह पाते हैं। शायद इसलिए कि कहीं कोहली नाराज़ ना हो जायें।
रोहित बनाम कोहली का दिलचस्प सफर
अगर कोहली को साल 2013 में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की कप्तानी हक के तौर पर मिल गई थी तो इत्तेफाक से रोहित को कप्तानी उसी साल बीच में इसलिए मिली क्योंकि रिकी पोंटिंग जूझ रहे थे। आक्रामक सोच वाले कप्तान ने उसके बाद जो किया वो तो इतिहास का हिस्सा है। हर एक साल को छोड़कर अगले साल मुंबई इंडियंस चैंपियन बनने लगी और 2015, 2017 और 2019 में ट्रॉफ़ी जीतकर रोहित 4 बार ऐसा कमाल दिखाने वाले पहले कप्तान बन गए। इतना ही नहीं, मुंबई इंडियंस ने रिकॉर्ड 5वीं बार आईपीएल ट्रॉफ़ी जीतकर ना सिर्फ़ इस टूर्नामेंट में इतिहास रचा बल्कि वो दुनिया में सबसे ज़्यादा टी20 ट्रॉफ़ी जीतने वाली टीम भी बन गई है। इससे पहले वेस्टइंडीज के ट्रिनबागो नाइट राइडर्स ने 4, इंग्लिश काउंटी लेस्टरशर ने 3, पर्थ स्कॉर्चर ने 3 और चेन्नई सुपर किंग्स ने भी 3 टी20 ट्रॉफ़ी जीती थी। वहीं तुलना में कोहली के हाथों में एक भी ट्रॉफ़ी नहीं है। 8 सीज़न की कप्तानी में 5 बार कोहली की टीम प्ले-ऑफ़ तक भी नहीं पहुँच पायी और छठी बार यानी मौजूदा सीज़न में सिर्फ़ भाग्य भरोसे पहुँची। हाँ, एक बार 2016 में फ़ाइनल में पहुँचे।
बैंगलोर टीम हुई बद से बदतर
रोहित की कप्तानी से पहले मुंबई के पास सभी संसाधन होने के बावजूद नतीजे नहीं मिल पाते थे वहीं कोहली का युग शुरू होने से पहले बैंगलोर का अतीत ज़्यादा बेहतर था। बैंगलोर में कोहली की कप्तानी का युग शुरू होने से पहले के 5 साल के दौरान बैंगलोर टीम दो बार फ़ाइनल में पहुँची थी और एक बार सेमीफ़ाइनल में भी। सिर्फ़ 2 मौक़ों पर बैंगलोर की टीम प्ले-ऑफ़ में नहीं पहुँच पायी थी। आलम यह रहा कि क्रिस गेल और एबी डिविलियर्स के (2013 से 2017 तक) जैसे धुरंधरों के रहने के बावजूद कोहली कुछ नहीं कर पाये जबकि रोहित सूर्यकुमार यादव और ईशान किशन के बूते भी कप हासिल कर लेते हैं।
फ़ैसले दिखाते हैं रोहित-कोहली का फर्क
अगर रोहित सिर्फ़ ट्रैंट बोल्ट जैसे गेंदबाज़ को दिल्ली से मुंबई इसलिए बुला लेते है क्योंकि उन्हें सिर्फ़ नई गेंद से स्विंग कराते हुए 2 विकेट ही काफ़ी लगते हैं भले ही बोल्ट टी20 के संपूर्ण गेंदबाज़ नहीं हों। वहीं पिछले 8 सालों में हमने देखा है कि कैसे कोहली ने युवराज सिंह (2014 में) और दिनेश कार्तिक (2015 में) जैसे खिलाड़ियों पर अंधा जुआ खेला। इतना ही नहीं, कोहली के एल राहुल और मयंक अग्रवाल जैसी स्थानीय प्रतिभा को भी ठीक से पहचान नहीं पाये जिसके चलते ये खिलाड़ी दूसरी टीमों में पहुँचे और मैच-विनर की भूमिका निभा रहे हैं। वहीं रोहित ने वड़ोदरा के पंड्या बंधुओं को अपनी टीम का ना सिर्फ़ नियमित हिस्सा बनाया बल्कि हर क़ीमत पर उन्हें बनाये रखा।
नाजुक लम्हों में बल्लेबाज़ के तौर पर खेल
मुंबई को इस साल चैंपियन बनाने में फ़ाइनल के दौरान रोहित ने एक शानदार पारी खेली जबकि कोहली अक्सर नॉकआउट मुक़ाबले में फ्लॉप हो जाते हैं। इस साल आख़िरी तीन मैचों में सनराइजर्स हैदराबाद, किंग्स इलेवन पंजाब और मुंबई इंडियंस के ख़िलाफ़ उन 3 अहम मैचों में सिर्फ़ 18 रन बने जहाँ पर वो एक चौका तक मारने में नाकाम रहे हैं।
