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महाराष्ट्र : सत्ता की चाबी प्रो-टेम स्पीकर के हाथ, किसे मिलेगा यह पद?

महाराष्ट्र : सत्ता की चाबी प्रो-टेम स्पीकर के हाथ, किसे मिलेगा यह पद?

महाराष्ट्र में सरकार बनाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब सारा ध्यान एक बार फिर राज्यपाल और प्रो-टेम स्पीकर पर जा रहा है।

महाराष्ट्र में सरकार बनाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब सारा ध्यान एक बार फिर राज्यपाल और प्रो-टेम स्पीकर की ओर जा रहा है। अब सारा दारोमदार इस बात पर है कि राज्यपाल किसे प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त करते हैं। 

कोर्ट ने कहा कि 27 नवंबर को शाम 5 बजे तक फ़्लोर टेस्ट करा लिया जाए और इसका सीधा प्रसारण भी किया जाए। कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि पहले विधायकों को शपथ ग्रहण कराई जाए और उसके बाद ही फ़्लोर टेस्ट हो। अदालत ने यह भी कहा कि फ़्लोर टेस्ट प्रोटेम स्पीकर ही कराएंगे। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि गुप्त मतदान से बहुमत परीक्षण नहीं होगा।

इसके साथ ही बेहद दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव राजेंद्र भागवत ने कहा कि विधानसभा सचिवालय को एक पत्र मिला है, जिसमें दावा किया गया है कि एनसीपी विधायक दल के नेता जयंत पाटिल होंगे, लेकिन इसका फैसला स्पीकर को लेना है।  आज की तारीख में इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है।

क्या होता है प्रो-टेम स्पीकर? 

प्रो-टेम स्पीकर की बहुत ही सीमित भूमिका होती है, वह बस सभी विधायकों को सदन की शपथ दिलवाता है। उसके बाद विधिवत स्पीकर का चुनाव होता है और प्रो-टेम स्पीकर की भूमिका ख़त्म हो जाती है। 

अमूमन होता यह है कि राज्यपाल सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त कर देते है। पर राज्यपाल इससे बँधा नहीं होता है, क्योंकि इससे जुड़ा कोई क़ानून नहीं है, यह बस संसदीय परंपरा है, जिसका निर्वाह मोटे तौर पर होता रहा है।

अदालत का फ़ैसला

बंबई हाई कोर्ट ने सुरेंद्र वसंत सिरसत केस में 1994 में एक बेहद अहम फ़ैसला देते हुए कहा था, 'प्रो-टेम स्पीकर सभी मक़सदों के लिए होता है, उसे सभी क्षमता, विशेषाधिकार और इम्यूनिटी मिली होती है।' एक दूसरे मामले में भी ऐसा ही फ़ैसला आया था। गोदावरी मिश्रा बनाम नंदकिशोर दास के मामले में ओड़ीशा हाई कोर्ट ने कहा था कि 'प्रो-टेम स्पीकर के अधिकार वे ही होते हैं जो चुने गए स्पीकर के होते हैं।' संविधान के अनुच्छेद 180 (1) के तहत राज्यपाल को यह अधिकार हासिल है कि वह प्रो-टेम स्पीकर चुने। 

सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि प्रो-टेम स्पीकर ही फ़्लोर टेस्ट करवाएगा।  यदि राज्यपाल ने बीजेपी के किसी सदस्य को प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त कर दिया तो पूरा खेल बदल सकता है।

यह भी दिलचस्प है कि साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में फ़्लोर टेस्ट के समय हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को पर्यवेक्षक बना कर भेजा था। 

अमूमन होता यह है कि राज्यपाल सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त कर देते है। पर राज्यपाल इससे बँधा नहीं होता है, क्योंकि इससे जुड़ा कोई क़ानून नहीं है, यह बस संसदीय परंपरा है, जिसका निर्वाह मोटे तौर पर होता रहा है। 

कांग्रेस के बाला साहेब थोराट को प्रो-टेम स्पीकर बनना चाहिए, क्योंकि वे वरिष्ठतम सदस्य हैं। पर राज्यपाल कोश्यारी ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। वे चाहें तो अपनी मर्ज़ी से किसी दूसरे सदस्य को भी प्रो-टेम स्पीकर बना सकते हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल की अब तक की भूमिका को देखते हुए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

ख़बर है कि वरिष्ठता के आधार पर 6 नाम राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भेज दिए गए हैं।  इनमें कांग्रेस के बालासाहेब थोराट पहले और बीजेपी के कालीदास कलमकार के नाम दूसरे स्थान पर है। इन दोनों नेताओं के अलावा कांग्रेस के के.सी. पडवी, बहुजन विकास अगाडी पार्टी के हितेंद्र ठाकुर, पूर्व स्पीकर और एनसीपी नेती दिलीप वालसे पाटील और बीजेपी के बब्बन पचपुटे के नाम राज्यपाल को भेजे गए हैं।  

क्या हुआ था कर्नाटक में?

कर्नाटक में साल 2018 में विधानसभा चुनाव के बाद के सदन में वरिष्ठतम सदस्य कांग्रेस के आर. वी. देशपान्डे थे। पर राज्यपाल वाजूभाई वाला ने बीजेपी के के. जी. बोपैया को प्रो-टेम स्पीकर बनाया था। राज्यपाल ने तर्क दिया था कि उन्होंने विधानसभा के सचिव की ओर से दी गई सूची में से बोपैया का नाम चुना था। इस मामले पर हस्तक्षेप करने से सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकार कर दिया था। 

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