कांग्रेस को फिर से खड़ा करने में राहुल गांधी का क्या योगदान?
जिस राहुल गांधी को बीजेपी और इसके नेता लगातार 'पप्पू' कहकर तंज कसते रहे, सोशल मीडिया पर उनका मजाक उड़ाते रहे, कथित तौर पर जिनकी छवि ख़राब करने के लिए करोड़ों रुपये बहाए जाते रहे, उन्होंने बीजेपी को आज एनडीए सहयोगियों की बैसाखी पर ला ख़ड़ा किया है। जिस कांग्रेस को लेकर बीजेपी और इसके नेता 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा दे रहे थे वह आज उसकी सत्ता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ी हो गई।
2014 में 44 सीटें और 2019 में 52 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार 99 सीटें जीती है। कांग्रेस तेजी से अपनी खोयी जमीन पाती दिख रही है। कांग्रेस को 2014 में वोट शेयर 19.3% और 2019 में वोट शेयर 19.49% रहे थे। लेकिन अब 2024 में पार्टी को 99 सीटें मिली हैं और वोट प्रतिशत भी बढ़कर 21.19% हो गया है।
2024 के चुनाव में कांग्रेस की सिर्फ़ सीटें ही नहीं बढ़ी हैं, बल्कि उसकी स्ट्राइक रेट भी काफी ज्यादा बढ़ गई है। स्ट्राइक रेट से मतलब है जीत के प्रतिशत का। कांग्रेस ने 2019 में कुल लड़ी गई सीटों में से 8.3% और 2014 में 9.4% जीती थी, लेकिन इस बार कुल लड़ी गई सीटों में से 30% जीती है। भाजपा के खिलाफ सीधे मुकाबलों में 29% की बेहतर स्ट्राइक रेट है, जबकि 2019 में यह 8% और 2014 में 12.2% थी।
रायबरेली में राहुल गांधी की 3.9 लाख से अधिक वोटों से बड़ी जीत ने उत्तर प्रदेश में उनकी चुनावी साख को फिर से स्थापित किया है। वायनाड में भी उन्होंने 3 लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की। इसके मुक़ाबले पीएम मोदी का वाराणसी में जीत का अंतर घटकर अब क़रीब डेढ़ लाख ही रह गया।
ऐसे ही प्रदर्शनों के बीच कांग्रेस पार्टी के अंदर से ख़बर आ रही है कि कांग्रेस के अधिकांश पदाधिकारी और कुछ नवनिर्वाचित सांसद चाहते हैं कि राहुल गांधी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का मुक़ाबला करें और खुद को 2029 के लिए दावेदार के रूप में पेश करें।
ये वो राहुल गांधी हैं जिनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थकों द्वारा एक दशक तक तरह तरह से मजाक उड़ाया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी के लिए संसद में कहा था 'बहुत से ट्यूबलाइट ऐसे ही होते हैं'।
इसके बाद भाजपा ने मज़ाकिया अंदाज़ में राहुल गांधी को 'फ़्यूज़ ट्यूबलाइट' करार दिया था। एक बार पीएम मोदी ने राहुल गांधी पर परोक्ष हमला करते हुए उन्हें 'मूर्खों का सरदार' करार दिया था। इनके बारे में तो बीजेपी नेताओं ने कहा था कि इनको बार-बार 'लॉन्च' किया जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़ाने के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, 'मैंने पहले ही कहा था कि शहजादा वायनाड में हार के डर से अपने लिए दूसरी सीट तलाश रहे हैं।' इसके बावजूद राहुल गांधी ने इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने बार-बार कहा, 'मैं नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोल रहा हूँ।'
राहुल गांधी ने मोदी की नफरत और डर की राजनीति के खिलाफ दो देशव्यापी मार्च शुरू किए। इससे उनकी कांग्रेस पार्टी में उत्साह का संचार हुआ और उनकी अपनी छवि फिर से स्थापित हुई।
2019 और 2024 के चुनावों के बीच राहुल गांधी ने 10 हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा की यात्रा की। इसमें से बड़ा हिस्सा पैदल यात्राएँ थीं। उन्होंने लोगों से संपर्क किया और जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन को फिर से खड़ा करने की कोशिश की।
राहुल गांधी की यात्राओं और उनके नेतृत्व ने क्या कमाल किया, यह इससे समझा जा सकता है कि जी-23 के सदस्य भी नरम पड़ गए। अब तो इस जी-23 का नाम भी नहीं सुनने को नहीं मिलता।
जी-23 कांग्रेस पार्टी के 23 नेताओं का एक समूह था जिन्होंने अगस्त 2020 में एक पत्र में गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। अब इसके सदस्य भी मानते हैं कि राहुल की 'मोहब्बत की दुकान' पिच ने कांग्रेस और गठबंधन की मदद की। उनकी निडरता, साहस, दृढ़ विश्वास और भाषा शक्तिशाली है। पूरे चुनाव अभियान के दौरान, राहुल गांधी ने कोई गलती या रणनीतिक ग़लती नहीं की। उनकी अपेक्षा प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव में कई रणनीतिक गड़बड़ियाँ कीं और उनको खामियाजा भुगतना पड़ा।
राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने अमेठी में लड़ने के बजाय पूरे भारत और ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश में प्रचार करने का विकल्प चुना। खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस संगठन एकजुट होकर उभरा। इसने सोशल मीडिया का अच्छे प्रभाव के लिए इस्तेमाल किया। पार्टी ने सामाजिक न्याय को केंद्रीय मुद्दा बनाया। और नतीजा सबके सामने है। 2014 में 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 99 सीट जीत गई है।
राहुल गांधी ने अक्सर कहा है कि वह मोदी की भाजपा से सिर्फ सत्ता हथियाने के लिए नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि पार्टी और उसके मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदुत्व वाले चरित्र को हराने के लिए लड़ रहे हैं, जो संविधान में निहित भारत की धर्मनिरपेक्ष जड़ों के खिलाफ है। राहुल गांधी के इस विचार के ईर्द-गिर्द डटे रहने से उनकी राजनीतिक हैसियत बढ़ी है। यह बीजेपी के लिए कम मुश्किल चुनौती नहीं है!