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बीबीसी डॉक्यूमेंट्री देखने के बाद राजस्थान सेंट्रल विवि के 11 छात्र निलंबित

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री देखने के बाद राजस्थान सेंट्रल विवि के 11 छात्र निलंबित

प्रधानमंत्री मोदी पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर इतना गतिरोध क्यों है? जानिए, राजस्थान सेंट्रल विश्वविद्यालय में डॉक्यूमेंट्री दिखाने पर क्या कार्रवाई की गई।

अजमेर में राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय ने कम से कम 11 छात्रों को 14 दिनों के लिए निलंबित कर दिया है। इन्होंने कथित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री देखी थी। 26 जनवरी को विवादित डॉक्यूमेंट्री दिखाए जाने के बाद विश्वविद्यालय परिसर के अंदर विवाद शुरू हो गया था। तब उसने डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया। 

विश्वविद्यालय के अधिकारियों का कहना है कि छात्रों पर कार्रवाई अनुशासनात्मक आधार पर की गई और डॉक्यूमेंट्री से जुड़े मामले में नहीं। उन्होंने दावा किया कि डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय छात्रों की क़ानून-व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए लिया गया था।

दरअसल, जब से यह डॉक्यूमेंट्री आई है तब से इस पर विवाद है। बीबीसी की 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नामक दो-भाग की श्रृंखला में डॉक्यूमेंट्री आयी है। बीबीसी ने इस सीरीज के डिस्क्रिप्शन में कहा है कि 'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक के बीच तनाव को देखते हुए 2002 के दंगों में उनकी भूमिका के बारे में दावों की जांच कर रहा है, जिसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे।'

जब इस डॉक्यूमेंट्री की ख़बर मीडिया में आई तो भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया। सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी श्रृंखला की कड़ी निंदा की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि 'झूठे नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए प्रोपेगेंडा डिजाइन किया गया'।

इसके बाद तो बीबीसी की यह डॉक्यूमेंट्री भारत में बहस का मुद्दा बन गई है। प्रतिबंध के बावजूद विपक्षी दलों के नेता इस डॉक्यूमेंट्री का लिंक सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं तो छात्र संगठन विश्वविद्यालयों में इसकी स्क्रीनिंग कर रहे हैं।

इसी बीच अजमेर का यह मामला सामने आया है। शनिवार को जारी विश्वविद्यालय के आदेश में कहा गया है, 'सोशल मीडिया और अन्य मीडिया प्लेटफार्मों पर एक डॉक्यूमेंट्री विवाद के मद्देनज़र, सक्षम प्राधिकारी द्वारा तत्काल प्रभाव से बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है।'

उसमें कहा गया है, 'विभागाध्यक्षों को इस संबंध में अपने छात्रों को संवेदनशील बनाने के लिए कहा गया है। यह आदेश छात्रों की बिरादरी की कानून व्यवस्था और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए जारी किया गया है।'

कार्रवाई का सामना करने वाले अधिकांश छात्र स्नातकोत्तर के हैं जिन्होंने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के अधिकारी एबीवीपी के दबाव में झुक गए। उन्होंने कथित तौर पर गुरुवार शाम को हंगामा किया और उन लोगों के छात्रावास के कमरों में जबरन घुसने की कोशिश की जिन्होंने कथित तौर पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री देखी।

निलंबित छात्रों में से एक ने द वायर को बताया कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं द्वारा परिसर में तनावपूर्ण माहौल बनाने और 'जय श्री राम' और 'देश के गद्दारों को' जैसे नारे लगाने के बाद ही आदेश जारी किया गया था। छात्र ने कहा कि दोस्तों के एक समूह ने गुरुवार शाम को अपने वाट्सऐप स्टेटस संदेशों में एक पोस्टर प्रसारित किया था जिसमें छात्रों को सामूहिक रूप से अपने मोबाइल फोन पर डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए आमंत्रित किया गया था। उसने कहा कि हमने प्रोजेक्टर पर फिल्म की स्क्रीनिंग नहीं की। उन्होंने कहा कि एबीवीपी के कार्यकर्ता भी पोस्ट ऑफिस पर जमा हो गए क्योंकि कुछ छात्रों ने डॉक्यूमेंट्री देखी और कार्यक्रम को बाधित करने की कोशिश की। 

एचटी की रिपोर्ट के अनुसार घटना पर टिप्पणी करते हुए विश्वविद्यालय के एबीवीपी अध्यक्ष विकास पाठक ने कहा कि एक विशेष विचारधारा के छात्रों के एक समूह ने घोषणा की कि वे गणतंत्र दिवस पर शाम 7 बजे प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन करेंगे। छात्र जुटे और अपने लैपटॉप और फोन पर डॉक्यूमेंट्री देखने लगे। यहाँ तक कि उन्होंने वहां मौजूद अन्य लोगों से भी जबरदस्ती इसे देखने के लिए कहा।' पाठक ने इन आरोपों को खारिज किया कि एबीवीपी ने निलंबन के लिए छात्रों की एक सूची प्रशासन को दी थी।

कांग्रेस और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने छात्रों के खिलाफ विश्वविद्यालय के निलंबन आदेश को वापस लेने की मांग की है।

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