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नवरात्र से रामनवमी तक- आख़िर क्यों मूक दर्शक बनी रही पुलिस? 

नवरात्र से रामनवमी तक- आख़िर क्यों मूक दर्शक बनी रही पुलिस? 

नवरात्र से लेकर रामनवमी तक देश के कई राज्यों में हिंसा की ख़बरें क्यों आईं और वह भी तब जब कई मामलों में तो पुलिस भी मौजूद नज़र आई? प्रशासन की मौजूदगी में ऐसा क्यों हुआ?

रामनवमी पर जिस तरह की फिजां देश में बनीं, वैसी पहले कभी देखी-सुनी नहीं गयी। हर घटना एक जैसी। हर हंगामा मसजिद के पास। उकसावे और पथराव। खास क़िस्म के डीजे, खास क़िस्म के नारे। पुलिस वास्तव में दिखकर भी नहीं दिखी। मौजूद रहकर भी गायब रही। जो हुआ, होने दिया गया। जिनके बाजुओं में जितना था दम, उन्होंने उतना किया सितम।

देश के 10 राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ हुईं। दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीगसढ़, गुजरात, पश्चिम बंगाल, गोवा, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार और कर्नाटक पथराव, आगजनी, मारपीट की घटनाओं के गवाह बने। बिहार के मुजफ्फरपुर में मसजिद पर भगवा लहरा दिया गया। यूपी के जौनपुर और इससे पहले गाजीपुर में भी ऐसा ही हुआ।

किशोर ने नफरत का झंडा फहराया तो महंत ने निर्लज्जता का

जब नवरात्र शुरू हो रहा था तभी 2 अप्रैल को यूपी के गाजीपुर के गहमर गांव में मसजिद पर झंडा फहराने की घटना घट चुकी थी। यह घटना इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसमें 9वीं क्लास में पढ़ने वाले 14 वर्षीय किशोर की गिरफ्तारी हुई। किशोरों के बीच बोयी जा रही नफ़रत को बयां करती यह घटना है।

2 अप्रैल को ही सीतापुर ज़िले में महंत बजरंग मुनिदास ने मुसलिम महिलाओं से बलात्कार करने की चेतावनी दे डाली। खैराबाद क्षेत्र के शीशे वाली मसजिद के सामने उसने जो कुछ कहा वह बेहद शर्मनाक और उकसावापूर्ण था। “मैं बहुत प्यार से तुम्हें समझा दे रहा हूं कि अगर इस इलाक़े में कोई एक हिंदू लड़की छेड़ी तो मैं खुलेआम तुम्हारे घर से तुम्हारी बहू-बेटियों को लाकर बलात्कार करूंगा...।”

यह बयान इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि महंत ने यह बयान पुलिस की मौजूदगी में दिया।

फिर भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह बयान चौंकाता है कि रामनवमी पर देशभर में हिंसा हुई लेकिन रमजान में रोजा-इफ्तार होते हुए भी यूपी में सांप्रदायिकता की कोई घटना नहीं हुई।

यूपी में 25 करोड़ लोग रहते हैं। 800 स्थानों पर रामनवमी की शोभायात्रा और जुलूस थे। रमजान का महीना चल रहा है, रोजा इफ्तार के कार्यक्रम भी रहे होंगे, कहीं तू-तू मैं-मैं भी नहीं हुई।


योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश

क़ानून हाथ में लेती भीड़ भी दिखी और सरकार भी

मध्य प्रदेश की सरकार भी अराजकता को ही सुशासन का प्रमाण बताने में जुटी है। खरगोन में सांप्रदायिक तनाव के बाद शिवराज सरकार ने बुलडोजर से कई ऐसे मकान ध्वस्त कर दिए जो आरोपियों से जुड़े थे। मतलब फ़ैसला ऑन स्पॉट। किसी अदालत की कोई ज़रूरत नहीं रही। भीड़ और सरकार के बीच का फर्क मिटता दिखा।

खरगोन से ही एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कपिल मिश्रा नारे लगाते सुने जा सकते हैं ‘जिस घर से बुरहान निकलेगा, उस घर में घुसकर मारेंगे...जिस घर से पूसा निकलेगा,....’

