
दुनिया में एक लाख करोड़ नए पेड़ों की खोज क्यों और कितना ज़रूरी?
अर्से बाद पर्यावरण के मामले में एक अच्छी खबर यह आई कि चीन ने अपने पश्चिमी रेगिस्तान तकलामाकन का फैलाव रोकने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने की जो मुहिम 1978 में शुरू की थी, उसका 3046 किलोमीटर लंबा घेरेबंदी वाला चरण 28 नवंबर 2024 को पूरा हो गया। सड़कों के किनारे या पहाड़ों के पास थोड़ी नम जमीनों पर लंबी-लंबी पट्टियों में यह काम किया जा रहा है। समूची योजना में कुल 8 करोड़ 80 लाख एकड़ जमीन पर नए जंगल लगाए जाने हैं और 2050 ई. के आसपास यह अपने अंजाम तक पहुंचेगी। आंकड़े समझने के लिए तुलना करनी हो तो भारत की कुल कृषियोग्य भूमि 21 करोड़ 56 लाख एकड़ है और यह दुनिया के और किसी भी देश से ज्यादा है।
हम जानते हैं कि चीन में आंकड़ों की बाजीगरी काफी चलती है। जो पेड़ वहां लगाए गए हैं उनमें कितने वास्तविक हैं और लगाने के दस साल बाद तक छाया देने के लिए उनमें कितने बचे रह गए हैं, इस बारे में बहुत ठोस आंकड़े नहीं जारी किए गए हैं। लेकिन 2018 में अमेरिकी पर्यावरण उपग्रहों से खींचे गए चित्रों का विश्लेषण बताता था कि सूखे इलाकों में हरियाली लाने का आंकड़ा देने में चीनी झूठ बोल नहीं रहे हैं। पिछले बीस वर्षों में उन्होंने अपनी रणनीति में कुछ बड़े बदलाव भी किए हैं। मसलन, पेड़ों की ज्यादा सख्त किस्में उन्होंने चुनी हैं और पेड़ों के साथ-साथ सोलर पैनल भी लगाए हैं। जरा सी भी नमी मिल जाए तो इन पैनलों के नीचे घास उग आती है और मिट्टी ठहरने लगती है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से देखने पर धरती का बड़ा हिस्सा रेगिस्तान दिखता है। विशाल चमकते हुए बंजर इलाके, जिनमें हरियाली का नामोनिशान नहीं है। रेगिस्तान यानी वह जगह, जहां बारिश या बर्फबारी, या किसी भी रूप में नमी की कुल आवक वाष्पीकरण के जरिये वहां से नमी की कुल जावक की तुलना में कुछ कम ही ठहरती हो। आंकड़ों में कहें तो रेगिस्तान वे जगहें हैं जहां पूरा साल मिलाकर 25 सेंटीमीटर से कम पानी गिरता है। पृथ्वी के कुल जमीनी क्षेत्र का एक तिहाई आधिकारिक रूप से रेगिस्तान है, जो सदी पीछे 5 से 10 फीसदी की दर से फैल रहा है।
पेड़ लगाने की तीन बड़ी कोशिशेंः नमी की ऐसी किल्लत सिर्फ गर्म इलाकों में नहीं दिखती। धरती का सबसे पुराना रेगिस्तान होने का सेहरा मंगोलिया और चीन में पसरे गोबी के ठंडे मरुस्थल के सिर बंधा है, जहां से उड़ी पीली मिट्टी जैसी रेत हाल तक गर्मियों में पेइचिंग शहर को ढांप लेती थी। इनर मंगोलिया प्रांत के पुनर्वनीकरण से सबसे ज्यादा राहत इसी शहर को मिली है।
