यह कहना मुश्किल है कि यदि श्रीलंका के अलगाववादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) के प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के आदेश नहीं दिए होते तो इस संगठन का क्या हुआ होता।
21 मई, 2023 को 32 साल पूरे हो गए उस हत्याकांड के जो बहुत ही सोच समझ कर रची गई थी, उसे बहुत ही बारीकी से अंजाम दिया गया था और उस नेता को समय से पहले ही ख़त्म कर दिया गया था, जो अपनी लोकप्रियता के बल पर सत्ता में लौटने ही वाला था।
प्रभाकरण का बुरा समय
हालांकि एलटीटीई और प्रभाकरण ने इस ख़ुदकुश बमबाजी में अपनी भूमिका होने से इनकार किया था, पर इसके साथ ही उनका भाग्य चौपट हो गया।
श्रीलंका के पूर्व तमिल सांसद धर्मलिंगम सिद्धार्थन ने सबसे पहले यह महसूस किया था कि इस हत्याकांड की क्या कीमत प्रभाकरण को चुकानी होगी। उन्होंने कहा था, 'इजराई शनि (ज्योतिष के अनुसार, जीवन का खराब समय) साढ़े सात साल में खत्म हो जाता है। अब मैं बेहिचक कह सकता हूं कि प्रभाकरण का इजराई शनि 21 मई 1991 को ही शुरू हो गया जो जीवन भर चलता रहा।'
पीछे मुड़ कर देखने से लगता है कि सिद्धार्थन बिल्कुल सही थे।
प्रभाकरण ने अपने ख़ुफ़िया प्रमुख अम्मान पोट्टू के साथ मिल कर तय किया था कि राजीव गांधी को रास्ते से हटा दिया जाए क्योंकि उन्हें डर था कि राजीव फिर भारतीय सेना को श्रीलंका भेज सकते हैं।
कैसे बनी योजना?
राजीव गांधी की हत्या की ज़िम्मेदारी तमिल ख़ुफिया विभाग में शिवरासन नामक व्यक्ति को सौंपे जाने के बाद एलटीटीई ने यह फ़ैसला किया कि वह इस मामले में तमिलनाडु में मौजूद अपने नेटवर्क को शामिल नहीं करेगी।
एलटीटीई को यह पता था कि भारतीय सुरक्षा एजंसियों को वहाँ काम कर रहे इसके हर आदमी के बारे में जानकारी है और इसमें ख़ुफिया सेल के लोग भी शामिल हैं।
एलटीटीई प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण
कैसे बुनी गई साजिश?
तमिल शरणार्थियों से भरी एक नाव सितंबर 1990 में तमिलनाडु के रामेश्वरम तट पर पहुँची।
इसमें से उतरी एक महिला और दो पुरुषों ने भारतीय अधिकारियों के पास अपना पंजीकरण कराया, लेकिन कहा कि वे चेन्नई जाना चाहते हैं क्योंकि वहाँ उनके मित्र रहते हैं।
इसके कुछ हफ़्तों के बाद तमिल शरणार्थियों का एक और समूह रामेश्वरम के तट पर पहुँचा और उसमें से भी एक महिला और दो पुरुषों ने कहा कि वे चेन्नई में शरण लेना चाहते हैं।
साजिश में शामिल, साजिश से अनजान!
