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चुनावी साल में रैलियों के जरिये जनता के बीच पहुंचेंगे सचिन पायलट

चुनावी साल में रैलियों के जरिये जनता के बीच पहुंचेंगे सचिन पायलट

सचिन पायलट के समर्थक साल 2018 में राजस्थान में कांग्रेस को मिली जीत का श्रेय अपने नेता को देते हैं और उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग करते रहे हैं। देखना होगा कि पायलट अपनी जनसभाओं के जरिये क्या सियासी संदेश देते हैं। 

राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट 16 जनवरी से राजस्थान के कई जिलों में आम लोगों के बीच पहुंचेंगे। राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले सचिन पायलट रैलियों के जरिये अपनी सियासी ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे। 

पायलट 16 जनवरी को नागौर, 17 जनवरी को हनुमानगढ़, 18 जनवरी को झुंझुनू, 19 जनवरी को पाली और 20 जनवरी को जयपुर में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। बताना होगा कि 26 जनवरी से कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी महिलाओं को साथ लेकर रैलियां शुरू करेंगी। 

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का सियासी झगड़ा किसी से छिपा नहीं है। पायलट की ख्वाहिश राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की है लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसके लिए तैयार नहीं हैं। 

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गद्दारी वाला बयान 

बताना होगा कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के खेमों के बीच पिछले ढाई साल से सियासी अदावत चल रही है। बीते साल गहलोत के सचिन पायलट के द्वारा 2020 में की गई बगावत को गद्दारी का नाम दिए जाने के बाद यह अदावत तेज हो गई थी। 

गहलोत ने कहा था कि पायलट के पास 10 विधायक भी नहीं हैं और उन्हें किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता। दूसरी ओर सचिन पायलट के समर्थक विधायक और मंत्री इस इंतजार में हैं कि कब उनके नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी। 

राजस्थान में कांग्रेस के पास 108 विधायक हैं और माना जाता है कि उसमें से लगभग 90 विधायकों का समर्थन अशोक गहलोत के पास है।

हालांकि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सचिन पायलट और अशोक गहलोत राहुल गांधी के साथ दिखाई दिए थे और तब यह सवाल उठा था कि इन दोनों सियासी दिग्गजों के बीच क्या झगड़ा वाकई खत्म हो गया है। 

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सचिन पायलट मांग कर चुके हैं कि राजस्थान में सियासी अनिश्चितता का माहौल खत्म होना चाहिए। पिछले साल के आखिरी महीनों में यह कहा जा रहा था कि कांग्रेस हाईकमान राजस्थान में पायलट को मुख्यमंत्री बना सकता है। लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके समर्थक विधायकों के पुरजोर विरोध के बाद शायद हाईकमान ने इस बारे में कोई फैसला करना ठीक नहीं समझा। 

गहलोत समर्थकों की बगावत

याद दिलाना होगा कि राजस्थान कांग्रेस में हालात इस कदर खराब हुए थे कि सितंबर महीने में बुलाई गई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अशोक गहलोत के समर्थक विधायक नहीं पहुंचे थे। उन्होंने हाईकमान को तेवर दिखाते हुए अलग से बैठक की और उसके बाद विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को जाकर अपने इस्तीफे सौंप दिए थे। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने प्रभारी के पद से इस्तीफा दे दिया था।

सचिन पायलट के समर्थक साल 2018 में राजस्थान में कांग्रेस को मिली जीत का श्रेय अपने नेता को देते हैं और उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग करते रहे हैं।

पायलट को कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में पर्यवेक्षक बनाया था और उन्होंने वहां पर कांग्रेस के लिए जमकर प्रचार भी किया था। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को जीत मिली जबकि अशोक गहलोत को गुजरात का पर्यवेक्षक बनाया गया था और वहां कांग्रेस को करारी हार मिली थी। 

आने वाले दिनों में जब पायलट जनता के बीच में पहुंचेंगे तो देखना होगा कि वह इसके जरिए क्या सियासी संदेश देते हैं। 

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