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दलित छात्र की मौतः भांडे में ही भेद है ..!

दलित छात्र की मौतः भांडे में ही भेद है ..!

राजस्थान के सरस्वती विद्या मंदिर में दलित छात्र की मौत पर लेखक भवंर मेघवंशी ने तमाम सवाल उठाते हुए कहा कि राजस्थान में सवर्ण जातियों का पूरा ईकोसिस्टम इस मामले को दबाने में जुट गया है। हद तो यह है कि ये लोग ऐसी घटना होने से ही इनकार कर रहे हैं। तो क्या माना जाए कि उस दलित छात्र की मौत अपने आप हो गई।

राजस्थान के जालोर जिले के सायला ब्लॉक के सुराणा गाँव की सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल की तीसरी कक्षा का नौ वर्षीय दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल भारत के घिनौने जातिवाद की भेंट चढ़ गया। शिक्षक द्वारा की गई पिटाई से घायल हुए इस मासूम की इलाज के दौरान मौत हो गई। अब इस मामले को सवर्ण जातियों का पूरा ईकोसिस्टम जिस तरह से दबा रहा है, वो चिन्ता का विषय है।

छात्र इंद्र कुमार का उसके गाँव में अंतिम संस्कार किया जा चुका है। अंतिम विधि से पूर्व वहाँ पहुँचे इंसाफ़ माँग रहे लोगों पर राज्य के दमन की लाठियाँ भी चली, शायद इंद्र कुमार का खून कम था। इसलिए और भी दलितों का खून बहाया गया। यहाँ तक कि मृत छात्र के शोक संतप्त परिजनों को भी पुलिस की लाठियों का शिकार होना पड़ा, हमारा सिस्टम कितना असंवेदनशील है,इससे यह पता चलता है।

पूरे प्रकरण में राज्य जातिवादी तत्वों के समक्ष घुटने टेकते नज़र आया, मुआवजा देने तक में भेदभाव साफ़ साफ़ नज़र आया। इस सूबे में अजब सी रवायत क़ायम हो गई है कि ग़ैर दलित की हत्या हो तो उसे 50 लाख का मुआवजा और परिजन को नौकरी दी जाती है, पर दलितों की हत्या पर मुआवजा 5 लाख दिया जाता है, नौकरी का तो सवाल ही नहीं उठता है। राज्य को इतना संवेदनहीन नहीं होना चाहिए, उसकी नज़र में हर नागरिक बराबर होना चाहिए। इस सरकारी भेदभाव के ख़िलाफ़ देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में ज़बर्दस्त आक्रोश व्याप्त है, हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि सत्तारूढ़ दल के विधायक पाना चंद मेघवाल ने तो अपनी विधायकी से इस्तीफ़ा तक दे दिया है,और भी लोग इस्तीफ़े देने की तैयारी में हैं।

अगर शासन ने समय रहते इस मामले को नहीं संभाला तो यह सत्ता प्रतिष्ठान के लिए जानलेवा होग। .जो लोग,समूह और जातियाँ इस निर्मम हत्याकांड को चतुराई से शब्दों की बाज़ीगरी करके उचित ठहराने का दुष्कर्म कर रहे हैं, वे भी इसका खामियाजा भुगतेंगे, क्योंकि दलितों की यह जनरेशन सहन करने को तैयार नहीं है। वह जवाब देगी हर मोर्चे पर,कोई मुग़ालते में न रहे। 

शिक्षा के कथित मंदिर में दलित छात्र के साथ जातिजन्य अत्याचार के ख़िलाफ़ देशव्यापी आक्रोश फूट पड़ा जो कि स्वाभाविक ही है। ऐसी क्रूरता और निर्दयता, वो भी शिक्षक द्वारा ,कैसे बर्दाश्त की जा सकती है,भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज हो। हालांकि आरोपी शिक्षक छैल सिंह को गिरफ़्तार किया जा चुका है।

छैल सिंह भौमिया राजपूत समुदाय से ताल्लुक़ रखता है। पहले किसी ने  उसे राजपूत लिखा तो किसी ने राजपुरोहित भी लिख दिया।  बाद में भूल सुधार करके उसकी सही जाति का उल्लेख किया गया। छैल सिंह अपने एक जीनगर पार्टनर के साथ इस विद्यालय का संचालक था और हेड मास्टर भी। हालाँकि वह सुराणा गाँव का निवासी न हो कर चीतलवाना क्षेत्र के झाब नामक गाँव का निवासी है और यहीं रहकर अपने विद्यालय को संचालित करता है। 

