देश के करोड़ों रामचेत की कभी मानहानि नहीं हुई!
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के मानहानि मामले में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सुल्तानपुर की एमपी एमएलए कोर्ट में पेश हुए। यहां से लखनऊ लौटते समय राहुल गांधी ने मोची रामचेत की दुकान पर अपनी गाड़ी रोककर उनसे मुलाकात की। उनका दुख दर्द साझा किया। उनकी समस्याएं सुनीं और जूते सिलने के गुर भी सीखे। खास बात यह है कि देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति की कथित तौर पर मानहानि करने वाला व्यक्ति कोर्ट में पेश होने के बाद देश के सबसे कमजोर, सबसे मामूली और सबसे तुच्छ काम करने वाले व्यक्ति रामचेत से मिलता है।
रामचेत के पुरखे सदियों से बहुत तुच्छ और मामूली काम करते आ रहे हैं। दूसरों के जूते सिलने और पोलिश करने वाले व्यक्ति का इस देश में कोई मान और सम्मान है भी या नहीं? आज तक कभी उनकी मानहानि हुई है क्या? क्या किसी ने रामचेत से पूछा कि आज उन्होंने भरपेट खाया या नहीं? उनके खुद के पैरों में जूते हैं या नहीं? जूते चमकाकर देते समय किसी ने उनसे प्यार और सम्मान से बात की? आज भी करोड़ों रामचेत कहीं जूतों पर पॉलिश कर रहे हैं तो कहीं नाली और सड़क की सफाई कर रहे हैं। लेकिन रामचेत की कभी मानहानि नहीं हुई!
रामचेत ने कभी किसी अदालत में या देश की सबसे बड़ी पंचायत से अथवा स्वघोषित भगवान, देश के सबसे बड़े हुक्मरान से नहीं कहा कि हुजूर दूसरों के जूते चमकाने में हजार बार उसके मान सम्मान की, हानि नहीं बल्कि ऐसी-तैसी हुई है। रांपी से चमड़े को काटते और तल्ले को ठोकते पीटते हुए मान सम्मान महसूस करने वाले दिमाग में जैसे गांठ पड़ गई है। तबियत भी ठीक ही रहती है हुजूर, सड़क से गुजरती हुई गाड़ियों की धूल थोड़ी फेफड़ों में जम गई है। साँस ज़रूर फूलती है, धौंकनी की तरह, इससे लगता है कि ज़िदा हूँ! हुजूर शाम को दुकान से घर जाते समय बाजार से बची खुची तरकारी खरीद लेता हूँ। चार पैसे बचाकर पोते को स्कूल भेजना चाहता हूँ। सोचता हूँ, उसे इस दुकान पर नहीं बैठने दूंगा। समय से फीस नहीं भर पाने के कारण स्कूल के प्रिंसिपल से गिड़गिड़ाता हूँ। लेकिन हुजूर फिर भी हमारी कोई मानहानि नहीं होती!
हुजूर सब चंगा सी! मेरा नाम कभी किसी ने जानने की कोशिश नहीं की। राहुल गांधी ने पूछ लिया तो आज लोग मेरा नाम भी जान गए। रामचेत है, नाम मेरा। पिछले सात साल से या और ठीक से कहूं तो दस साल से रामराज्य में हूँ। राजनीति भी राम के नाम पर चल रही है। हमारी दुकान पक्की हो या न हो। राम का घर ज़रूर पक्का होना चाहिए। हुजूर बहुत अच्छा किया आपने, अरबों रुपए खर्च करके राम का भव्य मंदिर बनवा दिया। लेकिन हुजूर एक सवाल है। सदियों से जो रामराज चल रहा था, उसमें हमारे पुरखों को क्या मिला? एक रामराज्य था जिसमें हमारे पुरखे शम्बूक ने केवल तपस्या करनी चाही, तो तुम्हारे रामराज्य के प्रभु राम ने उसकी गर्दन उड़ा दी। उससे पूछा भी नहीं कि वह ऐसा क्यों करना चाहता है? क्या उसे पढ़ने का अधिकार नहीं था? तुम्हारे राम ने उसकी आंखों में झांककर भी नहीं देखा कि उनमें क्या है?
वाल्मीकि से लेकर भवभूति तक की रामायण के राम ने शम्बूक का वध कर दिया। साहेब यह चलता ही आ रहा है। आपकी पार्टी के प्रातः स्मरणीय नाथूराम गोडसे ने भी महात्मा गांधी का वध किया था! गोडसे ने बापू की आँखों में झांककर नहीं देखा कि गांधी क्यों शंबूक के वंशजों को मंदिरों में प्रवेश कराना चाहते थे? इसीलिए मार डाला ना गांधी को? गोडसे ने कहा कुछ भी हो लेकिन सच यही है। गांधी पर पहला ही हमला इसीलिए किया गया था! एक और हमारा पुरखा था, जिसने अपने परिश्रम से, अपने अभ्यास से और अपने पुरखों की तालीम से ऐसा धनुष बाण चलाना सीखा कि द्रोणाचार्य के शिष्य भी उसके सामने हतप्रभ थे। तभी गोडसे के पुरखे ने उस एकलव्य के दाहिने हाथ के अंगूठे को काट लिया। भले ही तुम्हारी पोथियाँ, तुम्हारे शास्त्र कुछ भी कहते हों, कि एक आज्ञाकारी और निष्ठावान 'शिष्य' एकलव्य ने गुरु दक्षिणा में अंगूठा दे दिया था। लेकिन नहीं, कदापि नहीं, यह नहीं हो सकता।
साहेब मेरी आंखें, मेरे जज्बात, मेरे एहसास और मेरा अनलिखा इतिहास यह कहता है कि हमारे पुरखे को पटककर उसकी छाती पर चढ़कर उसके दाहिने हाथ का अंगूठा काट लिया गया। उसे अपंग अपाहिज बना दिया गया। ताकि तुम्हारे अर्जुन को किसी प्रतियोगिता का सामना न करना पड़े। हुजूरेआला आज भी वही हो रहा है। रामराज्य की सरकार, उस अंगूठे के बदले जो मिला हुआ आरक्षण है, जो शिक्षण संस्थान के दरवाजे हैं, जो सरकारी नौकरियों की दहलीज है, सबकुछ हमसे छीन लेना चाहती है। साहेब, राहुल गांधी की जगह अगर गोडसेवादी आए होते तो मेरे रांपी पकड़ने वाले हाथ की उंगलियां भी काट लेते। मुझे जय श्रीराम बोलने के लिए मजबूर करते। अगर मैं नहीं बोलता तो शायद वह मेरा भी वध कर देते। हमारे साथ सैकड़ों बार नहीं, हजार बार नहीं, लाखों बार हिंसा हुई है। कभी गर्दन काटी गई तो कभी अंगूठे काट दिए गए। कभी कर्ण की तरह निहत्था बनाकर घेरकर मार डाला गया। तब भी तुम्हारे धर्मशास्त्र लिखते रहे, 'वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति!'