वेज-नॉनवेज पर संग्राम

नवरात्र पर मांसाहार के मुद्दे पर नफरत घोला गया। यूपी, कर्नाटक, दिल्ली जैसे राज्यों में मांस बेचने को लेकर स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक फरमान जारी हुए। उस पर वाद-विवाद पूरे नवरात्र के दौरान जारी रहा। आखिरकार जेएनयू के कावेरी होस्टल में मांसाहार परोसे जाने को लेकर लेफ्ट-राइट छात्र भिड़ गये। दो साल पहले जेएनयू कैम्पस के भीतर घटी घटना जैसे जीवंत हो गयी। तब की घटना में दोषी लोगों की गिरफ्तारी आज तक नहीं हो सकी है। जाहिर है अब की घटना में भी वास्तविक दोषी लोग शायद ही पकड़े जाएं।

महाराष्ट्र में मसजिद में लाउडस्पीकर से नमाज नहीं पढ़ने को लेकर उठाया गया विवाद पूरे देश में फैला। उन्मादी लोगों ने जवाब में लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ने की ज़िद शुरू कर दी। इस वजह से भी जगह-जगह सांप्रदायिक तनाव हुए।

नवरात्र के दौरान और रामनवमी तक की शोभायात्राओं के बीच जो एक बात स्पष्ट रूप से ग़ौर करने की रही वह यह कि क़ानून और प्रशासन की नाफरमानी करनी ही है।

विभिन्न सरकारों ने या फिर राजनीतिक दलों के नेताओं ने दो टूक नहीं कहा कि क़ानून को हाथ में लेना ग़लत है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। उल्टे मध्य प्रदेश की सरकार तो इस बात का गवाह बनी कि बगैर दोष साबित हुए आरोपियों के घरों पर बुलडोज़र चलाया जाए और क़ानून को हाथ में लिया जाए।

‘वे’ ऐसे तो ‘हम’ वैसे

बीजेपी के नेताओं के सुर यही रहे कि वे ऐसा करेंगे, तो हम ऐसा करेंगे। ‘वे’ और ‘हम’ के बीच देश को बांटने वाली दलीलें मज़बूत हो रही हैं। नफ़रत का जवाब नफ़रत से देने को ही न्याय बताया जाने लगा है। क़ानून को हाथ में लेने को ज़रूरी क़रार दिया जा रहा है। न्यूज़ चैनल के एंकर भी इसी विचार को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं। वे भी एंकर के बजाए हिन्दू बने नज़र आने लगे हैं।

यह सोचना ग़लत है कि खुद को ‘हिन्दू’ बताकर अपराध करने की इजाज़त ले रही भीड़ हिन्दुओं के लिए बोल रही है। यूपी के नोएडा एक्सटेंशन में न्यूज़ 18 के पत्रकार सौरभ शर्मा को इसलिए ‘पाकिस्तानी’, ‘मुसलमान’ करार दिया गया कि वे रात 12 बजे के बाद भी लाउडस्पीकर पर धार्मिक कार्यक्रम का विरोध कर रहे थे। पुलिस के सामने भीड़ के बीच वे किसी तरह जान बचाकर भागे। उनकी पत्नी को भीड़ के सामने पुलिस ने बुलाया और पत्नी भी भीड़ की नफरत का शिकार बनी। 6 साल के बच्चे को भी इस नफरती भीड़ का सामना करना पड़ा।

जो उन्माद नवरात्र और रामनवमी के दौरान देखा गया है यह किसी धर्म विशेष के ख़िलाफ़ सीमित नहीं है, यह अपने से अलग सोच रखने वालों के ख़िलाफ़ है। पत्रकार और तटस्थ लोग भी उनके निशाने पर हैं क्योंकि कट्टरता को तटस्थता या उदारता कभी पसंद नहीं हुआ करती।

पुरुषोत्तम की मर्यादा तार-तार

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर जिस तरीक़े से मर्यादाएँ तोड़ी जा रही हैं वह सहिष्णु रहे हिन्दुओं का स्वभाव कभी नहीं रहा। हिन्दुओं को सहिष्णु बताकर उनकी सहिष्णुता तोड़ी जा रही है। इसके लिए दूसरे समुदाय और धर्म को कमतर बताया जाना, उन्हें हर बुरी बातों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना अब ऐसे तत्वों की आदत बन चुकी है।

श्रीलंका में बौद्ध अगर हिन्दुओं को असहिष्णु और खुद को सहिष्णु बताते हैं तो भारत में हिन्दू भी मुसलमानों के साथ वैसा ही सलूक कर रहे हैं। इज़राइल में मुसलमानों का यहूदियों को लेकर ऐसा ही रवैया है और यहूदियों का भी मुसलमानों के साथ समान क़िस्म का बर्ताव है। ईसाई और मुसलमान भी परस्पर एक-दूसरे को बुरा और खुद को अच्छा बताते हैं।

कहने का अर्थ यह है कि सारे धर्म एक-दूसरे को बुरा बता रहे हैं। तो क्या अब आगे की लड़ाइयाँ धर्म के ही नाम पर होने वाली हैं? धार्मिक लोगों के लिए यह गंभीर रूप से चिंताजनक दौर है।

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