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खानदानी कांग्रेसी राजेश राम क्या बेहतर करेंगे महागठबंधन की केमिस्ट्री?

खानदानी कांग्रेसी राजेश राम क्या बेहतर करेंगे महागठबंधन की केमिस्ट्री?

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राजेश कुमार की नियुक्ति का असर महागठबंधन पर भी पड़ेगा और संकेत सकारात्मक हैं। वरिष्ठ पत्रकार समी अहमद इस केमिस्ट्री को समझा रहे हैं। बिहार की राजनीति जानिएः

औरंगाबाद जिले के कुटुंबा से विधायक राजेश कुमार उर्फ राजेश राम को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया जाना न केवल कांग्रेस के लिए बल्कि महागठबंधन में एक अच्छी केमिस्ट्री का भी संकेत है।

दो बार के विधायक राजेश राम की खास बात यह है कि वह खानदानी कांग्रेसी हैं और महागठबंधन में बेहतर समन्वय के लिए खुलकर बात करते हैं। इस बात का जिक्र इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस के पिछले प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का कांग्रेस से बहुत लंबा संबंध नहीं रहा है और कभी-कभी उनके कुछ बयानों से ऐसा लगता था कि महागठबंधन में दरार आ सकती है। 

56 साल के राजेश कुमार रविदास समुदाय से हैं और ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने बिहार में दलित समुदाय पर अपनी पकड़ बेहतर करने के लिए उन्हें अपना प्रदेश अध्यक्ष चुना है। बिहार में दलित समुदाय की आबादी 19-20% (19.65%) मानी जाती है और रविदास समुदाय की आबादी लगभग 5.25% है। 

वैसे भी कांग्रेस के एक वर्ग द्वारा अखिलेश प्रसाद सिंह को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की जा रही थी जो 2022 से इस पद पर बने हुए थे। एक तो वह भूमिहार समुदाय के हैं और उन पर यह आरोप था कि बिहार में कांग्रेस का ढांचा ठीक करने में वह सफल नहीं रहे। इस बात की चर्चा भी होती है कि 2024 में उन्होंने अपने बेटे को भी लोकसभा का टिकट दिलवाया हालांकि उनका बेटा चुनाव हार या। 

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इस समय कांग्रेस ने ‘पलायन रोको, नौकरी दो, पदयात्रा के सहारे कन्हैया कुमार को भूमिहार और युवा वर्ग का चेहरा बना रखा है। दूसरी ओर, बिहार प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी कृष्ण अल्लावारू ब्राह्मण समुदाय से हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक शकील अहमद खान पार्टी के विधायक दल के नेता हैं। ऐसे में जबकि अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाने की बात हो चुकी थी तो किसी दलित समुदाय के कांग्रेसी को ही प्रदेश की कमान दी जानी थी। 

राजेश राम ने कुटुंबा सीट से 2015 में जीतन राम मांझी के बेटे और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के वर्तमान अध्यक्ष और इस समय बिहार सरकार में मंत्री संतोष कुमार सुमन को हराया था। 2020 में भी उन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के उम्मीदवार को हराया हालांकि इस बार जीतन राम मांझी की पार्टी ने संतोष कुमार सुमन की जगह श्रवण भुइयां को उम्मीदवार बनाया था। 

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राजेश राम के पिता स्वर्गीय दिलकेश्वर राम अपने जमाने के बड़े दलित नेता माने जाते थे। दिलकेश्वर राम कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहे और उन्होंने संगठन में भी अच्छा योगदान दिया। वैसे कांग्रेस के लिए अफसोस की बात यह है कि इससे पहले भी उसने एक बार और एक दलित चेहरा अशोक चौधरी को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी थी जो खुद खानदानी कांग्रेसी थे मगर मंत्री पद जाने के साथ ही उन्होंने कांग्रेस को भी अलविदा कह दिया। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2017 में जब महागठबंधन की सरकार से नाता तोड़ा था तो अशोक चौधरी उस समय कांग्रेस के कोटे से मंत्री थे। महागठबंधन की सरकार गिर गई तो अशोक चौधरी को भी मंत्री पद गंवाना पड़ा लेकिन उन्होंने कुछ ही समय बाद नीतीश कुमार की पार्टी ज्वाइन कर ली और तब से वह लगातार मंत्री बने हुए हैं। 

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राजेश राम की अच्छी बात यह मानी जा रही है कि उनका कांग्रेस से लगाव मजबूत रहा है और इससे फर्क नहीं पड़ा कि पार्टी सरकार में है या उससे बाहर। दूसरी अहम बात यह है कि एक ऐसे समय में जब भारतीय जनता पार्टी, जेडीयू और एनडीए के दूसरे दल यह प्रचारित करने में लगे थे कि बिहार में महागठबंधन टूट जाएगा तो राजेश कुमार ने अध्यक्ष बनते के साथ ही यह बयान दिया कि महागठबंधन को मजबूत करना है और सरकार भी महागठबंधन की ही बनेगी। 

बिहार की राजनीति में दलित भागीदारी की बात इससे समझी जा सकती है कि इस समय एनडीए में दो बड़े दलित नेता शामिल हैं यानी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संरक्षक जीतन राम मांझी। चिराग पासवान की पार्टी के पास इस समय कोई विधायक नहीं है लेकिन जीतन राम मांझी के विधायकों का नीतीश कुमार की सरकार को बहुत बड़ा सहारा मिला हुआ है।

ऐसा समझा जाता है कि चिराग पासवान के सहारे भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार को पासवान समुदाय का अच्छा समर्थन मिला हुआ है। हालांकि चिराग पासवान की पार्टी के पास विधायक नहीं है लेकिन उनके पांच सांसद केंद्र की मोदी सरकार के लिए बेहद अहम माने जा रहे हैं। संख्या के लिहाज से चिराग पासवान की जाति दुसाध का अनुपात 5.31% बताया जाता है। दूसरी ओर मुसहर समुदाय की आबादी तीन-चार प्रतिशत मानी जाती है लेकिन जीतन राम मांझी अनुभवी नेता होने के कारण काफी प्रभावी दलित नेता माने जाते हैं।

ऐसे में राजेश राम का प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना केवल कांग्रेस के लिए नहीं बल्कि महागठबंधन के लिए एक बेहतरीन दलित चेहरा उपलब्ध कराता है। राजेश राम ने महागठबंधन से बेहतर केमिस्ट्री के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के संगठन को भी बेहतर करने की बात की है। उनके सामने विधानसभा चुनाव के लिए 6 महीने ही बचे हैं और कांग्रेस के संगठन को बेहतर करने की चुनौती है। 

कांग्रेस पार्टी और राजद को यह उम्मीद रहेगी कि राजेश राम के चेहरे के साथ दलित वर्ग का मत उन्हें मिलेगा। याद करने की बात यह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महागठबंधन में रहते हुए 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन केवल 19 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थी। तब यह माना गया था कि तेजस्वी यादव की सरकार बनते बनते रह गई और इसमें कांग्रेस की खराब स्ट्राइक रेट का का बड़ा रोल था। 

उम्मीद की जा रही है कि राजेश राम के प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के इस आरोप की हवा निकलेगी कि  महागठबंधन में दरार है। इसके साथ ही अगर कांग्रेस पार्टी अपनी स्ट्राइक रेट बेहतर करे तो महागठबंधन की सरकार बनने की संभावना बढ़ेगी जिससे कांग्रेस की भी सत्ता में वापसी होगी। लेकिन कहा जा रहा है कि यह काम इतना आसान नहीं होगा और इसके लिए राजेश राम को कड़ी मेहनत करनी होगी। उन्हें सीटों पर सही समझौता करना होगा और साथ ही सही उम्मीदवारों का चयन करना होगा ताकि कांग्रेस की स्ट्राइक रेट बेहतर हो।

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