मोदी सरकार से भिड़ने के मूड में हैं राकेश टिकैत?
योगी सरकार द्वारा ग़ाज़ीपुर बॉर्डर को खाली कराने की कोशिशों के बाद भावुक हुए राकेश टिकैत ने बीते कुछ दिनों में माहौल पूरी तरह बदल दिया है। कई राज्यों में हो रही किसान महापंचायतों में टिकैत इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे बनकर उभरे हैं और उनके ताज़ा भाषणों को सुनें तो इनमें वे मोदी सरकार को चुनौती देते दिखते हैं।
‘फिर दिल्ली जाएंगे’
गुरूवार को हरियाणा में हुई किसान महापंचायत में टिकैत ने कहा कि सरकार किसी ग़लतफहमी में न रहे कि यह आंदोलन दो महीने में ख़त्म हो जाएगा। उन्होंने कहा, “सरकार ने ज़्यादा दिक्कत की तो ये ट्रैक्टर भी वही हैं, किसान भी वही हैं और ये फिर दिल्ली में जाएंगे और अबकी बार खेत के औजार भी ले जाएंगे, दिल्ली इसे ध्यान से सुन ले।”
टिकैत ने आगे की योजना के बारे में कहा कि गुजरात से लेकर महाराष्ट्र और राजस्थान से लेकर बंगाल तक सभी जगह महापंचायत की जाएंगी। उन्होंने कहा कि पंजाब वालों को इस बार जाने नहीं देना है क्योंकि ये लंगर, भंडारा बहुत अच्छा लगाते हैं।
टिकैत ने कहा, “सरकार ने ज़्यादा स्थिति ख़राब की तो किसान बंगाल की ओर चल देंगे और उसका फातेहा पढ़ देंगे।”
किसान आंदोलन के लगभग तीन महीने पूरे होने वाले हैं और यह पूछा जा रहा है कि यह आंदोलन कब तक चलेगा, इसके जवाब में टिकैत ने पहले इस साल अक्टूबर तक आंदोलन चलने की बात कही और फिर 2024 की बात करने लगे।
टिकैत ने अपने आंदोलन को किसानों के अलावा भी दूसरे लोगों के बीच विस्तार देने की मंशा से कहा कि मुर्गी, बकरी पालने वाला और अंडे का व्यापार करने वाला भी किसान है और ये लड़ाई उनकी और मजदूरों की भी है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने बकवास की तो किसान खड़ी फसल में आग लगा देगा और एक दाना नहीं देगा। किसान नेता ने कहा कि अगला लक्ष्य 40 लाख ट्रैक्टरों को इकट्ठा करने का है।
सोशल मीडिया पर पोस्ट का जिक्र
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले टिकैत ने कहा कि सरकार अगर सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने वाले सरकारी कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी तो इसके ख़िलाफ भी लड़ाई जाएगी।
टिकैत विधायकों-सांसदों की पेंशन तक भी पहुंच गए और कहा कि इन लोगों को चार-चार पेंशन मिलती हैं और 60 साल तक नौकरी करने के बाद भी सरकारी कर्मचारी की पेंशन को ख़त्म किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों की लड़ाई हम लड़ेंगे।
कुल मिलाकर टिकैत की भाषा अब किसान नेता वाली नहीं राजनीतिक होती दिख रही है। देश के बड़े किसान नेता रहे महेंद्र सिंह टिकैत की किसान विरासत की सियासत को आगे बढ़ा रहे राकेश टिकैत 1988 में दिल्ली के बोट क्लब में हुई किसानों की रैली की कई बार बात करते हैं। ऐसा करके वह मोदी सरकार को चेताते हैं कि वह किसानों की ताक़त को हल्के में न आंके।
बड़ा नेता दिखाने की कोशिश
हालांकि टिकैत की इन सारी बातों को कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहे किसानों की बात नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि पंजाब और हरियाणा के किसान नेता अब तक मुद्दे पर केंद्रित होकर अपनी बातों को रखते रहे हैं लेकिन टिकैत अब सरकार पर हमलावर होने के साथ ही ख़ुद को किसानों का सबसे बड़ा नेता बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
ये साफ दिखाई देता है कि राकेश टिकैत मोदी सरकार से सीधी लड़ाई के मूड में हैं और शायद इसीलिए वह लोगों से ट्रैक्टर का मुंह दिल्ली की ओर रखने की बात करते हैं और कहते हैं कि कभी भी वहां जाने का बुलावा आ सकता है।
इस सब के बीच डर इसी बात का है कि टिकैत जिस तरह सरकारी कर्मचारियों और विधायकों-सांसदों की पेंशन के मुद्दों तक पहुंच गए हैं, उससे मोदी सरकार और बीजेपी के लिए यह कहने का मौक़ा रहेगा कि अब यह किसानों का आंदोलन न होकर राजनीतिक आंदोलन हो गया है। टिकैत को इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए।