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आख़िर चाहते क्या हैं सिद्धू?, कांग्रेस नेतृत्व की बढ़ा रहे मुसीबत 

आख़िर चाहते क्या हैं सिद्धू?, कांग्रेस नेतृत्व की बढ़ा रहे मुसीबत 

कांग्रेस हाईकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के लाख विरोध के बाद सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। लेकिन सिद्धू ने अपने पद से इस्तीफ़ा देकर हाईकमान को जोर का झटका दिया था। 

पंजाब कांग्रेस के साथ ही पार्टी हाईकमान के लिए भी वक़्त-वक़्त पर मुश्किलें खड़ी करते रहे नवजोत सिंह सिद्धू के मन में आख़िर क्या है। सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी हाईकमान ने जमकर जोखिम लिए। अपने पुराने नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को नाराज़ किया, पुराने और वरिष्ठ लोगों के बजाय उन्हें तरजीह दी। लेकिन सिद्धू ने ढाई महीने में ही पद से इस्तीफ़ा देकर पार्टी हाईकमान को राजनीतिक जगत में शर्मिंदा कर दिया। 

जितनी ऊर्जा कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धू को मनाने में ख़र्च की है, इसकी आधी ऊर्जा भी वह शायद किसी प्रदेश के नेता के लिए ख़र्च नहीं करता। लेकिन सिद्धू चूंकि पंजाब के बाहर भी लोकप्रिय और जाना-पहचाना चेहरा हैं, ऐसे में पार्टी उनकी तमाम गुस्ताखियों को भुला देने के लिए मजबूर है।

सिद्धू को कुछ दिन पहले ही दिल्ली बुलाया गया। यहां पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत और संगठन (महासचिव) केसी वेणुगोपाल से उनकी मुलाक़ात हुई। रावत ने उन्हें फ्री हैंड देते हुए कहा कि वह बतौर प्रदेश अध्यक्ष पूरी ताक़त के साथ काम करें। 

इसके बाद सिद्धू राहुल गांधी से मिले और उन्होंने कहा कि उनके जो मुद्दे थे, वे हल हो गए हैं। 

लेकिन अगले ही दिन उन्होंने एक पत्र सोशल मीडिया में जारी कर दिया। जिसमें उन्होंने 13 बिंदु सामने रखे थे। 

सिद्धू के 13 बिंदुओं वाले पत्र को लेकर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा, “चाहे 13 बिंदुओं की बात हो, 18 की, 21 की या फिर 24 की, हम इन्हें लागू कर रहे हैं और कुछ भी नहीं छूटेगा।” 

सिद्धू को समझना होगा कि सरकार और पार्टी चलाने के लिए अनुशासन बेहद ज़रूरी है। उन्हें जो बात कहनी है, प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते वह सीधे मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से भी कह सकते हैं। लेकिन नहीं।

इशू बनाने की आदत 

सिद्धू की आदत हो गयी है कि हर चीज को मीडिया के सामने लाया जाए। इससे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी की छीछालेदार हो रही है। कांग्रेस को इस बार पंजाब में सिद्धू की वजह से अपने पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है। इस सबके बीच सिद्धू ने अपनी हरक़तों के कारण पार्टी हाईकमान की नाक में दम किया हुआ है। 

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मनाने की कोशिश 

सिद्धू को मनाने के लिए एक बार फिर एआईसीसी से नेताओं को भेजा गया। सिद्धू की एआईसीसी के पर्यवेक्षक हरीश चौधरी, राहुल गांधी के सहयोगी कृष्णा अल्लावुरू और कैबिनेट मंत्री परगट सिंह के साथ देर रात रविवार को 1.15 बजे तक बैठक चली। इसमें मुख्यमंत्री चन्नी भी मौजूद रहे। इससे पहले भी छह घंटे तक सिद्धू, हरीश चौधरी और कृष्णा अल्लावुरू की पंजाब भवन में बैठक हुई। 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, बैठक में सिद्धू ने चन्नी से पूछा कि आख़िर वह उन वादों को पूरा क्यों नहीं करना चाहते हैं, जिनको पूरा न करने की वजह से कांग्रेस को मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। इस पर चन्नी ने कहा कि उनके पास केवल 60 दिन बचे हैं और वे सभी वादों को पूरा करने के लिए अपनी ओर से भरपूर कोशिश कर रहे हैं। 

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यह भी पता चला है कि हरीश चौधरी ने बैठक में सिद्धू से कहा कि ऐसा कोई भी तरीक़ा नहीं है, जिससे हर किसी को ख़ुश रखा जा सके। 

नाराज़ हुए चन्नी 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, बैठक के दौरान एक बार चन्नी बुरी तरह नाराज़ भी हो गए और उन्होंने कहा कि वह कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार हैं और सिद्धू इस कुर्सी पर आकर सिर्फ़ दो महीने में काम करके दिखाएं। 

हालांकि सोमवार को चन्नी ने पत्रकारों के सामने शांत रूख दिखाया और कहा कि सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष हैं और इस नाते उन्हें मुद्दों को उठाने का हक़ है। चन्नी ने कहा कि सभी मुद्दों को हल कर लिया जाएगा। 

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मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं सिद्धू 

सिद्धू की सियासी ख़्वाहिश पंजाब का मुख्यमंत्री बनने की है। पहले उन्होंने पार्टी में ही रहकर तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी की। हाईकमान को सारे विधायकों को दिल्ली बुलाना पड़ा। सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया लेकिन वह चुप नहीं रहे। 

सिद्धू के सलाहकारों ने वाहियात किस्म के बयान दिए और इस वजह से पार्टी की खासी फजीहत हुई। अमरिंदर को हटा भी दिया गया लेकिन अब सिद्धू चन्नी के ख़िलाफ़ मैदान तैयार करते दिख रहे हैं। 

सिद्धू चाहते हैं कि पंजाब के नवनियुक्त एडवोकेट जनरल एपीएस देओल को बदल दिया जाए। हालांकि मुख्यमंत्री चन्नी ने इस बारे में कोई फ़ैसला अभी नहीं लिया है। 

सिद्धू को इस बात को समझना होगा कि सूबे में मुख्यमंत्री ही सबसे बड़ा होता है। हाईकमान के जरिये दबाव बनवाकर वह चन्नी से हर काम नहीं करा सकते। वरना मुख्यमंत्री की क्या हैसियत रह जाएगी।

पंजाब में चुनाव मुंह के सामने हैं। सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सब लोगों को जोड़कर पार्टी को चुनाव जिताने के काम में जुटना चाहिए लेकिन सिद्धू हर वक़्त मुंह फुलाए हुए बैठे रहते हैं। साथ ही सब कुछ मीडिया में उगलकर बेवजह की बातों को बढ़ावा देते हैं। 

कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर पंजाब के दलित समुदाय की बहुत पुरानी मांग को पूरा करने के साथ ही देश भर में संदेश दिया है कि वह दलित समुदाय के नेताओं को आगे बढ़ाती है। लेकिन जट्ट सिख समुदाय से आने वाले सिद्धू कभी अपशब्द बोलकर या कभी ‘ईंट से ईंट बजा दूंगा’ कहने की बात बोलकर पार्टी के लिए जिस तरह की मुसीबत खड़ी कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से पार्टी के लिए पंजाब की सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो सकता है। 

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