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रजवाड़ों से राहुल का मोहभंग; जानिए अब नई टीम के सिपहसालार कौन

रजवाड़ों से राहुल का मोहभंग; जानिए अब नई टीम के सिपहसालार कौन

कांग्रेस नेता राहुल गांधी क्या कांग्रेस की नयी टीम तैयार कर रहे हैं? क्या इसी के तहत वह राज परिवारों की पृष्ठभूमि वाले नेताओं से किनारा कर रहे हैं और चन्नी जैसे नेताओं पर भरोसा जता रहे हैं?

अपने ही क़रीबी माने जाने वाले साथियों से एक के बाद एक धोखा खाने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का राज परिवारों की पृष्ठभूमि वाले युवा नेताओं से मोहभंग होता नज़र आ रहा है। इसका संकेत पहले पंजाब में पटियाला रियासत के पूर्व महाराजा कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर एक गरीब दलित परिवार से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने और अब चन्नी को विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस का चेहरा घोषित करने से मिल रहा है।

इस फ़ैसले से यह साफ़ संकेत है कि राहुल गांधी कांग्रेस में नेताओं की नई पंक्ति तैयार कर रहे हैं जो 2024 में उनके साथ लोकसभा चुनावों के महासमर में न सिर्फ़ खड़े होंगे बल्कि उनके सिपहसालार होंगे।

चन्नी के चयन में गरीबी की मुख्य भूमिका

पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी के नाम की घोषणा करते समय राहुल गांधी ने उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि से ज़्यादा जोर उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि पर दिया। उन्होंने एक बार भी यह याद नहीं दिलाया कि चन्नी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का चेहरा इसलिए बनाया है कि वह दलित समुदाय से आते हैं, बल्कि राहुल गांधी ने कहा कि चन्नी एक गरीब और आम परिवार से हैं। उन्होंने गरीबी देखी है इसलिए वह गरीबों और आम जनता का दर्द बेहतर समझ सकते हैं। राहुल ने यह कहकर एक तरह से बिना कहे यह स्वीकार किया कि अभी तक कांग्रेस में नई पीढ़ी के नाम पर जिनको सरकार और संगठन में पद और ताक़त दी गई वह आम लोग नहीं थे और उन्हें आम लोगों और गरीबों का दर्द नहीं पता था, इसलिए सत्ता के बिना वह कांग्रेस में रह नहीं सके।

पुरानी टीम में ज़्यादातर चेहरे राजघरानों के सदस्य थे

राहुल की पुरानी टीम में ज़्यादातर चेहरे वही थे जो राजघरानों से आते थे। दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, संजय सिंह और भंवर जितेंद्र सिंह जैसे नेताओं का ताल्लुक राजघरानों से रहा है और उनकी पृष्ठभूमि सामंती है। इनमें दिग्विजय सिंह और भंवर जितेंद्र सिंह को छोड़कर बाक़ी सब कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जा चुके हैं। इनके मुक़ाबले राहुल अब जो अपनी टीम तैयार कर रहे हैं, उसमें पुराने चेहरों में दिग्विजय और जितेंद्र सिंह के अलावा नए चेहरे गैर राजवंशी पृष्ठभूमि के हैं। इनमें चरणजीत सिंह चन्नी का नाम सबसे नया है। इससे पहले के.सी. वेणुगोपाल, हरीश रावत, सचिन पायलट, भूपेश बघेल, नवजोत सिंह सिद्धू, सुनील जाखड़, नाना पटोले, हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार, रणदीप सिंह सुरजेवाला, मोहन प्रकाश, अविनाश पांडे, रवनीत सिंह बिट्टू, अजय माकन, दीपेंद्र हुड्डा, इमरान प्रतापगढ़ी, प्रकाश जोशी, नदीम जावेद, आचार्य प्रमोद कृष्णम जैसे नाम शामिल हैं। 

पुराने नेताओं में अंबिका सोनी, अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, चिदंबरम, जयराम रमेश, मल्लिकार्जुन खड़गे, सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार, रमेश चेन्नीथला जैसे नेता भी राहुल गांधी के सिपहसालार हैं।

