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पंजाब: कौन जीत रहा है मालवा, माझा और दोआबा का चुनावी रण?

पंजाब: कौन जीत रहा है मालवा, माझा और दोआबा का चुनावी रण?

क्या कांग्रेस पंजाब के सियासी गढ़ को बचाने में कामयाब हो पाएगी या फिर दिल्ली के बाद पंजाब ऐसा दूसरा राज्य होगा जहां आम आदमी पार्टी अपनी सरकार बनाएगी?

पंजाब में मतदान की घड़ी बिल्कुल करीब आ गई है। यह उन गिने-चुने राज्यों में है जहां कांग्रेस सत्ता में है। लेकिन इस बार उसे तीन बार दिल्ली में सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी से कड़ी चुनौती मिल रही है। पांच चुनावी राज्यों में उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब ऐसा राज्य है जिसे लेकर राजनीतिक सरगर्मियां जोरों पर हैं। 

पंजाब के लोग इस बार किस दल की सरकार बना सकते हैं, इसका अनुमान लगाने के लिए राज्य के इलाकों और जातीय-धार्मिक समीकरणों के बारे में जानना बेहद जरूरी है। आइए इसे समझते हैं।

पंजाब का शाब्दिक अर्थ है पांच नदियों का प्रदेश। इन नदियों के नाम सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलुम हैं। पंजाब तीन भागों में बंटा हुआ है। इनके नाम मालवा, माझा और दोआबा हैं। मालवा सबसे बड़ा इलाका है जिसमें 69 सीटें हैं, इसके बाद माझा है जहां पर 25 सीटें हैं और अंत में दोआबा है जहां पर 23 सीटें हैं। पंजाब में 60 फीसद सिख और 38 फीसद हिंदू मतदाता हैं। 

2017 के नतीजे 

आगे बढ़ने से पहले 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर भी बात करनी होगी। 2017 में कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी जबकि आम आदमी पार्टी को 21, शिरोमणि अकाली दल को 15 और बीजेपी को 3 सीटें मिली थी।

2017 के विधानसभा चुनाव में मालवा में कांग्रेस को 40 सीटें मिली और आम आदमी पार्टी को 18 जबकि शिरोमणि अकाली दल सिर्फ 8 सीटों पर ही सिमट गया। इससे साफ पता चलता है कि आम आदमी पार्टी ने यहां अकाली दल को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। जबकि पिछले चुनाव में दोआबा में कांग्रेस को 23 में से 15 सीटों पर जीत मिली थी, अकाली दल को 5 और आम आदमी पार्टी को 2 सीटें मिली थी। 

माझा इलाके में पिछली बार कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा था और उसे 25 में से 22 सीटों पर कामयाबी मिली थी।

कौन-कौन से इलाके?

यहां यह भी समझना जरूरी है कि मालवा, माझा और दोआबा में कौन-कौन से इलाके आते हैं। मालवा में 11 जिले हैं और इसके प्रमुख शहरों में लुधियाना, पटियाला, संगरूर, बठिंडा, मानसा, फिरोजपुर, फाजिल्का, मोगा आदि हैं। यह इलाका कपास की खेती के लिए जाना जाता है। 

इसके बाद आता है माझा का इलाका। इसमें अमृतसर, गुरदासपुर तरनतारन और पठानकोट के इलाके आते हैं। जबकि दोआबा में होशियारपुर, कपूरथला, जालंधर और नवांशहर के इलाके आते हैं।

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वैसे, पंजाब की राजनीति में मालवा को शिरोमणि अकाली दल का गढ़ माना जाता है। अकाली दल के बड़े नेता बिक्रम सिंह मजीठिया इसी इलाके के मजीठा हलके से चुनकर आते रहे हैं। हालांकि इस बार वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को उनके सियासी हलके अमृतसर ईस्ट में चुनौती दे रहे हैं।

किस ओर जाएंगे दलित मतदाता?

पंजाब में 22 से 25 फीसद तक सिख जाट मतदाता जबकि 32 से 34 फीसद दलित मतदाता हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि उसने पंजाब में पहले दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाया है इसलिए उससे चुनाव में दलित मतदाताओं का पूरा साथ मिलेगा। लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने इस बार बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है और सरकार बनने पर दलित उप मुख्यमंत्री बनाने का वादा भी किया है ऐसे में दलित मतदाता शिरोमणि अकाली दल का भी रुख कर सकते हैं।

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दोआबा की 23 सीटों पर दलित मतदाताओं की संख्या 45 फ़ीसदी के आसपास है। मालवा इलाके में  31 फीसद दलित मतदाता हैं जबकि माझा में इनकी संख्या 29 फीसद है।

मालवा को जट सिखों का यानी जमीदारों का इलाका माना जाता है। किसान आंदोलन के दौरान इस इलाके से बड़ी संख्या में किसानों ने दिल्ली के बॉर्डर पर हुए आंदोलन में शिरकत की थी। पंजाब में अब तक हुए मुख्यमंत्रियों में से 80 फीसद मुख्यमंत्री इसी इलाके से हुए हैं। 

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कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने के कारण कांग्रेस को इस इलाके में नुकसान हो सकता है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान इसी इलाके की लोकसभा सीट संगरूर से सांसद हैं और पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है। 

किसानों की भूमिका 

इस चुनाव में किसानों की भूमिका को भी कम करके आंकना सही नहीं होगा। किसानों ने कृषि कानूनों पर मोदी सरकार को झुका दिया और अब वे संयुक्त समाज मोर्चा बनाकर चुनाव मैदान में उतरे हैं। उनका मोर्चा थोड़ा बहुत सभी राजनीतिक दलों को नुकसान पहुंचाएगा ऐसा माना जा रहा है। इसके अलावा बीजेपी, अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा का गठबंधन कितनी सीटें जीत पाएगा यह एक बड़ा सवाल है। 

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस अपने इस सियासी गढ़ को बचाने में कामयाब हो पाएगी या फिर दिल्ली के बाद पंजाब ऐसा दूसरा राज्य होगा जहां आम आदमी पार्टी अपनी सरकार बनाएगी। या फिर कोई बड़ा उलटफेर होगा और शिरोमणि अकाली दल बीएसपी गठबंधन सत्ता में आ जाएगा। इस सब के लिए 10 मार्च का इंतजार करना होगा लेकिन इतना तय है कि पंजाब में मुकाबला बेहद जोरदार और कांटे का है। 

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