पंजाब में आखिरी दांवः जट सिख और मज़हबी सिख की राजनीति
पंजाब के किसान नेताओं को अमृतसर में भाजपा का चुनाव प्रचार अभियान पसंद नहीं आ रहा है। उनका कहना है कि भाजपा राज्य के दो प्रमुख समुदायों को बांटना चाह रही है। आमतौर पर सभी सिख हर जगह एक समुदाय के रूप में एकजुटता प्रदर्शित करते हैं। उनमें से कोई अपनी पहचान जट सिख या मजहबी सिख के रूप में नहीं कराता है। लेकिन भाजपा इस पहचान को उभार रही है। किसान यूनियनों को फिक्र है कि अमृतसर में चुनाव अभियान गांवों में मजहबी सिखों और जट सिखों के बीच दरार पैदा कर सकता है।
ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार को, भाजपा के अमृतसर से उम्मीदवार तरनजीत सिंह संधू ने उन्हें एक दलित परिवार से मिलने से रोकने पर किसान नेताओं को "बेशर्म" कहा। इस बयान से तमाम किसान संघों के बीच खतरे की घंटी बज गई है। क्योंकि पंजाब के किसान संघों में पूरा आंदोलन दोनों समुदायों ने मिलजुलकर चलाया है। संयुक्त किसान मोर्चा के स्वर्ण सिंह पंधेर ने कहा कि भाजपा दलित और जाट वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है। इसके नेता पंजाब में नफरत और जहर बोने की कोशिश कर रहे हैं।
पंधेर ने कहा कि “भाजपा राजनीति में जाटों सिखों के खिलाफ दलितों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास कर रही है। वे गांवों में यूपी जैसी नफरत और जहर बोने की कोशिश कर रहे हैं। वे दलितों के 'मसीहा' बनने की कोशिश कर रहे हैं।''
किसान नेताओं का कहना है कि भाजपा नेता बाकायदा प्रचार कर रहे हैं कि पंजाब की किसान यूनियन सिर्फ जाट सिखों के हित देख रही हैं क्योंकि वे बड़े किसान हैं। भाजपा का चुनाव अभियान मज़हबी सिखों और जाट सिखों के बीच विभाजन को बढ़ा सकता है। हालांकि किसान आंदोलन में सभी समुदायों के किसान शामिल हैं। वहां जाट या मजहबी सिख की कोई अलग पहचान नहीं है। सभी किसान हैं।
ट्रिब्यून अखबार के मुताबिक शिरोमणि अकाली दल से अलग होने के बाद पंजाब में पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही भाजपा के अमृतसर में चुनाव प्रचार ने जाट सिख बहुल कृषि संगठनों की नींद हराम कर दी है, जो भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं। .
ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा ने जाति विभाजन की इस रणनीति को हरियाणा में भी आजमाया था। हरियाणा में भाजपा ने मुख्य रूप से गैर-जाट मतदाताओं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर फोकस किया। पंजाब में भी भाजपा वही फॉर्मूला लागू कर रही है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य में दलितों का वोट शेयर लगभग 35 फीसदी है जो देश के किसी भी राज्य में सबसे अधिक है। जाट मतदाताओं का प्रतिशत पंजाब में सिर्फ 18 फीसदी है।
पंजाब की राजनीति के जानकारों का कहना है कि न सिर्फ अमृतसर में भाजपा जातीय आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है, बल्कि राज्य के अन्य हिस्सों में कोशिश हो रही है कि सिख वोट बंट जाएं। यह माझा और मालवा क्षेत्रों में मज़हबी सिख-बहुल क्षेत्रों में ज्यादा हो रहा है। भाजपा ग्रामीण क्षेत्रों में मज़हबी सिखों और शहरी क्षेत्रों में बाल्मिकियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
पंजाब के एक जानकार ने यह तक कहा कि “मामला जाट बनाम मजहबी सिख नहीं है। भाजपा आरक्षण में हिस्सेदारी को लेकर मजहबी/बाल्मीकि और रविदासिया/रामदासिया समुदायों के बीच पहले से मौजूद मतभेदों का इस्तेमाल कर रही है। रविदासिया/रामदासिया समुदाय भाजपा को वोट नहीं देते। इसलिए, ग्रामीण इलाकों में मजहबी सिखों और शहरी इलाकों में बाल्मिकियों का ध्रुवीकरण करा कर भाजपा फायदा लेना चाहती है।''
मजहबी और जाट सिखों का विभाजन हकीकत बनता जा रहा है। जहांगीर गांव के भाजपा कार्यकर्ता जसविदर सिंह ने द ट्रिब्यून से कहा, "पीएम मोदी द्वारा दी जा रही कल्याणकारी योजनाओं से एससी समुदाय भाजपा की ओर आकर्षित हुआ है।" बता दें कि पंजाब में दलितों की 39 उपजातियाँ हैं। मजहबी सिख/बाल्मीकियों का दलित वोट शेयर में 13 प्रतिशत हिस्सा है। रामदासिया सिख, रविदासिया और अधर्मी का वोट शेयर 13.5 प्रतिशत है, जबकि शेष वोट शेयर अन्य उप-जातियों का है।
इस विभाजन से सबसे ज्यादा शिरोमणि अकाली दल प्रभावित होने वाली है। यह असर लोकसभा चुनावों और उसके बाद होने वाले चुनावों में भी। मजहबी सिख पारंपरिक रूप से कांग्रेस का समर्थन करते रहे हैं जबकि अकाली दल का जाट किसानों के बीच एक मजबूत समर्थन आधार है। 2007-17 के अकाली शासन के दौरान, सरकार द्वारा दी गई मुफ्त सुविधाओं और कल्याणकारी योजनाओं ने दलितों को खुश किया। हालाँकि, अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली अगली कांग्रेस सरकार मज़हबी सिखों को खुश करने में नाकाम रही। हालांकि कांग्रेस ने पंजाब को अपना पहला दलित सीएम चरणजीत सिंह चन्नी रविदासिया समुदाय से दिया लेकिन कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि आम आदमी पार्टी ने 2022 में कांग्रेस और अकालियों को हरा दिया।
ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक मजहबी सिख अब रविदासिया समुदाय के खिलाफ खड़े हैं। उन्होंने सरकारी नौकरियों में मजहबी सिखों और बाल्मिकियों को 12.5 प्रतिशत आरक्षण को कोर्ट में चुनौती दी है। कांग्रेस को दोआबा क्षेत्र में रविदासिया समुदाय का समर्थन हासिल हुआ है, लेकिन कुल मिलाकर, उसने शहरी इलाकों में बाल्मीकि समुदाय और ग्रामीण इलाकों में मजहबी सिखों पर अपनी पकड़ खो दी है।