आज विश्व पर्यावरण दिवस है और इस बार का विषय 'प्रकृति के लिए समय' है। ऐसे में कोरोना और लॉकडाउन के संकेत हमें समझने होंगे।
कोरोना वायरस आज के समय में एक तरह का संकेत है जो प्रकृति की ख़ूबसूरती की ओर हमें ले जाता है।
यह हमें इस बात का संकेत देता है कि अगर इसी तरह से स्वच्छ व सुरक्षित जलवायु हमें चाहिए तो भविष्य में अपने स्तर पर ही हमें और भी बड़े लॉकडाउन के लिए अभ्यास करना होगा पर बिना कोविड-19 जैसे वायरस के। यह इस बात का भी संकेत देता है कि अगर हम पर्यावरण का सम्मान नहीं करते हैं तो कोविड-19 जैसी महामारियों का दंश झेलने के लिए हमें आगे भी तैयार रहना होगा।
जीवाश्म ईंधन उद्योग से होने वाला ग्लोबल कार्बन उत्सर्जन इस साल रिकॉर्ड 5 प्रतिशत की कमी के साथ 2.5 बिलियन टन घट सकता है। कोरोना वायरस महामारी के चरम पर होने के कारण इस जीवाश्म ईंधन की माँग में सबसे बड़ी गिरावट आई है। यही नहीं, महामारी की वजह से यात्रा, कार्य और उद्योगों पर अभूतपूर्व प्रतिबंधों ने हमारे शहरों में भी अच्छी गुणवत्ता की हवा सुनिश्चित की है। इस क्रम में प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्तर सभी महाद्वीपों में गिर गया है।
कोरोना वायरस महामारी आर्थिक गतिविधियों में वैश्विक कमी का कारण बनी है। यह चिंता का प्रमुख कारण है, पर मानवीय गतिविधियों के कम होने का पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ता है। अब देखिए न, इन दिनों औद्योगिक और परिवहन उत्सर्जन व अपशिष्ट निर्माण की तादाद कम हो गई है। यह प्रभाव कार्बन उत्सर्जन के विपरीत भी है जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय परिघटना के बाद 5 प्रतिशत तक बढ़ गया था।
मई महीने में भारत ने ही नहीं, बल्कि चीन और उत्तरी इटली ने भी अपने देश में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की है। लॉकडाउन के परिणामस्वरूप, मार्च और अप्रैल में दुनिया के प्रमुख शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स में ज़बरदस्त सुधार हुआ है। साथ ही साथ जल निकाय भी साफ़ हो रहे हैं और यमुना व गंगा जैसी नदियों ने देशव्यापी तालाबंदी के लागू होने के बाद से बेहद अहम सुधार देखे हैं।
इस स्थिति में जब सभी राष्ट्र कोरोना वायरस के साए में लगभग बंद हैं तो पर्यावरण काफ़ी अच्छी स्थिति में दिख रहा है। जब तक कोरोनो वायरस संकट आर्थिक गतिविधियों को कम करता रहेगा, कार्बन उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम ही रहेगा। देखा जाए तो यह बड़ा और टिकाऊ पर्यावरणीय सुधार है।
वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से होने वाली हर साल क़रीब 7 मिलियन मौतें महामारी के अनुपात में लगभग बराबर ही होती हैं।
हालाँकि, वायु प्रदूषण को कम करने के लिए लॉकडाउन कोई आदर्श तरीक़ा नहीं है लेकिन फ़िलहाल की स्थिति यह साबित करती है कि वायु प्रदूषण मानव निर्मित ही है और मनुष्य ही इसे दुरुस्त कर सकता है।
कोरोना वायरस संकट भारत को एक स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य में निवेश करने का अवसर दे रहा है, इस अवसर को हमें भुनाना ही होगा। ब्लैक कार्बन, मीथेन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन और ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन जैसे अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक ग्लोबल वार्मिंग में अहम भूमिका निभाते हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर उठाए जाने वाले सख़्त क़दम भोजन और पानी की कमी से निपटने में मदद कर कर सकते हैं व प्राकृतिक आपदाओं और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि को कम कर सकते हैं, जिससे अनगिनत व्यक्तियों और समुदायों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। दुनिया भर में, स्वस्थ लोग अपनी कम्युनिटी में अधिक संवेदनशील लोगों की रक्षा के लिए अपनी लाइफ़ स्टाइल को बदल रहे हैं। इसी तरह का समर्पण हमारी ऊर्जा ख़पत को काफ़ी हद तक बदल सकता है।
स्वास्थ्य की चिंताओं को दरकिनार करते हुए सामान्य रूप से जीवाश्म ईंधन को खोदना, जंगलों को काटना विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रहा है। अब समय आ गया है जब मौजूदा स्थिति को देखते हुए अपनी धरती की सुरक्षा के लिए एहतियातन क़दम उठाए जाएँ। इस नज़रिए से देखें तो कोरोना वायरस एक लक्षण है, एक संकेत है, जो प्रकृति की ख़ूबसूरती की ओर हमें ले जाता है। यह हमें इस बात का संकेत देता है कि अगर इसी तरह से स्वच्छ व सुरक्षित जलवायु हमें चाहिए तो भविष्य में अपने स्तर पर ही और भी बड़े लॉकडाउन के लिए अभ्यास करना होगा, पर बिना कोविड-19 जैसे वायरस के। यह इस बात का संकेत देता है कि अगर हम पर्यावरण के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं, तो कोविड-19 जैसी महामारियों का दंश झेलने के लिए हमें आगे भी तैयार रहना होगा।
अब समय आ गया है, हमें धरती माँ की पुकार सुननी होगी। अपनी धरती को अगर हमने माँ का दर्जा दिया है तो उसके साथ माँ जैसी भावना से पेश भी आना होगा।
वरना आधुनिक युग के महानतम वैज्ञानिक और ब्रह्मांड के कई रहस्यों को सुलझाने वाले खगोल विशेषज्ञ स्टीफ़न हॉकिंग की भविष्यवाणी सही साबित होगी। उनका मानना था कि पृथ्वी पर हम मनुष्यों के दिन अब पूरे हो चले हैं। हम यहाँ दस लाख साल बिता चुके हैं। पृथ्वी की उम्र अब महज दो सौ से पाँच सौ साल ही बची है। इसके बाद या तो कहीं से कोई धूमकेतु आकर इससे टकराएगा या सूरज का ताप इसे निगल जाने वाला है या कोई महामारी आएगी और यह धरती खाली हो जाएगी।
हॉकिंग के अनुसार मनुष्य को अगर एक या दस लाख साल और बचना है तो उसे पृथ्वी को छोड़कर किसी दूसरे ग्रह पर शरण लेनी होगी। अब यह ग्रह कौन सा होगा, इसकी तलाश अभी बाक़ी है। इस तलाश की रफ्तार फ़िलहाल बहुत धीमी है।पृथ्वी का मौसम, तापमान और यहाँ जीवन की परिस्थितियाँ जिस तेज़ रफ्तार से बदल रही हैं, उन्हें देखते हुए उनकी इस भविष्यवाणी पर भरोसा न करने की कोई वजह नहीं दिखती। लेकिन हाँ, लॉकडाउन के बाद जिस तरह से हमारी धरती और आसपास की जलवायु का हाल बदला है, उसको देखते हुए हम अभी भी प्रकृति के प्रति सबक़ ले लें, तो बहुत कुछ बदल सकता है।