क्या राष्ट्रपति जो बाइडन के कहने पर अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाले देशों की सूची में भारत का नाम नहीं जोड़ा गया? क्या 'यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रीलिजियस फ़्रीडम' की 'कंट्रीज़ ऑफ़ पर्टीकुलर कंसर्न' की सूची में भारत का नाम इसलिए नहीं डाला गया कि राष्ट्रपति भारत से बेहतर रिश्ते चाहते हैं और वह इसके जरिए भारत को संकेत देना चाहते हैं?
अमेरिकी कमीशन की सिफ़ारिश के बावजूद सीपीसी लिस्ट में भारत को शामिल नहीं करने पर कई लोग सवाल भी खड़े कर रहे हैं। समझा जाता है कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने राष्ट्रपति के कहने पर ही भारत को इस सूची से बाहर रखा।
क्या है मामला?
अमेरिका हर साल ऐसे देशों और संगठनों की सूची जारी करता है, जो अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं।
इस सूची में पाकिस्तान, चीन, ईरान, रूस, सऊदी अरब, एरिट्रिया, ताज़िकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और बर्मा सहित 10 देशों को शामिल किया गया है।
इसके अलावा अल्जीरिया, कोमोरोस, क्यूबा और निकारागुआ को विशेष निगरानी सूची में रखा गय है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन में शामिल हैं।
इस पर विवाद तब खड़ा हुआ जब अमेरिकी पत्रिका 'पॉलिटिको' के संवाददाता नाहल तूसी ने ट्वीट किया, ''अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के बावजूद उसे धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में सीपीसी यानी 'कंट्री ऑफ पर्टीकुलर कंसर्न' की लिस्ट से बाहर रखने का फ़ैसला किया है।''
इतना ही नहीं, उन्होंने सीधे राष्ट्रपति पर आरोप लगाते हुए कहा, "धार्मिक स्वतंत्रता पर काम करने वाले अमेरिकी कमीशन ने भारत को इस सूची में डालने का आग्रह किया था।"
उन्होंने इसके आगे कहा,
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बाइडन प्रशासन भारत को अहम साझेदार के तौर पर देखता है और चीन के मामले में भारत की अहमियत अमेरिका के लिए और बढ़ गई है।
नाहल तूसी, पत्रकार, द पॉलिटिको
तूसी के अनुसार, "बाइडन प्रशासन ने कहा था कि उसकी विदेश नीति में मानवाधिकार केंद्र में रहेगा, लेकिन उसे छोड़ने का यह एक और उदाहरण है।''
मुसलिम कौंसिल ने की आलोचना
इंडियन अमेरिकन मुसलिम काउंसिल ने ब्लिंकन की आलोचना करते हुए कहा है, ''आईएएमसी ब्लिंकन के उस फ़ैसले की निंदा करता है, जिसमें भारत को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन वाली सीपीसी लिस्ट से बाहर रखा गया है जबकि अमेरिकी कमिशन ने भारत को इस लिस्ट में डालने की सिफ़ारिश की थी।''
ब्लिंकन की सफाई
लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा है कि हर देश में धर्म की स्वतंत्रता की वकालत करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने पाया है कि दुनिया भर में बहुत से देशों में सरकारें लोगों को अपनी मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने के कारण परेशान, गिरफ्तार कर जेल में डाल देती हैं, उन्हें पीटा जाता है।
यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रीलिजियस फ़्रीडम ने इस सूची में भारत को शामिल ना करने पर हैरानी जताई है।
आयोग ने कहा है, ''साल 2020 में धार्मिक आज़ादी के आकलन के बाद सीपीसी सूची के लिए चार देशों के नाम विदेश मंत्रालय को सुझाए गए थे, जिनमें- भारत, रूस, सीरिया और वियतनाम शामिल हैं, लेकिन रूस को छोड़ कर इनमें से किसी देश को सूची में शामिल नहीं किया गया।''
उसने कहा है,
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दिल्ली में हुए दंगों के दौरान हिंदू भीड़ को क्लीनचिट दी गई और मुसलिम लोगों पर अत्यधिक बल का प्रयोग किया गया।
यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रीलिजियस फ़्रीडम
बता दें कि इसके पहले धार्मिक आज़ादी का आकलन करने वाले एक अमेरिकी पैनल 'यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम' (यूएससीआरएफ़) ने सुझाव दिया था कि साल 2020 में सबसे ज़्यादा धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के कारण भारत को 'कंट्रीज़ ऑफ़ पर्टीकुलर कंसर्न' यानी सीपीसी की सूची में डाला जाना चाहिए।
दूसरा सुझाव था कि प्रशासन को अंतर-धार्मिक संवाद, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय फ़ोरम पर हर समुदाय को बराबरी के हक़ को बढ़ावा देना चाहिए।