राजस्थान कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। दो बड़े नेताओं की आपस की लड़ाई जगजाहिर है। लड़ाई का कारण भी जगजाहिर है, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी अब तक इसको देखता आ रहा है। उसके बाद भी अभी तक इससे निपटने के प्रयास नहीं किये गये। चुनावी साल होने के कारण हालात गंभीर हो गये तब पार्टी ने अब इससे निपटने के प्रयास शुरू कर दिये हैं।
शीर्ष नेतृत्व से मिल रहे संकेतों के अनुसार राजस्थान संकट को हल करने और पार्टी में एकता बहाल करने के लिए एक "बड़ी सर्जरी" की जाएगी। सर्जरी किस तरह की होगी और कब होगी, यह अन्य वरिष्ठ नेताओं से मिली प्रतिक्रिया और राज्य की राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करेगी।
लेकिन उससे पहले के घटनाक्रम में सचिन पायलट ने मंगलवार को ज्योतिबा फुले के जन्मदिन पर अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ एक दिन का अनशन किया। इसको पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी के खिलाफ गतिविधि बताया। पायलट के धरने के अगले दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन उन्होंने सचिन पायलट पर कुछ भी नहीं बोला।
एक दिन के धरने के बाद पायलट बुधवार को दिल्ली पहुंचे हुए थे। दिल्ली में पायलट ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद अब खबर आ रही है कि कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान में बड़े बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने स्थिति का संज्ञान लिया है और जल्द ही इस पर हस्तक्षेप करने का फैसला किया है। इस दौरान पार्टी के राजस्थान प्रभारी महासचिव सुखजिंदर रंधावा ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात करके पार्टी अध्यक्ष को राज्य की स्थिति के बारे में जानकारी दी।
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस पार्टी राजस्थान में पंजाब की गलती नहीं दोहराना चाहती है। पंजाब में चुनाव से कुछ महीने पहले अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया था। पद से हटाए जाने के बाद अमरिंदर सिंह ने पहले खुद की पार्टी बनाई और फिर भाजपा ज्वाइन कर ली। इसका नुक़सान यह हुआ कि पार्टी की पंजाब में करारी हार हुई थी।
ऐसे में पार्टी इस प्रकरण को दोबारा नहीं दोहराना चाहती है। देखना होगा कि चुनावों से पहले पार्टी क्या बदलाव करती है। उससे ज्यादा इस बात पर नजर रहेगी कि पार्टी गहलोत और पायलट के बीच चल रही लड़ाई को कैसे थामती है क्योंकि पायलट राजस्थान के युवाओं में काफी लोकप्रिय माने जाते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में पायलट पार्टी के अध्यक्ष थे, उनके नेतृत्व में लड़े गये चुनाव में पार्टी को बहुमत से एक कम सीट हासिल हुई और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया। उसके बाद से ही गहलोत और पायलट के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर लड़ाई छिड़ी हुई है।
राज्य में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि पार्टी इस बार बेहतर हालत में है और सब कुछ ठीक रहा तो अगली बार सत्ता में लौटने की भी संभावनाएं हैं। लेकिन इससे पहले पार्टी में चल रही अंदरूनी लड़ाई को रोकना जरूरी है।