देश में चारों ओर मंदी का शोर है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में नौकरियां जाने से लेकर उत्पादन गिरने, मूडीज के हमारी विकास दर को कम करने, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के -1.10 प्रतिशत सहित बेरोज़गारी के पिछले 45 सालों में शीर्ष स्तर पर पहुंच जाने जैसी कई भयावह ख़बरें हैं, जो बताती हैं कि आर्थिक मोर्चे पर हालात ठीक नहीं हैं। लेकिन मोदी सरकार के क़ानून मंत्री का बयान आर्थिक मंदी की वजह से अपनी नौकरियां गंवा देने वाले या व्यापार में घाटे की वजह से परेशान व्यापारियों के जख्मों पर नमक छिड़कने वाला है।
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद शनिवार को मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पत्रकारों से मुख़ातिब थे। इस दौरान देश में आर्थिक मंदी को लेकर पूछे गये एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 2 अक्टूबर को नेशनल हॉली डे वाले दिन तीन फ़िल्में रिलीज हुईं और एक दिन में इन तीन फ़िल्मों ने 120 करोड़ का कारोबार किया। प्रसाद ने इन फ़िल्मों के नाम वॉर, जोकर और सायरा बताये। इसके बाद वह ऐसे हंसे जैसे उन लोगों को मजाक उड़ा रहे हों जो लोग सरकार को बार-बार बता रहे हैं कि आर्थिक मोर्चे पर हालात ख़राब हैं और सरकार इस पर ध्यान दे।
प्रसाद ने हंसते हुए कहा कि जब देश में इकॉनमी की हालत अच्छी है तभी तो एक दिन में 120 करोड़ रुपये का रिटर्न आता है।
केंद्रीय मंत्री के इस बयान का क्या मतलब निकाला जाये। प्रसाद अनुभवी नेता हैं और उन्होंने जिस अंदाज में यह 120 करोड़ का आंकड़ा बताया है और मंदी को सिरे से नकारा है, उससे सवाल यह खड़ा होता है कि क्या आर्थिक मोर्चे को लेकर आ रही ख़बरें क्या झूठी हैं या वह ख़ुद सच छिपा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि रविशंकर प्रसाद ने ही इस तरह की बात कही हो, जिससे आम जनता की परेशानियों को लेकर सरकार के मंत्रियों की सोच पर सवाल खड़े होते हों। एक और ताज़ा मामला है केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से जुड़ा। पंजाब और महाराष्ट्र बैंक के कस्टमर अपना दर्द लेकर बीते कई दिनों से सड़कों पर भटक रहे हैं। इन कस्टमर्स को जब देश के खजाने को संभाल रहीं निर्मला सीतारमण से मिलने का मौक़ा मिला तो वित्त मंत्री ने दो टूक कह दिया कि यह मामला रिजर्व बैंक देखेगा और इस मामले से केंद्र सरकार का कुछ लेना-देना नहीं है।
मंदी के लिए ओला-उबर कैब ज़िम्मेदार
वित्त मंत्री ने कुछ दिन पहले ऐसा ही एक और हैरान करने वाला बयान दिया था। तब उन्होंने कहा था कि ऑटो सेक्टर में मंदी के लिए युवाओं की सोच और ओला-उबर कैब ज़िम्मेदार हैं। निर्मला सीतारमण ने कहा था कि युवा वर्ग नई कार के लिए ईएमआई का भुगतान करने से ज़्यादा ओला और उबर जैसी रेडियो टैक्सी सर्विस का इस्तेमाल करना पसंद कर रहे हैं और इस वजह से गाड़ियां नहीं बिक रही हैं। वित्त मंत्री के मुताबिक़, ऑटो सेक्टर में मंदी का यही कारण है।
पिछले ही महीने केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने भी कहा था कि बेरोज़गारी को लेकर आए आंकड़े पूरी तरह ग़लत हैं और किसी की भी नौकरी नहीं गई है। राय ने यह भी कहा था कि बुनियादी ढांचे में सुधार हो रहा है, कंपनियां निवेश कर रही हैं, करोड़ों लोग मुद्रा योजना के तहत ऋण ले रहे हैं और इससे पता चलता है कि रोज़गार बढ़ रहा है।
अगर नित्यानंद राय की बात को सही मानें तो फिर मोदी सरकार ग़लत है क्योंकि सरकार को लोकसभा चुनाव के बाद एनएसएसओ के उन आंकड़ों को स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जिनके मुताबिक़ बेरोज़गारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज़्यादा थी।
आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि अर्थव्यवस्था की आज जो हालत है, उसका मुख्य कारण नोटबंदी और फिर बग़ैर तैयारी के लागू की गई जीएसटी ही है। नोटबंदी और जीएसटी ने किस तरह देश के व्यापारियों और आम आदमी की कमर तोड़ी है, इससे जुड़ी सैकड़ों ख़बरें आ चुकी हैं।
नोटबंदी ने छीने 50 लाख रोज़गार!
इस साल अप्रैल में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी सेंटर फ़ॉर ससटेनेबल इम्पलॉयमेंट की ओर से जारी ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019’ रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नोटबंदी के बाद दो साल में 50 लाख लोग बेरोज़गार हो गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि 20 से 24 साल के आयु वर्ग में बेरोज़गारी सबसे ज़्यादा है और नौकरियाँ जाने से पुरुषों से कहीं ज़्यादा नुक़सान महिलाओं को हुआ है। यह रिपोर्ट 1,60,000 परिवारों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई थी।
8 नवंबर 2016 की आधी रात को प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी का एलान किया था और उसी रात से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट चलन से बाहर हो गए थे। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि नोटबंदी दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला था।
केंद्र सरकार के मंत्री चाहे कितने ही अज़ीब बयान देकर मंदी और अर्थव्यवस्था की ख़राब हालत को नज़रअंदाज करें लेकिन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकर परिषद के ही सदस्य उन्हें आईना दिखा चुके हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान ही प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिन रॉय ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट की ओर जा रही है और भारत भी ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीक़ा जैसे धीमी गति के विकासशील देशों की राह पर जा रहा है।
शमिका रवि ने मानी थी मंदी की बात
इसके बाद अगस्त में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक सदस्य शमिका रवि ने ट्विटर पर स्वीकार किया था कि देश में आर्थिक मंदी जैसे हालात हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा था कि अर्थव्यवस्था को सिर्फ़ वित्त मंत्रालय के हवाले छोड़ना कुछ ऐसा ही होगा जैसे किसी कंपनी की तरक़्क़ी की ज़िम्मेदारी उसके अकाउंट डिपार्टमेंट के हवाले कर दी जाए। उन्होंने ट्वीट में कहा था कि बड़े आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है और सिर्फ़ फेरबदल करने से कुछ नहीं होगा।
लेकिन हैरानी की बात है कि मोदी सरकार के मंत्री न तो प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्यों की बात मानते हैं और न ही मूडीज जैसी प्रतिष्ठित संस्था की। लेकिन उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता कि आख़िर आरबीआई ने विकास की दर क्यों घटा दी है, जीडीपी क्यों 5 फ़ीसदी पर आ गई है और कोर सेक्टर में निगेटिव ग्रोथ के पीछे क्या कारण है। और इन हालात के बीच प्रधानमंत्री ने अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में भारतीय समुदाय के लोगों से भारत की कई भाषाओं में पूरे आत्मविश्वास के साथ कह दिया कि भारत में सब अच्छा है और लोग मजे में हैं। और हालात कितने अच्छे हैं, इसका जवाब सरकार ही दे सकती है।