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क्या राहुल गांधी बदल रहे हैं? 

क्या राहुल गांधी बदल रहे हैं? 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी विपक्ष के नेता होने के बावजूद इस कोरोना काल में सरकार की नीतियों के प्रति तीखा आलोचनात्मक रवैया और हमलावर तेवर रखने के बजाय लगातार सहयोग का रुख़ दिखा रहे हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की परिपक्वता, शालीनता और संवाद की लोकतांत्रिक शैली बहुत ही प्रशंसनीय है। विपक्ष के नेता होने के बावजूद वह इस कोरोना काल में सरकार की नीतियों के प्रति तीखा आलोचनात्मक रवैया और हमलावर तेवर रखने के बजाय लगातार सहयोग का रुख़ दिखा रहे हैं। हालाँकि सरकार और बीजेपी ने अभी तक इस बारे में कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई हो, ऐसा नहीं लगता। 

मीडिया से बातचीत में भी उन्होंने साफ़ कहा कि यह आलोचना का समय नहीं है इसलिए मैं आलोचना नहीं करूँगा। उन्होंने साफ़ कहा कि इस वक़्त कांग्रेस, बीजेपी, आरएसएस में बँटकर बातें करने का वक़्त नहीं है। हम सबसे पहले भारतीय हैं। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि इस सरकार का रवैया विपक्ष से बातचीत का नहीं है और हमने यह स्वीकार भी कर लिया है। फिर भी इस संकट में सरकार को सुझाव देने का कर्तव्य हम निभाते रहेंगे।

राहुल गांधी ने अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर अभिजीत बनर्जी जैसे तमाम जानेमाने विशेषज्ञों से अपनी हालिया संवाद शृंखला को भी सरकार के प्रति सहयोग की मंशा से जोड़ा और कहा कि सरकार को इन विशेषज्ञों की राय और सुझावों पर ध्यान देना चाहिए। और कांग्रेस की 'न्याय' योजना को तुरंत अमल में लाना चाहिए ताकि आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे सभी वर्गों ग़रीबों, किसानों को मदद मिल सके। उन्होंने कहा कि छोटे उद्योगों के साथ-साथ बड़े उद्योगों को भी संरक्षण की ज़रूरत है। मज़दूरों से आनेजाने का किराया लेने को उन्होंने ग़लत बताया।

संवाददाताओं ने राहुल गांधी से उकसाने वाले तमाम सवाल पूछे लेकिन वह विवादास्पद टिप्पणियों से बचते रहे। उन्होंने बार-बार कहा कि यह समय ऐसी बातों के लिए सही नहीं है। 

प्रधानमंत्री की मज़बूत छवि के बारे में पूछे गये सवाल के जवाब में उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा कि यह उनकी स्टाइल हो सकती है लेकिन फ़िलहाल स्ट्रांग राज्य सरकारों और ज़िलाधिकारियों की भी ज़रूरत है।

उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को इस संकट काल में राज्य सरकारों, ज़िलाधिकारियों से उनके बाॅस की तरह नहीं, अपने साझेदारों की तरह बात करनी चाहिए। 

राहुल गांधी ने कहा कि मौजूदा हालात सामान्य नहीं हैं इसलिए इसके समाधान भी सामान्य नहीं हो सकते। अगर सब चीज़ें केंद्रीकृत करके सिर्फ़ पीएमओ तक सीमित रहेंगी तो समाधान नहीं निकल पाएँगे। 

राहुल गांधी ने मीडिया को भी सलाह दी कि कोरोना को लेकर डर और सनसनी का माहौल न बनाएँ। यह ज़िम्मेदारी कांग्रेस की भी है, मीडिया की भी है और प्रधानमंत्री की भी।

(अमिताभ की फेसबुक वाल से)

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