कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच आज ट्विटर पर वॉर चला। जयराम रमेश ने सिंधिया ख़ानदान के संबंध अंग्रेजों से बताकर उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। सिंधिया खानदान और अंग्रेजों से संबंध इतिहास का ऐसा पन्ना है जिसे मौजूदा हालात में टटोला जाना ज़रूरी है। लेकिन सबसे पहले विवाद की शुरुआत कैसे हुई, उसे जानते हैं।
जयराम रमेश ने बुधवार को सिंधिया और गुलाम नबी आजाद पर हमला करते हुए ट्वीट किया कि गुलाम नबी आजाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों ही कांग्रेस सिस्टम और पार्टी नेतृत्व के बड़े लाभार्थी रहे हैं, लेकिन अब हर गुजरते दिन के साथ, वे प्रमाण दे रहे हैं, वे इतनी उदारता के योग्य नहीं थे। उन्होंने अपना असली चरित्र दिखा दिया है, जिसे उन्होंने इतने लंबे समय तक छुपा कर रखा था।
जयराम रमेश के सिलसिलेवार हमलों के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी उन पर पलटवार किया है। सिंधिया ने लिखा -“मुंह में राम बगल में छुरी! आपके ऐसे वक्तव्य साफ दर्शाते है कि कितनी मर्यादा व विचारधारा कांग्रेस में बची है। वैसे भी आप केवल स्वयं के प्रति समर्पित हैं; इसी से आपकी राजनीति जीवित है। मैं और मेरा परिवार हमेशा जनता के प्रति जवाबदेह रहें है।”
सिंधिया के जवाब में जयराम रमेश ने एक और ट्वीट किया, रमेश ने इस ट्वीट में सिंधिया से पूछा कि क्या वे सुभद्रा कुमारी चौहान को भूल गये हैं, जिन्होंने झांसी की रानी पर अमर कविता लिखी थी? रमेश ने अपने ट्वीट में कविता की तीन पंक्तियां भी डालीं। “अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी”॥
जयराम रमेश ने सुभद्रा कुमारी चौहान के बहाने सिंधिया पर जो हमला किया है वह 1857 की क्रांति में सिंधिया परिवार की भूमिका को लेकर किया है। उस क्रांति में सिंधिया परिवार पर आरोप है कि जब क्रांति हुई थी, उस समय देश की ज्यादातर रियासतें और रजवाड़े क्रांति के साथ थे लेकिन सिंधिया परिवार इससे दूर रहा। रानी झांसी ने जब उनसे मदद की मांग की तो उन्होंने मदद से इंकार कर दिया। और इसका प्रमुख कारण यह था कि वे अपनी ग्वालियर रियासत को अंग्रेजों के कोप से बचाना चाह रहा था। इस एक घटना के कारण ही सिंधिया परिवार को निशाने पर लिया जाता रहा है।
सिंधिया पर जयराम रमेश का यह निजी हमला था, सिंधिया ने भी जयराम रमेश के इस ट्वीट का जवाब दिया और जवाहर लाल नेहरू की किताब विश्व इतिहास की झलक को उद्धृत किया, लिखा कि कविताएं कम और इतिहास ज़्यादा पढ़ें। उन्होंने (मराठों ने) दिल्ली साम्राज्य को जीता। मराठा ब्रिटिश वर्चस्व को चुनौती देने के लिए बने रहे, लेकिन मराठा शक्ति ग्वालियर के महादजी सिंधिया की मृत्यु के बाद टुकड़ों में बंट गई। मराठों ने 1782 में दक्षिण में अंग्रेजों को हराया। उत्तर में ग्वालियर का प्रभुत्व था और दिल्ली के गरीब असहाय सम्राट को नियंत्रित किया।
आधुनिक भारत के इतिहास में सिंधिया परिवार की राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस के साथ हुई लेकिन बाद में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ला के साथ हुए मनमुटाव के बाद विजयाराजे सिंधिया ने जनसंघ को समर्थन देना शुरू कर दिया। जनसंघ के बाद बनने वाली बीजेपी के गठन में विजयाराजे सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही। अटल बिहारी वाजपेई को राजनीति में आगे बढ़ाने वालों में विजयाराजे सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
हालांकि विजयाराजे से इतर उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने अपनी राजनीति जनसंघ से की थी। लेकिन बाद में वो कांग्रेस से आ गये। बीच में जैन डायरी में नाम आने के बाद वो कांग्रेस से बाहर गये लेकिन फिर वो कांग्रेस में आ गये। माधवराव से इतर बेटियां वसुंधरा और यशोधरा राजे सिंधिया हमेशा बीजेपी में रहीं। माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में रहे। लेकिन 2020 उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया, जहां वे राज्यसभा सांसद और मंत्री बने।