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राहुल 3 माह में तीसरी बार बिहार में, कांग्रेस को नई पहचान दिला पाएँगे?

राहुल 3 माह में तीसरी बार बिहार में, कांग्रेस को नई पहचान दिला पाएँगे?

राहुल गांधी तीन महीने में तीसरी बार बिहार पहुँचे हैं। क्या यह कांग्रेस की आक्रामक रणनीति की शुरुआत है? क्या पार्टी को इससे राज्य में नई पहचान मिलेगी या महागठबंधन में दरार और बढ़ेगी? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

राहुल गांधी सोमवार को एक बार फिर बिहार की धरती पर पहुँचे। पिछले तीन महीनों में यह उनका तीसरा दौरा है, जो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के संदर्भ में राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है। इस बार राहुल गांधी पटना में 'संविधान सुरक्षा सम्मेलन' में हिस्सा लेने के साथ-साथ बेगूसराय में कन्हैया कुमार की 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा में भी शामिल हुए। इस दौरे से कई सवाल उठते हैं। राहुल गांधी बार-बार बिहार क्यों आ रहे हैं? क्या यह कांग्रेस को बूथ स्तर पर मज़बूत करने की रणनीति का हिस्सा है? और कन्हैया कुमार की यात्रा में उनकी भागीदारी से क्या संदेश देने की कोशिश की गई है?

राहुल गांधी का बिहार पर बढ़ता ध्यान कोई संयोग नहीं है। साल 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस राज्य में अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने की कोशिश में जुटी है। पिछले कुछ महीनों में पार्टी ने संगठनात्मक स्तर पर बड़े बदलाव किए हैं। नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति, 40 जिलों में नए जिला अध्यक्षों का चयन और बिहार प्रभारी की नियुक्ति इसके साफ़ संकेत हैं।

राहुल का यह तीसरा दौरा न केवल संगठन को मज़बूत करने की दिशा में एक क़दम है, बल्कि बिहार के मतदाताओं, खासकर युवाओं और सामाजिक न्याय के मुद्दों से जुड़े लोगों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की रणनीति भी दिखाई देती है।

पिछले दो दौरे में राहुल ने संविधान और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को उठाया था, जो बिहार की राजनीति में हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं। इस बार उनका बेगूसराय में कन्हैया कुमार के साथ सड़कों पर उतरना और पटना में नए जिला अध्यक्षों के साथ बैठक करना यह संकेत देता है कि कांग्रेस अब केवल सहयोगी दलों के भरोसे नहीं रहना चाहती। पार्टी अपनी स्वतंत्र पहचान और बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की तैयारी में है।

बिहार में कांग्रेस का शानदार इतिहास रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल और अन्य सहयोगियों की छाया में सिमटती चली गई। 2020 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन की ओर से कांग्रेस को 70 सीटें मिलीं, लेकिन उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा और वह सिर्फ़ 19 सीटें ही जीत सकी। लोकसभा में भी फ़िलहाल तीन सांसद हैं।

अब राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी इस स्थिति को बदलने की कोशिश कर रही है। बूथ स्तर पर संगठन को मज़बूत करना उनकी रणनीति का एक अहम हिस्सा दिखता है।

मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि राहुल गांधी ने हाल ही में सभी 862 जिला कांग्रेस अध्यक्षों की बैठक में बूथ मैनेजमेंट, मतदाता सूची सत्यापन, और सोशल मीडिया अभियान पर जोर दिया था। बिहार में भी यह रणनीति लागू होती दिख रही है। नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति और उनके साथ राहुल की बैठक इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस अब हर बूथ पर अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय और जवाबदेह बनाना चाहती है। यह क़दम न केवल चुनावी तैयारियों को मज़बूत करेगा, बल्कि सहयोगी दलों के साथ सीट बँटवारे की बातचीत में भी कांग्रेस को मज़बूत स्थिति दिला सकता है।

कन्हैया कुमार की 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा में राहुल गांधी का शामिल होना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह यात्रा बिहार के सबसे बड़े मुद्दों बेरोजगारी और पलायन को केंद्र में रखती है, जो राज्य के युवाओं के बीच गहरी नाराजगी का कारण बने हुए हैं। बेगूसराय में राहुल ने कन्हैया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलकर यह संदेश दिया कि कांग्रेस अब युवाओं की आवाज को बुलंद करने के लिए तैयार है।

कन्हैया कुमार बिहार में कांग्रेस के लिए एक उभरता हुआ चेहरा हैं। राहुल का उनके साथ मंच साझा करना न केवल कन्हैया को मज़बूत नेतृत्व के रूप में स्थापित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कांग्रेस अब युवा नेताओं को आगे बढ़ाने और स्थानीय मुद्दों पर फोकस करने की रणनीति पर काम कर रही है। 

राहुल का यह क़दम महागठबंधन के सहयोगी आरजेडी के लिए भी एक संदेश हो सकता है कि कांग्रेस अब केवल पिछलग्गू बनकर नहीं रहना चाहती।

कांग्रेस की बिहार में रणनीति क्या? 

संगठनात्मक मज़बूती: नए नेतृत्व और बूथ स्तर पर सक्रियता के जरिए पार्टी अपनी जमीन तैयार करना चाहती है। राहुल गांधी का बार-बार दौरा और कार्यकर्ताओं के साथ सीधा संवाद इसका हिस्सा है।

युवाओं और सामाजिक न्याय पर फोकस: 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा और संविधान सुरक्षा सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों के जरिए कांग्रेस बिहार के युवाओं और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठा रही है, जो उसकी पारंपरिक वोट बैंक को फिर से सक्रिय कर सकता है।

महागठबंधन में मज़बूत स्थिति: पिछले चुनावों में कमजोर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस अब सहयोगियों के साथ सौदेबाजी में बेहतर स्थिति चाहती है। कन्हैया जैसे युवा चेहरों को आगे करना और स्वतंत्र अभियान चलाना इस दिशा में कदम है।

हालांकि, यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह कई बातों पर निर्भर करता है। महागठबंधन के भीतर आरजेडी के साथ तालमेल, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता, और बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की रणनीति कांग्रेस के लिए चुनौतियाँ पेश कर सकती हैं। फिर भी, राहुल गांधी का बिहार पर बढ़ता फोकस और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं को आगे करना यह दिखाता है कि कांग्रेस अब निष्क्रिय नहीं रहना चाहती। 

राहुल गांधी का तीन महीने में तीसरा बिहार दौरा और कन्हैया कुमार की यात्रा में उनकी भागीदारी कांग्रेस की नई आक्रामक रणनीति का हिस्सा है। यह पार्टी के लिए बिहार में अपनी खोई साख को वापस पाने और 2025 के विधानसभा चुनाव में मज़बूत दावेदारी पेश करने का प्रयास है। अब देखना यह होगा कि क्या यह रणनीति कांग्रेस को बिहार में नई पहचान दिला पाएगी, या यह महागठबंधन के भीतर नए तनाव को जन्म देगी।

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