इन दोनों समूहों ने चेन्नई में अलग-अलग घर भाड़े पर लिया और जो लोग इनकी मदद कर रहे थे, उनसे कहा कि वे गृहयुद्ध से भाग कर सुरक्षित जगह में हैं।
इन छह तमिलों को भी यह पता नहीं था कि वे राजीव गांधी की हत्या के लिए प्रभाकरण के बनाए गए षडयंत्र का हिस्सा हैं।
श्रीलंका के युद्ध में शिवरासन की एक आँख चली गई थी और वह उसकी जगह शीशे की प्रोस्थेटिक आँख लगाए हुए रहता था और इसलिए उसे 'वन आईड जैक' नाम से जाना जाने लगा था। उसे जल्द ही पता चल गया कि भेजे गए यह छह लोग उसके कठिन काम को देखते हुए पर्याप्त नहीं हैं।
हत्या से ठीक पहले शिवरासन और खुदकुश हमलावर धनु (हाथ में माला लिए हुए)
शिवरासन, निक्सन और कंतन
एलटीटीई खुफ़िया विभाग के दो लोग निक्सन और कंतन भी तमिलनाडु पहुँचे। चेन्नई में कुछ दिन रहने के बाद शिवरासन श्रीलंका चला गया, लेकिन जनवरी 1991 में वह चेन्नई लौट आया।
इसी महीने भारत में केंद्र सरकार ने तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कषगम की सरकार को इस आधार पर बर्खास्त कर दिया था कि वह एलटीटीई पर नकेल कसने में नाकाम है।
साजिश का अगला चरण
पोट्टू अम्मान से इजाज़त लेकर शिवरासन ने लंदन में रहने वाले एलटीटीई प्रतिनिधि सतसिवन कृष्णकुमार उर्फ किट्टू को फ़ोन किया और उससे कहा कि वह चेन्नई में किसी उच्च पदस्थ भारतीय से उसका संपर्क करवा दे।
शिवरासन ने यह नहीं समझा कि वह बहुत बड़ी ग़लती कर रहा है। ईलम पीपल्स रिवोल्यूशनरी लिबरेशन फ्रंट (ईपीआरएलएफ़) के सांसद के. पद्मनाभ और उनके सहयोगियों की चेन्नई में हत्या और उसके अभियुक्तों के आसानी से बच निकलने के बाद भारतीय ख़ुफ़िया एजेन्सियों ने तमिलनाडु में एलटीटीई के लोगों की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखनी शुरू कर दी थी।
शिवरासन ने एक भारतीय तमिल मुथुराजा को फ़ोन किया और कहा कि वह श्रीलंका से आए कुछ लोगों की मदद करे, पर यह भी आगाह किया कि इसकी जानकारी किसी को न दी जाए।
किट्टू और मुथुराजा को यह पता नहीं था कि वे भारतीय ख़ुफ़िया एजेन्सियों के निशाने पर हैं। भारतीय एजेन्सियों को इसका आभास हो गया था कि कोई बहुत ही बड़ा कांड होने वाला है।
डीएमके को हटाने और श्रीलंका के तमिलों पर निगरानी बढ़ाए जाने के बीच ही मुथुराजा ने निक्सन को कुछ भारतीयों से मिलवाया, जिन्होंने बाद में हत्याकांड में अहम भूमिका निभाई थी।
भारतीय खु़फिया के लोग मुथुराजा का पीछा कर रहे थे कि एक दिन वह गायब हो गया और पोट्टू अम्मान के कहने पर श्रीलंका चला गया।
लेकिन मुथुराजा श्रीलंका पहुँच नहीं पाया, श्रीलंका नौसेना के जहाज़ से टकरा कर मुथुराजा की नाव डूब गई, एलटीटीई ने यह मान लिया कि वह मारा गया और उसे सम्मानित भी कर दिया। लेकिन वह जिंदा बच गया और श्रीलंका की नौसेना ने उसे पकड़ लिया।
राजीव गांधी से मुलाक़ात
इस बीच प्रभाकरण ने एलटीटीई के एक सदस्य कासी आनंदन से कहा कि वह राजीव गांधी से मुलाक़ात करे और अगले चुनाव में उनकी जीत के लिए उन्हें शुभकामनाएं दे। यह मुलाक़ात 5 मार्च 1991 को हुई।