सुराणा गाँव के इस सरस्वती विद्या मंदिर में सभी जातियों के 350 स्टूडेंट अध्ययनरत है। यह गाँव भौमिया राजपूत समुदाय के बाहुल्य वाला है। विद्यालय में दलित विद्यार्थियों के साथ साथ दलित व आदिवासी शिक्षक भी नियुक्त है और एक पार्टनर तो जीनगर है जो दलित समुदाय का ही है। मृत छात्र इंद्र कुमार मेघवाल के पिता देवा राम एक वीडियो द्वारा और चाचा ने पुलिस को दी तहरीर जो बाद में प्राथमिक सूचना रपट के रूप में दर्ज हुई, उसमें बताया कि प्यास लगने पर नौ वर्षीय इंद्र कुमार मेघवाल को प्यास लगी।   उसने स्कूल के हेड मास्टर छैल सिंह के लिए पानी पीने हेतु रखे गए मटके से पानी पी लिया। इससे आग बबूला हेडमास्टर ने मासूम बच्चे के साथ मारपीट की,जिससे उसके दाहिने कान और आँख पर गम्भीर चौटें आई और उसकी नस फट गई, इलाज हेतु बागोडा,भीनमाल,डीसा,मेहसाणा,उदयपुर और अहमदाबाद ले गये, जहां पर उपचार के दौरान बालक इंद्र की मौत हो गई। 

इस बीच मृतक छात्र इंद्र के पिता देवा राम मेघवाल और आरोपी अध्यापक छैल सिंह के 1मध्य फ़ोन पर बात हुई। जिसमें देवा राम  शिक्षक से यह कह रहा है कि आपको इतना ज़ोर से नहीं मारना चाहिए। आपको बच्चों को इस तरह मारने का कोई अधिकार नहीं है। शिक्षक अपना क़सूर मानते हुए इलाज में मदद करने की बात कहता सुनाई पड़ रहा है। इसके बाद गाँव स्तर पर डेढ़ लाख रुपए में कोई समझौता होने का दावा किया जा रहा है।

इस क्रूर कांड की ख़बर मीडिया में आने और सोशल मीडिया पर घटना के बारे में पोस्ट्स वायरल होने के बाद पुलिस व प्रशासन हरकत में आया और उसने पीड़ित पक्ष की तहरीर पर एफआईआर दर्ज की और आरोपी शिक्षक को हिरासत में लिया। बाद में पोस्टमार्टम के बाद उक्त शिक्षक को गिरफ़्तार कर लिया गया।

शिक्षक के गिरफ़्तार होते ही शिक्षक की जाति के लोग संगठित और सक्रिय हुये और उन्होंने यह कहते हुए कि ‘पानी की मटकी छूने और मारपीट करने की बात झूठ है’, आरोपी का बचाव करते हुए बेहद सुनियोजित और व्यवस्थित काउंटर नैरेटिव सेट किया गया तथा पूरा जातिवादी ईकोसिस्टम सक्रिय हो गया।

सोशल मीडिया पर जातिवादी संगठन लिख रहे हैं कि उस विद्यालय में कोई मटकी थी ही नहीं,सब लोग पानी टंकी से पीते थे। पानी की बात,मटकी की बात, छुआछूत की बात और यहाँ तक कि मारपीट की बात भी सच नहीं है, लड़का पहले से ही बीमार था,बच्चे आपस में झगड़े होंगे, जिससे चोट लग गई होगी।

उसी स्कूल के एक अध्यापक गटाराम मेघवाल और कुछ विद्यार्थियों को मीडिया के समक्ष पेश किया गया कि पानी की मटकी की बात सही नहीं है। इस स्कूल में कोई भेदभाव नहीं है। न ही बच्चे के साथ मारपीट की गई। लगभग इन्हीं सुरों में जालोर बीजेपी विधायक योगेश्वर गर्ग ने भी अपना सुर मिलाया और खुलेआम आरोपी शिक्षक को बचाने की कोशिश करते हुए वीडियो जारी किया है। पुलिस ने भी बिना जांच पूरा किए ही मीडिया को बयान दे दिया कि मटकी का एंगल नहीं लग रहा है।

इस वक्त वहाँ की बहुसंख्यक वर्चस्वशाली जाति के लोग,उनके जातिवादी संगठन,मीडिया,विधायक,स्कूल के विद्यार्थी और कुछ शिक्षक यह साबित करने में लगे हुए है कि मृत छात्र के पानी का मटका छूने जैसी कोई बात ही नहीं हुई और न ही मारपीट। अब सवाल यह है कि अगर पानी की मटकी नहीं थी तो शिक्षक पानी कहाँ से पीते थे ? इसका जवाब यह है कि विद्यार्थी हो अथवा शिक्षक, यहाँ तक कि गाँव वाले भी स्कूल में स्थित टंकी से पानी पीते थे।

