बम और हत्याओं के बीच RSS के लिए केरल क्यों महत्वपूर्ण होता जा रहा है?

06:48 pm Jul 12, 2022 |

केरल में कन्नूर जिले के पय्यानुर में आरएसएस दफ्तर पर बम फेंका गया। इसमें कोई हताहत नहीं हुआ। सिर्फ खिड़कियों को नुकसान पहुंचा। घटना मंगलवार 12 जुलाई की है। आरएसएस दफ्तर पर हमले का यह पहला मामला नहीं है। उसके कई कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं या फिर दूसरे संगठनों के नेताओं की हत्या के आरोप में जेल में हैं। आरएसएस के लिए केरल अब महत्वपूर्ण है। इसलिए ऐसी घटनाएं उसे विचलित नहीं कर पाई हैं।

केरल में आरएसएस का सीपीएम और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जबरदस्त संघर्ष चल रहा है। आए दिन घटनाएं होती हैं। तीनों पक्षों के बीच हत्याएं तक हुई हैं। केरल में पहले संघ और बीजेपी कार्यकर्ताओं की भिड़ंत होती थी। लेकिन इसके बाद वो सीपीएम और पीएफआई कार्यकर्ताओं से होने लगी। फिलहाल सबसे ज्यादा संघ और पीएफआई आपस में टकराते हैं। यहां पर गैंगवॉर के तरीके से राजनीतिक हत्याओं का बदला एक दूसरे संगठन से लिया जा रहा है। 

उत्तर भारत में हिन्दू बहुल राज्यों में बीजेपी की तूती बोल रही है लेकिन दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य केरल में उसकी दाल नहीं गल रही है। जबकि हिन्दू आबादी वहां 50 फीसदी से भी ज्यादा है।

केरल में बीजेपी आजतक राजनीतिक रूप से सफल नहीं हो पाई। उसकी वजह है कि उसका जन्मदाता संगठन आरएसएस केरल में अपनी जगह नहीं बना पाया। केरल में तीन दशक से संघ लगातार कोशिश में है कि वहां संगठन खड़ा हो।

केरल में हिन्दू आबादी सबसे ज्यादा है। 2011 की जनगणना आंकड़ों के मुताबिक केरल में 54.73 फीसदी हिन्दू, 26.56 फीसदी मुस्लिम, 18.38 फीसदी ईसाई आबादी है। बाकी में किसी धर्म को न मानने वाले और अन्य हैं।

संघ की कोशिश

संघ वहां मार्च 2022 से कोशिश कर रहा है कि कम से कम 500 मंडल खड़े हो जाएं। वो इस साल संघ प्रमुख मोहन भागवत को बुलाकर 21 दिनों की कार्यशाला का आयोजन यहां करना चाहता है ताकि मंडलों का विस्तार हो सके। लेकिन सीपीएम के कार्यकर्ताओं और पीएफआई के हमले उसका काम रोक देते हैं। आरएसएस के केरल से जुड़े पदाधिकारियों के आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो मौजूदा मुख्यमंत्री पी. विजयन के पिछले और वर्तमान कार्यकाल के दौरान अब तक करीब 25 संघ कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। फिर भी संघ पीछे हटने को तैयार नहीं है। संघ का सपना है कि केरल में दक्षिणपंथी राजनीति के सूर्य का उदय हो, लेकिन कामयाबी कोसों दूर है।

इसके बावजूद संघ केरल में अल्पसंख्यक समुदायों पर नजर गड़ाए हुए है। संघ का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच तो केरल में सक्रिय ही है, उसने आरिफ मोहम्मद खान को केरल का राज्यपाल बहुत पहले बनवाकर मुसलमानों को संदेश भेज दिया है। केरल में पढ़े-लिखे मुसलमानों की तादाद ज्यादा है।

गजब हो गयाः जून 2022 में संघ के कोझीकोड में कार्यक्रम में तीन बार के विधायक और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के नेता के. एन. ए. कादर जा पहुंचे। उन्होंने संघ के नेता जे. नंदकुमार के हाथों प्रतीक चिह्न लेना स्वीकार किया। कादर ने संघ के नेताओं की जमकर तारीफ की। इस कार्यक्रम के बाद मुस्लिम लीग को अपना बचाव करना भारी पड़ गया। सीपीएम के नेताओं ने कहा कि दोनों ही कट्टर संगठन हैं, उनके मिलन पर क्या टिप्पणी करना। बता दें कि कादर पहले सीपीआई में थे और वहां से आईयूएमएल में पहुंचे थे।

ईसाइयों तक पहुंचे रामलाल

अभी मई 2022 में आरएसएस के संपर्क प्रमुख रामलाल ईसाई नेताओं से मुलाकात के लिए पहुंचे। रामलाल संगठन का काम करने के अलावा उन समुदायों या संगठनों तक पहुंचने का काम करते हैं जो संघ का समर्थन नहीं करते। रामलाल ऐसे समुदायों और संगठन के नेताओं से मुलाकात कर आरएसएस की विचारधारा के बारे में बताते हैं। इस नजरिए से मई में रामलाल की यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही, जब उन्होंने कई ईसाई नेताओं से मुलाकात की।

बढ़ता खूनी संघर्ष

अभी मार्च-अप्रैल में तो केरल में ये हालात थे कि पलक्कड़, कुन्नूर में संघ और पीएफआई कार्यकर्ताओं की हत्याओं की घटनाएं लगातार हो रही थीं। दोनों तरफ से दोनों संगठनों के कार्यकर्ता साजिश रचने के आरोप में पकड़े जा रहे थे। कुछ दिन की चुप्पी के बाद 12 जुलाई को बम वाली घटना हुई है।

अप्रैल में पीएफआई नेता की हत्या के बाद आरएसएस के नेता साजिश में गिरफ्तार किए गए।

पुराने आंकड़े भी चौकाते हैं। 2000 और 2016 के बीच, अकेले कन्नूर जिले में 69 राजनीतिक हत्याएं हुईं। अकेले 2016 में ऐसे 7 मामले सामने आए थे। 2017 में भी ऐसे चार मामले सामने आ चुके हैं। पिछले 17 वर्षों के उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि 160 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। 2000 और 2017 के बीच अधिकांश हत्याएं राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण हुई हैं। इस अवधि के दौरान, केरल में 65 आरएसएस या बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्याएं देखी गईं। 2000 से 2017 के बीच 85 सीपीएम कार्यकर्ताओं और कांग्रेस-आईयूएमएल के 11 कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई।

बहरहाल, सीपीएम के राज्य नेतृत्व ने आरोप लगाया कि आरएसएस-बीजेपी गठबंधन पठानमथिट्टा घटना के बाद एलडीएफ सरकार को अस्थिर करने के लिए राज्य में आतंक जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहा है। सीपीएम नेतृत्व पार्टी के कैडरों को कड़े नियंत्रण में रख रहा है, यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि पार्टी 2019 में पेरिया हत्याओं के बाद राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ जानलेवा हमलों में शामिल होने के किसी भी बड़े आरोप का सामना नहीं कर रही थी, जिसमें दो युवा कांग्रेस कार्यकर्ता मारे गए थे।