हर मौक़े पर रोहित का छक्का, कोहली शून्य
आईपीएल के इतिहास में 100 से ज़्यादा कप्तानी करने वाले कोहली सिर्फ़ तीसरे भारतीय हैं लेकिन जहाँ धोनी के पास 3 और गंभीर के पास 2 आईपीएल ट्रॉफ़ी हैं, कोहली अब तक खाता खोलने में नाकाम रहे हैं। रोहित ने बिना शतक लगाये 5 ट्रॉफ़ी अपने नाम कर ली है।
अलग-अलग कोच की राय
जहाँ मुंबई इंडियंस छोड़ने के बावजूद पोंटिंग रोहित की कप्तानी को लेकर तारीफ़ करते थकते नहीं हैं वहीं माहेला जयावर्दने के साथ भी उनका ज़बरदस्त तालमेल है। लेकिन कोहली के साथ कोई भी कोच टिक ही नहीं सकता जबतक कि वो उनकी हाँ में हाँ ना मिलाये। पहले ही साल में कप्तान बनते ही कोहली की साउथ अफ्रीका के कोच रे जेनिंग्स से अनबन हुई, अगले ही साल उनकी छुट्टी कर दी गई। डेनियल वेटोरी और गैरी कर्स्टन भी आये और गये। और इस बार कोहली डायरेक्टर ऑफ़ क्रिकेट के तौर पर न्यूज़ीलैंड और किंग्स इलेवन पंजाब के पूर्व कोच माइक हेसन को ले आये। उनके साथ हेड कोच के तौर पर ऑस्ट्रेलियाई साइमन कैटिच भी आये। लेकिन, नतीजे फिर भी नहीं बदले।
कोहली जहाँ हार से बौखला कर स्पोर्ट्स स्टाफ़ बदलते हैं वहीं रोहित जीत के बावजूद बदलाव को ज़रूरी समझते हैं। जीत के बावजूद भविष्य की हमेशा उन्होंने योजना बनायी।
यही वजह रही कि 2017 में श्रीलंका के माहेला जयावर्दने को हेड कोच बना कर लाया गया। आईपीएल इतिहास के सबसे कामयाब गेंदबाज़ और टीम की एक अहम पहचान वाले गेंदबाज़ मलिंगा को 2018 में गेंदबाज़ी कोच की भूमिका भी दे गई।
रणनीति में शर्मा ही हैं ‘विराट हिट’
रोहित ने इस साल रणनीति के मामले में फिर से कोहली को छकाया। मुंबई को बल्लेबाज़ी के दौरान पावरप्ले में हमेशा आक्रामक रुख अपनाये रखने की सलाह किवंट्न डि कॉक को दी गई तो कोहली ने देवदत्त पड्डीकल को संभलकर खेलने का सुझाव दिया। अगर डि कॉक पावर-प्ले में सबसे कामयाब बल्लेबाज बने और टीम के लिए जीत का आधार तैयार किया तो पड्डीकल के रनों का अंबार भी उनकी टीम के काम नहीं आया क्योंकि वो उस आक्रामकता से नहीं खेल पाये। डेथ ओवर्स के बल्लेबाज़ों में हार्दिक पंड्या और पोलार्ड का तोड़ तो किसी भी टीम के पास नहीं था। इन्हीं दोनों के चलते मुंबई ने पूरे टूर्नामेंट में 137 छक्के लगाये तो कोहली की टीम हमेशा की तरह इसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ डि विलियर्स को देकर मुक्त हो गई जिससे नतीजे नहीं बदले।
कई मायनों में आईपीएल में मुंबई इंडियंस का दबदबा अस्सी के दशक वाली कैरेबियाई और 1995-2005 के दशक वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम की याद दिलाता है। और शायद वक़्त आ गया है कि गंभीर की राय पर ग़ौर फरमाते हुए भारतीय चयनकर्ता कम से कम सफेद गेंद की रोहित को कप्तानी की ज़िम्मेदारी देने के बारे में ज़रूर सोचें। आख़िर, अपना दावा पेश के लिए जो कुछ रोहित कर सकते थे उन्होंने कर ही दिया है, उससे ज़्यादा भला अब वो क्या करेंगे