राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से गुरुवार को मुलाक़ात की है। इससे राजस्थान मंत्रिमंडल के विस्तार और उसमें असंतुष्ट गुट के नेता सचिन पायलट के करीबियों को शामिल करने की संभावना ज़ोर हो गई है।
समझा जाता है कि इस मुलाकात के बाद अशोक गहलोत मंत्रिमंडल का विस्तार कर सकते हैं और कुछ लोगों को सरकार के निगमों के अध्यक्ष बना सकते हैं।
कुछ दिन पहले दोनों गुटों के बीच समझौते का एक फ़ॉर्मूला यह निकाला गया था कि सचिन पायलट के तीन-चार विश्वस्तों को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया जाए और कुछ दूसरे विधायकों को अलग-अलग बोर्ड वगैरह सरकारी निकायों में लगा दिया जाए। इससे मुख्यमंत्री भी खुश रहेंगे और असंतुष्टों की शिकायत भी दूर हो जाएगी। समझा जाता है कि इस पर सहमति बन गई है।
इसके पहले बुधवार को गहलोत ने दिल्ली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कई बड़े नेताओं से मुलाक़ात की थी। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के गुट ने दबाव बनाया हुआ है कि कैबिनेट का विस्तार सहित राजनीतिक नियुक्तियों के मामले में गहलोत जल्द क़दम उठाएं।
कांग्रेस नेताओं के साथ गहलोत की यह बैठक तीन घंटे तक चली। इस दौरान राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी अजय माकन और महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल भी मौजूद रहे। बैठक के बाद माकन ने कहा कि राजस्थान के राजनीतिक हालात और राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बैठक में चर्चा हुई।
हाल ही में पायलट भी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका से मिले थे।
पायलट समर्थकों को उम्मीद है कि जिस तरह कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब के मसलों को सुलझाने में ऊर्जा ख़र्च की है उतना ही ध्यान वह राजस्थान पर भी देगा। पायलट इस बात को लेकर नाराज़गी जता चुके हैं कि भरोसा दिए जाने के एक साल बाद भी उनसे किए गए वादों को हाईकमान ने पूरा नहीं किया है। पायलट समर्थक विधायक हेमाराम चौधरी ने तो विधानसभा से इस्तीफ़ा दे दिया था और विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने कैबिनेट विस्तार न होने पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी।
पायलट गुट ने की थी बग़ावत
सचिन पायलट की मांग है कि उनके समर्थकों को गहलोत कैबिनेट में जगह दी जाए। इसके अलावा सरकारी आयोगों और निगमों में भी नियुक्तियां की जानी हैं। बता दें कि पिछले साल पायलट अपने समर्थक 18 विधायकों के साथ मानेसर के एक होटल में आ गए थे। तब पायलट और गहलोत खेमों के बीच एक महीने तक टकराव चला था और कांग्रेस हाईकमान को दख़ल देकर इसे टालना पड़ा था।
राजस्थान में दिसंबर, 2018 में विधानसभा के चुनाव हुए थे और चुनाव नतीजों के बाद पायलट समर्थकों की मांग थी कि उनके नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। पायलट तब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। सरकार बनने पर उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन बग़ावत के बाद उनके हाथ से ये दोनों अहम पद चले गए थे।
जीत से गदगद है गहलोत खेमा
राजस्थान में वल्लभनगर और धरियावद सीट पर हुए हालिया उपचुनाव में कांग्रेस को जोरदार जीत मिली है और बीजेपी की शर्मनाक हार हुई है। बीजेपी एक सीट पर तीसरे और दूसरी सीट पर चौथे स्थान पर रही है। जबकि राज्य में वह बड़ी सियासी ताक़त है। इसके पीछे बीजेपी में चल रही गुटबाज़ी और अशोक गहलोत की जनता के बीच पकड़ भी अहम कारण है। जीत के बाद गहलोत खेमा बेहद ख़ुश है और उसे उम्मीद है कि 2023 से पहले राज्य में किसी भी तरह का सत्ता परिवर्तन नहीं होगा।
कांग्रेस आलाकमान को भी इस बात का डर है कि मंत्रिमंडल विस्तार में देर होने पर पायलट गुट का सब्र अब जवाब दे सकता है और सचिन पायलट कोई बड़ा क़दम उठा सकते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे युवा नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने से कांग्रेस को झटका लगा है। इसलिए आलाकमान गहलोत से जल्द से जल्द कैबिनेट का विस्तार करने के लिए कह सकता है।