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राजस्थान बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची में क्या वसुंधरा खेमा दरकिनार? 

राजस्थान बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची में क्या वसुंधरा खेमा दरकिनार? 

राजस्थान में बीजेपी के सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा के मायने क्या हैं? वसुंधरा राजे के चेहरा आगे क्यों नहीं किया गया? इन सवालों से इतर उम्मीदवारों की पहली सूची में क्या वसुंधरा खेमे को तवज्जो मिली?

बीजेपी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ घंटे बाद जब उम्मदवारों की पहली सूची जारी की तो उसमें वसुंधरा राजे के कई वफादारों के नाम नहीं थे। राजपाल सिंह शेखावत, नरपत सिंह राजवी और रोहिताश्व शर्मा जैसे वसुंधरा के वफादारों का टिकट कट गया है और उनके विरोधियों को टिकट दिया गया है।

जयपुर के विद्याधर नगर से दीया कुमारी की उम्मीदवारी तय की गई है। और इसके साथ ही इस सीट पर भैरों सिंह शेखावत के परिवार का वर्चस्व खत्म हो गया है। पूर्व उपराष्ट्रपति के दामाद नरपत सिंह राजवी ने 2018 सहित कई बार यह सीट जीती थी। अब ऐसी अटकलें थीं कि उनके बेटे अभिमन्यु उनकी जगह लेंगे। लेकिन सोमवार को आई बीजेपी की पहली सूची ने साफ़ कर दिया कि दीया कुमारी उम्मीदवार होंगी।

वैसे, यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब कहा जा रहा है कि वसुंधरा राजे पहले से ही नाराज़ हैं। जब भाजपा की परिवर्तन यात्रा वसुंधरा राजे के गढ़ हाड़ौती क्षेत्र में पहुँची थी तो वसुंधरा गायब थीं। मंच पर भाजपा कार्यकर्ता असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ परंपरागत राजस्थानी पगड़ी और तलवार भेंट कर फोटो सेशन कराते दिखे थे। हाड़ौती में कोटा, बूंदी और झालावड़ आते हैं। वसुंधरा झालावाड़ से 33 वर्षों से या तो विधायक रहीं या सांसद रहीं, वह इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम से गायब रहीं। वसुंधरा पिछले कुछ समय से राजस्थान के राजनीतिक पटल से गायब थीं। 

इससे पहले अगस्त महीने में भी वसुंधरा को बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से झटका लगा था! उन्हें दो समितियों से बाहर कर दिया गया था। तब राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा की दो समितियों- प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति और प्रदेश संकल्प पत्र समिति में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम शामिल नहीं था। तब भी यही सवाल उठ रहे थे कि क्या बीजेपी ने वसुंधरा राजे को राजस्थान की राजनीति से किनारे कर दिया है।

इसके बाद से लगातार कहा जा रहा है कि बीजेपी राजस्थान में विकल्प की तलाश में है और वसुंधरा राजे को किनारे लगाया जा रहा है। हालाँकि बीजेपी की ओर से ऐसा कुछ आधिकारिक तौर पर नहीं कहा गया है। पार्टी की ओर से यही कहा जा रहा है कि इस बार विधानसभा के चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा कोई नहीं होगा और सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। 

प्रधानमंत्री मोदी ने एक भाषण में कहा था, 'इस विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक ही चेहरा है और वह कमल है, हमारा उम्मीदवार सिर्फ कमल है। इसलिए एकजुटता के साथ कमल को जिताने के लिए भाजपा कार्यकर्ता काम करें।'

क्या सच में वसुंधरा राजे को दरकिनार किया जा रहा है? यदि ऐसा है तो फिर वसुंधरा भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष क्यों हैं?

जुलाई में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा की नई टीम में भी उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर बरकरार रखा गया। हाल के दिनों में राजस्थान में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में वसुंधरा की सक्रिय भागीदारी देखने को मिली है। लेकिन उनकी सक्रियता उस तरह की नहीं रही है। 

बीजेपी की विशेष रणनीति

कुछ रिपोर्टों के अनुसार कुछ समर्थक मानते हैं कि वसुंधरा को पूरी तरह से साइडलाइन नहीं किया गया है। दलील दी जा रही है कि सर्वे में पिछड़ रही सीटों पर दिग्गज नेताओं को लड़ाने की रणनीति बनाई गई है। कहा जा रहा है कि किरोड़ी लाल मीणा, शुभकरण चौधरी, बबलू चौधरी जैसे उम्मीदवार वसुंधरा के समर्थक हैं और उनको टिकट मिले हैं। जिनके नाम काटे गए हैं उनके नाम अगली सूचियों में आने की उनके समर्थकों को उम्मीद है। 

बता दें कि बीजेपी ने आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए सोमवार को उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी। सूची में 41 उम्मीदवारों के नाम हैं, जिनमें सात सांसद भी शामिल हैं। सांसद नरेंद्र कुमार को मंडावा से, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को झोटवाड़ा से, दीया कुमारी को विद्याधर नगर से, बाबा बालकनाथ को तिजारा से, डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को सवाई माधोपुर से, भागीरथ चौधरी को किशनगढ़ से और देवजी पटेल को सांचोर विधानसभा सीट से उतारा गया है। 

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