बंजर इलाकों को पेड़ों से भर देने की तीन बड़ी कोशिशें दुनिया में चल रही हैं, जिनमें एक यह चीन वाली है। दूसरी कोशिश अफ्रीका के साहिल इलाके में चल रही है। अफ्रीकी महाद्वीप को लगभग बीच से उत्तर और दक्षिण में बांटने वाला साहिल क्षेत्र सहारा रेगिस्तान के उत्तर में है और यह योजना यहां पड़ने वाले बीस छोटे-बड़े देशों में दुनिया के अमीर मुल्कों की मदद से चलाई जा रही है। लगभग चार हजार किलोमीटर लंबी और कुछ सौ किलोमीटर चौड़ी इस पुनर्वनीकरण योजना में वादा करके मुकर जाने, रकम हड़प लेने और फर्जी काम करने के मामले बहुत हैं। इलाके में आतंकवाद के फैलाव से मामला और गड़बड़ हो गया है। फिर भी दो-तीन करोड़ नए पेड़ यहां लगे हैं।
तीसरी कोशिश निजी स्तर पर चल रही है और इसका स्वरूप एक कॉरपोरेट स्कीम जैसा है। इसपर बातचीत 2020 में शुरू हुई थी। उस समय डॉनल्ड ट्रंप अपने पहले राष्ट्रपति-काल के आखिरी साल में चल रहे थे और इस योजना को उनका नैतिक समर्थन प्राप्त था। इसमें दुनिया भर में कुल एक लाख करोड़ नए पेड़ लगाने (प्लांट ट्रिलियन ट्रीज) का लक्ष्य रखा गया था। आम तौर पर दुनिया इसे भूल ही गई है, लेकिन पे-पाल और रेडिट जैसी कंपनियों में ऊंचे पदों पर काम कर चुके अमेरिकी इंजीनियर यीशान वोंग अपनी ‘टेराफॉर्मेशन’ कंपनी लेकर इस काम में जुटे हुए हैं।
वोंग की योजना कार्बन क्रेडिट के जरिये पैसे कमाने की है, जो बिजनेस मॉडल के रूप में ज्यादा उम्मीद नहीं जगाता। अपना ध्यान उन्होंने बंजर या घास वाली जमीनों पर लगा रखा है। रेगिस्तानों से उन्हें कोई मतलब नहीं है।
जिंदा चीजें और बनाई हुई चीजें
साल 2020 कोरोना महामारी की शुरुआत के अलावा इतिहास में एक ऐसी बात के लिए भी दर्ज रहेगा, जिस पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो। इस साल इंसान की बनाई चीजों का वजन प्रकृति की बनाई सभी जीवित वस्तुओं से ज्यादा हो गया। बात को ज्यादा साफ समझने के लिए दिमाग में दो खाने बनाइए। एक में इंसान समेत सभी जिंदा चीजों को रखिए। मसलन घास, पेड़, जंगल, काई, सेवाल, कुकुरमुत्ता, चिड़ियां, तमाम छोटे-बड़े पालतू और जंगली पशु-पक्षी, सारे जलीय जानवर, कीड़े-मकोड़े, बैक्टीरिया वगैरह को। और दूसरे खाने में इंसान के कपड़ों-जूतों से शुरू करके सभी घरेलू सामान, घर-मकान, सड़क, पुल, कारें, मशीनें, ट्रेन, जहाज वगैरह को रखिए।
अब आप पूछेंगे कि दोनों तरह की चीजों की तौला किस तरह गया और यह हिसाब आखिर कैसे लगाया गया कि दूसरे खाने में मौजूद चीजों का वजन पहले वाले खाने वाली चीजों से ज्यादा हो गया? यह भी कि तौल नापने और तुलना करने का कोई तरीका खोज भी लिया गया हो तो इस घटना का साल ठीक 2020 कैसे निर्धारित किया गया?