इसके कुछ दिनों बाद लंदन में रहने वाले श्रीलंका के एक तमिल बैंकर ने राजीव गांधी को फ़ोन कर कहा कि एलटीटीई अतीत को भुला कर आगे की ओर देखना चाहता है।
ये दोनों ही काम इसलिए किए गए थे कि भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियाँ यह मान लें कि प्रभाकरण भारत के साथ एक नए रिश्ते की शुरुआत करना चाहता है।
ख़ुदकुश हमलावर पहुँची भारत
शिवरासन जो श्रीलंका चला गया था, 1991 में नाव से लौटा और उसके साथ धनु थी, जिसे खुदकुश हमला करना था। वे वेदअरण्यम के तट पर तमिलनाडु पहुँचे और वहां से बस से चेन्नई गए।
चेन्नई पहुँचने के 10 दिनों के भीतर धनु और उसकी सहयोगी शुभा ने एलटीटीई प्रमुख को लिखा, 'हम अपना उद्देश्य पाने के लिए कटिबद्ध हैं।'
हत्या के ठीक पहले राजीव गांधी। सबसे पीछे बालों में फूल लगाई हुई खुदकुश हमलावर धनु।
नाकाम हो सकती थी साजिश
इस बीच इंटेलीजेंस ब्यूरो ने तमिलनाडु से जाफ़ना को भेजा गया एक कोडेड मैसेज पकड़ लिया और उसे डीकोड करने के लिए दिल्ली स्थित मुख्यालय को भेज दिया.
राजीव गांधी की हत्या के बाद डीकोड किए गए इस मैसेज में एक लाइन का मैसेज शिवरासन ने पोट्टू अम्मान को दिया था-'भारत में किसी को हमारे ऑपरेशन की जानकारी नहीं है।'
7 मई को भेजे गए मैसेज में कहा गया था, 'यदि जाफ़ना लौटा तो पोट्टू अम्मान के आदमी के रूप में एक वैश्विक नेता की हत्या करने के अविश्सनीय काम को अंजाम देने के बाद ही लौटूंगा।'
हत्या का रिहर्सल?
शिवरासन खुद को एक पत्रकार बताता फिरता था। उसने कांग्रेस पार्टी के कुछ लोगों से यह पता लगा लिया कि 21 मई 1991 की रात श्रीपेरम्बुदुर में राजीव गांधी की चुनाव रैली है।
हत्या को अंजाम देने के पहले इसका रिहर्सल किया गया ताकि सबकुछ ठीक रहे। चेन्नई में विश्वनाथ प्रताप सिंह की एक सभा में धनु गई और उसने सिंह का पैर छूकर उन्हें प्रणाम किया।
इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग की गई और यह देखा गया कि इसमें कुछ गड़बड़ तो नहीं है। इसमें कोई चूक नहीं थी।
राजीव गांधी के हत्यारों ने 20 मई 1991 को चेन्नई में एक फिल्म देखी और वहाँ से श्रीपेरेम्बुदुर गए। वहां उन्हें हरि बाबू नामक एक फोटोग्राफर से मिलवाया गया, जिसे इस पूरी साजिश की कोई भनक तक नहीं थी।
धनु रैली में पहुँची तो उसके हाथ में चंदन की एक माला थी और उसने बम लगी जैकेट पहन रखी थी, जो उसके ढीले ढाले सलवार कमीज़ के अंदर छुपी हुई थी।
एक महिला पुलिस अधिकारी ने वहां उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन शिवरासन ने कहा कि वह राजीव गांधी को माला पहनाना चाहती है।
राजीव गांधी जब वहाँ पहुँचे और मंच की ओर जाने लगे तो उस महिला पुलिस अधिकारी ने धनु को एक बार फिर रोकने की कोशिश की। लेकिन राजीव गांधी ने उस ऐसा करने से रोक दिया और कहा, 'सबको मौका मिलना चाहिए।'
धनु राजीव गांधी के पैर छूने नीचे झुकी और बम लगे जैकेट का बटन दबा दिया। उस हत्याकांड में राजीव गांधी समेत 16 लोग मारे गए।
('द हिन्दू' से साभार)