केंद्र ने सरकारी भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक और फर्जी वेबसाइटों जैसी गड़बड़ियों को रोकने के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया, जिसमें न्यूनतम तीन साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने सहित सख्त दंड का प्रावधान है। वर्तमान में, केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन में शामिल विभिन्न संस्थाओं द्वारा अपनाए गए अनुचित तरीकों या किए गए अपराधों से निपटने के लिए कोई खास ठोस कानून नहीं है।
केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा पेश किए गए सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024 में प्रश्नपत्र या आंसर शीट के लीक होने, सार्वजनिक परीक्षा में अनाधिकृत रूप से किसी भी तरीके से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उम्मीदवार की सहायता करने का उल्लेख है। किसी व्यक्ति द्वारा या किसी संस्थान अथवा समूह द्वारा कंप्यूटर नेटवर्क या कंप्यूटर संसाधन या कंप्यूटर सिस्टम के साथ छेड़छाड़ को अपराध घोषित किया गया है। यह विधेयक संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी), कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी), रेलवे, बैंकिंग भर्ती परीक्षाओं और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित सभी कंप्यूटर-आधारित परीक्षाओं को कवर करेगा।
मंत्री ने कहा कि विधेयक का उद्देश्य संगठित गिरोहों और संस्थानों को रोकना है जो पैसे के लिए अनुचित तरीकों में शामिल हैं, लेकिन यह उम्मीदवारों को इसके प्रावधानों से बचाता है।
उन्होंने कहा कि इसमें धोखाधड़ी पर अंकुश लगाने के लिए न्यूनतम तीन से पांच साल की कैद का प्रस्ताव है और धोखाधड़ी के संगठित अपराधों में शामिल लोगों को पांच से 10 साल की कैद और न्यूनतम एक करोड़ रुपये का जुर्माना भरना होगा।
कार्मिक मंत्रालय के बयान में सिंह के हवाले से कहा गया, "पिछले कुछ वर्षों में प्रश्नपत्रों के लीक होने और परीक्षाओं के रद्द होने के कारण संगठित गिरोह ने लाखों छात्रों के हितों को प्रभावित किया है।" उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में असामाजिक, आपराधिक तत्वों द्वारा अपनाई गई अनुचित प्रथाओं और साधनों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण कई राज्यों को अपनी सार्वजनिक परीक्षाओं के नतीजे रद्द करने पड़े हैं या घोषित करने में असमर्थ रहे हैं।
तकनीकी समिति भी बनेगीः कई परीक्षाओं के ऑनलाइन आयोजित होने और सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन में आईटी की बढ़ती भूमिका को देखते हुए एक उच्च स्तरीय राष्ट्रीय तकनीकी समिति भी स्थापित करने का निर्णय लिया गया है।समिति डिजिटल प्लेटफार्मों को इंसुलेट करने के लिए प्रोटोकॉल विकसित करने, फूलप्रूफ सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सुरक्षा प्रणाली विकसित करने के तरीके और साधन तैयार करने, परीक्षा केंद्रों की व्यापक इलेक्ट्रॉनिक निगरानी सुनिश्चित करने और आईटी और भौतिक बुनियादी ढांचे दोनों के लिए राष्ट्रीय मानक और सेवा स्तर तैयार करने पर विचार करेगी।
विधेयक में "धोखा देने या आर्थिक लाभ के लिए फर्जी वेबसाइट बनाना", "फर्जी परीक्षा आयोजित करना, नकली प्रवेश पत्र जारी करना या धोखा देने या आर्थिक लाभ के लिए प्रस्ताव पत्र जारी करना" और "बैठने की व्यवस्था में हेरफेर, तारीखों और शिफ्टों का आवंटन" आदि मुद्दे शामिल है। कैंडिडेट्स को परीक्षाओं में अनुचित साधन अपनाने की सुविधा देना दंडनीय अपराध है। विधेयक "सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण या सेवा प्रदाता या सरकार की किसी अधिकृत एजेंसी से जुड़े व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता को खतरे में डालना या गलत तरीके से रोकना, या सार्वजनिक परीक्षा के संचालन में बाधा डालना" को दंडनीय अपराध बनाता है।
यह विधेयक राज्यों के लिए भी एक मॉडल के रूप में होगा। वे इसे चाहेंगे तो अपने राज्य में लागू कर सकेंगे। प्रस्तावित कानून के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है, "इससे राज्यों को आपराधिक तत्वों को उनकी राज्य-स्तरीय सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन में बाधा डालने से रोकने में सहायता मिलेगी।" इस विधेयक में यूपीएससी, एसएससी, रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी), बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (आईबीपीएस) और एनटीए सहित अन्य द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं को शामिल किया गया है। केंद्र सरकार के मंत्रालय या विभाग और कर्मचारियों की भर्ती के लिए उनके संबद्ध और अधीनस्थ कार्यालय और सरकारी नौकरी भर्ती के संचालन के लिए "केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित प्राधिकरण" भी प्रस्तावित कानून के दायरे में हैं।