दरअसल कुछ बुनियादी आंकड़े और दरें अगर आपके पास मौजूद हों तो सांख्यिकीय युक्तियों के जरिये ये दोनों काम चुटकियों में संपन्न किए जा सकते हैं। इन युक्तियों के जरिये ही हिसाब लगाया गया है कि धरती पर खेती शुरू होते वक्त, यानी अब से कोई 12 हजार साल पहले इस पर मौजूद कुल जिंदा चीजों का वजन 2 ट्रिलियन यानी 2 के बाद 12 शून्य लगाने पर आने वाली संख्या जितने टन का था। तब से अब तक इंसान ने इस आंकड़े को घटाकर आधे पर ला दिया है। जंगल काट डाले या जला दिए। कुछ जानवरों को पाला, बाकी मार दिए। समुद्र में रहने वाले जीव हाल तक सुरक्षित थे। विशाल ट्रॉलरों से वहां का कीचड़ खुरचकर अब उनकी संततियां तबाह की जा रही हैं।
दूसरी तरफ औद्योगिक युग का इंजन गरम होने के साथ इंसान की बनाई चीजों का वजन सन 1900 से लेकर अब तक हर बीस साल में दोगुना हुआ जा रहा है। यानी 1900 ई. में इसकी जो नाप थी, उसकी 64 गुना यह तब से लेकर 2020 तक गुजरे कुल 120 वर्षों में हो चुकी है। ये दोनों रुझान- जिंदा चीजों का वजन घटते जाना और इंसान की बनाई चीजों का वजन हर बीस साल में दोगुना होना- आज भी जारी हैं और आगे भी जारी रहेंगे। दूसरे शब्दों में, इंसान की बनाई चीजों का वजन सन 2040 में धरती की सभी जीवित चीजों के दोगुने से भी ज्यादा हो चुका होगा!
एक लाख करोड़ पेड़ों का सवाल
धरती पर कुल कितने पेड़ हैं? एक दौर था जब यह सवाल ‘आकाश में कुल कितने तारे हैं’ जैसे प्रश्नों की कोटि में आता था, जिनका कोई ठोस जवाब संभव नहीं होता। लेकिन 2005 में उपग्रह चित्रों की सहायता से ‘वन-घनत्व’ (प्रति वर्ग किलोमीटर में मौजूद पेड़ों की संख्या) नाम की एक राशि निर्धारित की गई और धरती के अलग-अलग इलाकों में इसका अनुमापन करके वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि दुनिया में कुल 400 अरब यानी 40 हजार करोड़ पेड़ उस समय थे। कुल जीवित व्यक्तियों को ध्यान में रखकर वन-घनत्व को तब ‘प्रति व्यक्ति 61 पेड़’ बताया गया था।
बाद में इस संख्या को और ठोस बनाने के लिए जंगलों में पेड़ों की गिनती करने वाले गैर-सरकारी संगठनों की मदद ली गई। उनके द्वारा दी गई जानकारियों को वन-घनत्व की अवधारणा में समाहित करने के बाद सन 2015 में पाया गया कि दुनिया में कुल पेड़ों की तादाद 2005 में आई गिनती की साढ़े सात गुनी, यानी लगभग 3 लाख करोड़ है। ऊपर बारह जीरो वाली संख्या ट्रिलियन का जिक्र आ चुका है। हिंदी में यह संख्या ‘एक लाख करोड़’ बनती है।
अपने इर्दगिर्द के पेड़ गिनकर यह संख्या आपको फुलाई हुई लग रही हो तो बता दें कि दुनिया के एक चौथाई (25 फीसदी) पेड़ उत्तरी ध्रुव यानी आर्कटिक क्षेत्र के करीब पड़ने इलाकों में साइबेरिया और अन्य जगहों पर ‘बोरियल फॉरेस्ट्स’ के रूप में मौजूद हैं। हमारे गर्म भूमध्यरेखीय इलाकों में संसार के 43 फीसदी पेड़ों का ठिकाना है।
चिंताजनक बात यह है कि 1500 करोड़ पेड़ अभी दुनिया में हर साल काटे या जलाए जा रहे हैं। इसके चलते पेड़ों की तादाद कृषि सभ्यता के उदय से लेकर आजतक घटकर 46 फीसदी रह गई है। इसकी भरपाई के लिए 2017 में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की ओर से 2021 से 2030 के बीच में 1 लाख करोड़ पेड़ लगाने का लक्ष्य लिया गया था। हालांकि यह अवधि आधी बीतने को है और अभी तक की उपलब्धि को लेकर कोई सूचना फोरम द्वारा जारी नहीं की गई है। जिन तीन उपायों के जिक्र से इस लेख की शुरुआत हुई थी, उनके ब्यौरे इस साल आएं तो कुछ आशा बंधे।