कृषि विधेयकों का पुरजोर विरोध कर रहे विपक्षी दलों के 8 सांसदों ने सोमवार रात को संसद के लॉन में ही धरना दिया और इन विधेयकों को लेकर अपने इरादों को जाहिर कर दिया। ये वे सांसद हैं, जिन्हें रविवार को राज्यसभा में हुए हंगामे के बाद एक हफ़्ते के लिए सस्पेंड कर दिया गया था। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने सोमवार को यह कार्रवाई की थी।
नायडू का कहना था कि सांसदों ने जिस तरह का व्यवहार किया, वह बेहद ख़राब था। इन सांसदों में डेरेक ओ ब्रायन, संजय सिंह, राजीव साटव, केके रागेश, रिपुन बोरा, डोला सेन, सैयद नाज़िर हुसैन और एलामारान करीम शामिल हैं। राज्यसभा में किसानों से जुड़े विधेयकों के पारित होने के बाद रविवार को काफी देर तक हंगामा हुआ था और विपक्षी दलों के सांसदों ने इसके ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की थी।
इन सांसदों ने अपने हाथ में पोस्टर लिए हुए हैं जिनमें लिखा है कि वे किसानों की लड़ाई लड़ेंगे और संसद की हत्या की गई है। सोमवार शाम को 18 विपक्षी दलों के सांसदों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी लिखकर उनसे इन विधेयकों पर दस्तख़त नहीं करने की अपील की थी।
धरने पर बैठे आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने एक बार फिर कृषि विधेयकों को काला क़ानून बताया। उन्होंने कहा कि बीजेपी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था लेकिन फिर भी इन विधेयकों को पारित कर दिया गया और उप सभापति ने वोटिंग नहीं कराई। संजय सिंह ने कहा कि देश के किसानों के साथ धोखा हुआ है।
मंगलवार सुबह राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश भी धरना दे रहे सांसदों के बीच पहुंचे और उन्होंने इनसे बातचीत की। लेकिन सांसदों ने उनसे स्पष्ट तौर पर कहा कि इन विधेयकों को वापस लिया जाना चाहिए।
सोमवार को सत्र शुरू होते ही विपक्षी दलों के सांसदों ने एक बार फिर जोरदार नारेबाज़ी की थी। सभापति वेंकैया नायडू द्वारा 8 सांसदों को सदन से निलंबित करने के बाद संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा था कि निलंबित किए गए सांसदों ने बुरा व्यवहार किया और यह एक तरह से गुंडागर्दी थी। जोशी ने कहा कि इन सांसदों ने इस बात को साबित किया कि इनका लोकतंत्र में कोई विश्वास नहीं है।
कृषि विधेयकों को लेकर संसद के दोनों सदनों के अलावा सड़क पर भी जोरदार विरोध हो रहा है। किसानों का कहना है कि वे इन विधेयकों को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे।
राष्ट्रपति से अपील
विपक्षी दलों के सांसदों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर कहा है कि हम आपका ध्यान इस ओर खींचना चाहते हैं कि लोकतंत्र की पूर्ण रूप से हत्या की गई है और विडंबना यह है कि हत्या लोकतंत्र के सबसे सम्मानित मंदिर संसद में ही की गई है। सांसदों ने लिखा है, “हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि इस विधेयक पर दस्तख़त न करें और इसे लौटा दें। आप अपनी पूरी संवैधानिक और नैतिक ताक़त लगा कर यह सुनिश्चित करें कि यह काला विधेयक क़ानून न बन सके।” चिट्ठी में कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम,, एनसीपी, डीएमके, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं।शनिवार शाम को 12 विपक्षी दलों ने उप सभापति हरिवंश के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। लेकिन सरकार ने उप सभापति का ज़ोरदाव बचाव किया था और राज्यसभा में विपक्ष के व्यवहार को संसदीय मर्यादा का उल्लंघन और लोकतंत्र के लिए शर्मनाक क़रार दिया था।
किसान आंदोलन पर देखिए, क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह।
एनडीए में रार
कृषि विधेयकों को लेकर मोदी सरकार घिरी हुई है। पंजाब और हरियाणा में चल रहे किसानों के जोरदार आंदोलन के अलावा एनडीए की पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने सरकार में मंत्री रहीं हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफ़ा करवा दिया है। इसके अलावा हरियाणा में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) भी उधेड़बुन में है कि वह क्या करे। क्योंकि पार्टी को किसानों का समर्थन हासिल है और उस पर इन विधेयकों को लेकर सरकार से बाहर निकलने का दबाव है।मोदी सरकार का तर्क
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि इन विधेयकों ने हमारे अन्नदाता किसानों को अनेक बंधनों से मुक्ति दिलाई है, उन्हें आज़ाद किया है। प्रधानमंत्री ने किसानों के नुक़सान होने के सवालों को लेकर कहा है कि इन सुधारों से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए और ज़्यादा विकल्प मिलेंगे और ज़्यादा अवसर मिलेंगे।केंद्र सरकार का कहना है कि इन विधेयकों को लेकर ग़लत सूचना फैलाई जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इन विधेयकों से किसानों को फ़ायदा होगा और जो इसका विरोध कर रहे हैं वे असल में बिचौलियों के पक्षधर हैं और 'किसानों को धोखा' दे रहे हैं।