राजपरिवारों वाले नेताओं से मिला कड़वा अनुभव

राहुल के क़रीबी सूत्रों का कहना है कि राजपरिवारों के वारिस नेताओं को सशक्त करने का सोनिया गांधी और राहुल गांधी का अनुभव बेहद कड़वा रहा है। जिन पर सबसे ज़्यादा भरोसा करके उन्हें उनके पंद्रह बीस सालों के राजनीतिक जीवन में संगठन सरकार में सब कुछ दिया गया वो जिस तरह पार्टी छोड़कर गए और उनके इस क़दम ने नेतृत्व की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाने के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को भी कमजोर किया। 10 जनपथ परिवार के बेहद निकट समझे जाने वाले पटियाला राजघराने के पूर्व महाराज कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र सरकार और बीजेपी से साँठगाँठ करके चुनाव वर्ष में जिस तरह कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश की और उसके पहले नटवर सिंह का रवैया भी सोनिया, राहुल, प्रियंका तीनों के लिए बेहद कड़वा घूंट था।

 - Satya Hindi

पहले राजपरिवारों के सदस्यों की भरमार थी

10 जनपथ के एक क़रीबी नेता के मुताबिक़ 2014 से लेकर 2019 तक के हर चुनाव में राहुल गांधी की टीम में राजपरिवारों और नेता पुत्रों की ही भरमार थी। इसलिए आम कार्यकर्ता की बात उन तक नहीं पहुंचती थी। इसका नुक़सान पार्टी और नेतृत्व दोनों को उठाना पड़ा। इसीलिए अब नेतृत्व ने उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाना शुरू किया है जो आम पृष्ठभूमि से आते हैं और नीचे से उठकर ऊपर आए हैं। राहुल गांधी अब ऐसे ही नेताओं को अहम भूमिकाएँ दे रहे हैं ताकि 2024 तक उनके मज़बूत सिपहसालार बन सकें और लोकसभा के चुनावी महासमर में पार्टी को बीजेपी से मुक़ाबले के लिए तैयार कर सकें। 

कांग्रेस को जनपथ से राजपथ पर ले जाने की कोशिश

इस नेता के मुताबिक़ पाँच राज्यों के चुनावों के बाद पार्टी संगठन में होने वाले फेरबदल में इसी तरह के नेताओं को आगे लाकर ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ दी जाएंगी। इस तरह राहुल गांधी की कोशिश कांग्रेस को जनपथ के रास्ते से राजपथ पर ले जाने की है। इसका एक संकेत तब भी मिला जब हरिद्वार में अपनी जनसभा के बाद राहुल गांधी हर की पैड़ी पर गंगा दर्शन के लिए गए तो उनके साथ पार्टी के नेता नहीं बल्कि कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम (जो कांग्रेस नेता भी हैं) थे और बड़ी संख्या में साधुओं की भीड़ थी। पार्टी के नेताओं को राहुल ने पीछे कर दिया था और गंगा तर्पण के अपने कार्यक्रम को उन्होंने राजनीतिक की बजाय धार्मिक चरित्र का ही रहने दिया। जबकि इसके पहले राहुल जब भी सोमनाथ, केदारनाथ, विश्वनाथ, वैष्णोदेवी और अन्य धार्मिक स्थलों पर गए तो उनके साथ कांग्रेस नेता दिखाई दिए थे। लेकिन इस बार राहुल ने निर्देश देकर पार्टी नेताओं को पीछे रहने दिया। इससे भी यह संकेत है कि राहुल गांधी अपनी शैली भी बदल रहे हैं और हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी की अपनी लड़ाई में वह पार्टी नेताओं से ज़्यादा वैचारिक रूप से कांग्रेसी आचार्य प्रमोद कृष्णम और अन्य साधू संतों पर ज़्यादा भरोसा कर रहे हैं। 

बताया जाता है कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे के साथ-साथ बीजेपी के साथ राहुल गांधी कांग्रेस को वैचारिक लड़ाई में भी मज़बूती से मुक़ाबले में लाना चाहते हैं और इसीलिए उन्होंने ज़्यादा भरोसा अब सामान्य पृष्ठभूमि वाले और निष्ठावान कांग्रेसी नेताओं पर करना शुरू कर दिया है। हालाँकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि राज परिवारों के लिए कांग्रेस के दरवाजे बंद हो गए हैं। राहुल के बेहद क़रीबी एक सूत्र के मुताबिक़ राज परिवारों से जुड़े जो लोग कांग्रेस की विचारधारा को आत्मसात कर लेंगे उनका पार्टी में स्वागत रहेगा।

(अमर उजाला से साभार)

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