स्कूल में स्थित पानी की जिस टंकी का फ़ोटो टीवी चैनल्स दिखा रहे हैं, उसे देखकर तो उपरोक्त दावे में दम नहीं नज़र आता। क्योंकि टंकी पर साढ़े तीन सौ बच्चे और शिक्षक व अभिभावक तक पानी पी सकें, ऐसा लगता नहीं है। टंकी से नल जिस ऊंचाई पर लगा हैं, वह छोटे बच्चों के लिए तो ठीक है, लेकिन अगर शिक्षक व ग्रामीणों को पानी उसी टंकी के उसी नल से पीना पड़े तो शायद वे नीचे ज़मीन पर घुटने टिका कर नल के मुँह लगा कर पीते होंगे।  क्या यह हेड मास्टर व अन्य शिक्षकगण करते थे या अपने लिए अलग पानी पीने की मटकी रखते थे, यह तो उन्हीं का सच है,जिसे वे चाहे तो बोले अन्यथा झूठ भी बोलने को स्वतंत्र ही हैं।

अगर पानी की मटकी छूने का मामला नहीं था तो फिर वो क्या मामला था, जिसकी वजह से नौ वर्षीय मासूम को हेड मास्टर को इतना पीटना पड़ा कि उसकी जान ही चली गई, वो कारण सामने आना चाहिये। पुलिस को यह भी पता करना चाहिये कि इस निर्दयतापूर्ण पिटाई का क्या कारण था ?

यह भी दावा है कि हेड मास्टर ने पीटा ही नहीं, फिर वह क्यों फ़ोन पर गलती स्वीकार रहा है और उसे डेढ़ लाख में समझौता करने की क्या मजबूरी थी। बिना गलती डेढ़ रुपया भी क्यों देना चाहिये ? बेवजह तो कोई किसी का मुँह बंद करवाने को दबाव डाल कर समझौता नहीं करता और न ही पैसा देता है। समझौते की क्या मजबूरी थी? इतने बड़े कांड को तेइस दिन तक छिपा कर रख दिया गया, अगर दलित छात्र इंद्र कुमार की मृत्यु नहीं होती तो पूरा मामला मैनेज ही किया जा चुका था। क्या कभी भी यह स्कूली छात्र के साथ हुआ भेदभाव व अत्याचार सामने आ पाता ?क्या बच्चों की कोई गरिमा नहीं है,क्या उनके कोई मानवीय अधिकार नहीं हैं ? क्या उनको सजा देने का अधिकार शिक्षकों को हैं? 

बहुत सारे प्रश्न है जो अनुत्तरित है,जिनके जवाब जाँच और एफएसएल रिपोर्ट से मिलेंगे,लेकिन इससे पहले ही घोर जातिवादी तत्व और उनके संगठन यह साबित करने को आतुर है कि न मटकी का मामला है और न ही मारपीट का, यहाँ तक कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से दावे कर रहे हैं, जैसे कि डॉक्टर ने इन्हीं के कहने पर रिपोर्ट बनाई हो या बनाते ही इन्हीं कास्ट एलिमेंट्स को उनकी प्रतिलिपि पकड़ाई हो।

सोशल मीडिया पर जातिवादी तत्वों और उनके संगठनों की तरफ़ से हम जैसे लोगों को निरंतर चैलेंज दिया जा रहा है कि निष्पक्ष लिखो, पानी की बात मत कहो,मटकी का ज़िक्र मत करो, सुराणा में भेदभाव जैसी कोई बात ही नहीं है। हमारा भाईचारे का ताना बाना मत बिगाड़ो, एक न एक दिन तुमको सौहार्द ख़त्म करने वाली पोस्टें डिलीट करनी होगी, तब क्या तुम सार्वजनिक रूप से गलती मानोगे, माफ़ी माँगोगे ? आदि…

मैं कहना चाहता हूँ कि पूरे देश में भयंकर जातिवाद है और जालोर में तो विशेष तौर पर बेहद घिनौना छुआछूत और भेदभाव तथा अन्याय अत्याचार है। वहाँ पानी की मटकी और शिक्षा में भेदभाव के मामले संभव है, इसकी गहन जाँच हो और मिड डे मील,आँगनवाड़ी के पोषाहार व नरेगा में पानी पिलाने में नियुक्त लोगों का सामाजिक अंकेक्षण किया जाए, जिले के तमाम सरकारी व ग़ैर सरकारी विद्यालयों का एक जातिगत भेदभाव का सर्वे किया जाये तो सच्चाई सामने आ जाएगी कि कौन सा सौहार्द और क्या भाईचारा है वहाँ और दलित स्टूडेंट्स की क्या हालात है?

अंत में जातिवादी मानसिकता के लोगों से सिर्फ़ इतना सा सवाल है कि अगर न मृतक छात्र इंद्र के साथ पानी पीने की मटकी में भेदभाव हुआ और न ही हेडमास्टर ने उसे मारा तो क्या उस नौ वर्षीय मासूम ने अपने आप को मार डाला ? कुछ तो मानवता रखो,थोड़ी तो इंसानियत बचा कर रखो और तनिक तो पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना बरतो। क्या इंसान होने की इतनी न्यूनतम अर्हता भी नहीं बची है,अगर नहीं,तो मुझे कुछ भी नहीं कहना है।

(भंवर मेघवंशी, मैं एक कारसेवक था के लेखक और शून्यकाल डॉटकॉम के सम्पादक हैं)

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