यूपी उपचुनावः योगी को अयोध्या की कमान क्यों मिली, केशव-ब्रजेश को क्या मिला?

04:14 pm Aug 06, 2024 | सत्य ब्यूरो

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत की जिम्मेदारी बीजेपी की कोर कमेटी ने ले ली है। मुख्यमंत्री आवास पर हुई बैठक में फैसला लिया गया कि संगठन और सरकार दोनों मिलकर उपचुनाव में जीत की इबारत लिखेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और महासचिव संगठन को दो-दो सीटें सौंपी गई हैं। बीजेपी के टॉप-5 नेता खुद उपचुनाव की कमान संभालेंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि योगी-केशव-पाठक-चौधरी और धर्मपाल में से सबसे चुनौतीपूर्ण सीट किसे और क्यों दी गई है।

लोकसभा चुनाव के बाद खाली हुई 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इसमें फूलपुर, गाजियाबाद, मझवां, खैर, मीरापुर, कुंदरकी, करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी और सीसामऊ सीटें शामिल हैं। सपा के चार विधायकों के सांसद और एक विधायक के दोषी ठहराए जाने के कारण पांच सीटें खाली हुई हैं, जबकि भाजपा के कोटे से तीन विधायक सांसद बन गए हैं। इसके अलावा एक सीट आरएलडी विधायक के सांसद बनने और एक सीट निषाद पार्टी के विधायक के बीजेपी से सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई है। इस प्रकार, पांच सीटें सपा के कोटे की हैं, जबकि पांच सीटें भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि उपचुनाव को कितना महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

यूपी उपचुनाव की तैयारी के लिए सीएम योगी ने पहले अपने 30 मंत्रियों की अपनी कमेटी बनाई थी, लेकिन अब तय किया गया है कि सरकार और संगठन के शीर्ष पांच नेता जिम्मेदारी संभालेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ को कटेहरी और मिल्कीपुर विधानसभा सीट की जिम्मेदारी मिली है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को फूलपुर और मंझवा जबकि ब्रजेश पाठक को सीसामऊ और करहल सीट का प्रभार दिया गया है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी को कुंदरकी और मीरापुर की जिम्मेदारी दी गई है जबकि संगठन महासचिव धर्मपाल सिंह को गाजियाबाद और खैर सीट की जिम्मेदारी दी गई है।

यूपी की राजनीति में इस ताजा घटनाक्रम से यह तो भाजपा ने साफ कर दिया कि उपचुनाव होने तक योगी आदित्यनाथ की कुर्सी सलामत है। केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक उपचुनाव के नतीजों का इंतजार करें। अगर दोनों खुद बेहतर नतीजे नहीं दे पाए तो चुप होने के अलावा और क्या रास्ता होगा। योगी आदित्यनाथ अगर अयोध्या (मिल्कीपुर) और कटेहरी की बाजी हारते हैं तो इस्तीफा देने के अलावा और क्या रास्ता होगा।


सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा और अंबेडकरनगर की कटेरी विधानसभा की जिम्मेदारी मिली है। 2022 में ये दोनों सीटें सपा ने जीती थीं। कठेरी से लालजी वर्मा विधायक चुने गए थे, जबकि मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद जीते थे, लेकिन अब दोनों सपा विधायक सांसद बन गए हैं। एसपी कोटे की इन दोनों सीटों पर कमल खिलाने की जिम्मेदारी सीएम योगी को सौंपी गई है। मिल्कीपुर सीट के राजनीतिक अस्तित्व में आने के बाद से भाजपा ने इस पर केवल दो बार जीत हासिल की है, एक बार 1991 में और फिर 2017 में। 1991 में भाजपा केवल एक बार कटेरी सीट जीतने में सफल रही।

ये दोनों सीटें योगी आदित्यनाथ ने चुनौती के तौर पर ली हैं। दरअसल, फैजाबाद लोकसभा सीट भाजपा अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने के बाद भी हार गई। लेकिन अयोध्या की हार के लिए सीधे मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया गया। यही वजह है कि मिल्कीपुर यानी अयोध्या विधानसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करवाकर योगी तमाम आरोपों का जवाब देना चाहते हैं, जो असंतुष्ट भाजपाई उनके ऊपर लगा रहे हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक और कुछ विधायकों ने योगी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।

योगी ने 10 सीटों में से सबसे मुश्किल चुनौती वाली सीटें ली हैं। मिल्कीपुर और कटेहरी में भाजपा का जीतना आसान नहीं है। ये दोनों सीटें सपा का गढ़ बनी हुई हैं। मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद पासी यह सीट जीतने के लिए पूरा दम लगाने जा रहे हैं। इसी तरह कटेहरी में लालजी वर्मा जो ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं, वे इस सीट को भाजपा के पास जाने नहीं देंगे। हाल ही में सोहावल क्षेत्र में एक किशोरी के साथ गैंगरेप होने और उसमें सपा नेता की गिरफ्तारी की वजह से अवधेश प्रसाद पर दबाव बन गया है। उस सपा नेता को अवधेश प्रसाद से जोड़ दिया गया है। पीड़ित परिवार का कहना है कि आरोप सपा नेता के नौकर पर है लेकिन एफआईआर सपा नेता पर दर्ज हुई है। यह घटना भी मिल्कीपुर में चुनावी मुद्दा बन सकती है।

मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और यहां दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। सामान्य वर्ग के साथ-साथ ओबीसी मतदाता भी निर्णायक हैं, जबकि मुस्लिम भी अहम भूमिका निभाते हैं। इसी तरह कठेरी सीट पर दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन मुस्लिम, ब्राह्मण, कुर्मी, निषाद मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं। जातीय समीकरण के लिहाज से दोनों सीटें बीजेपी के लिए काफी मुश्किल मानी जा रही है। ऐसे में देखना होगा कि सीएम योगी बीजेपी की जीत की कहानी कैसे लिखते हैं।

केशव फूलपुर और मझवां में कुछ कर पाएंगेः उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को फूलपुर और मझवां विधानसभा सीट के उपचुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 2022 में फूलपुर सीट बीजेपी जीतने में कामयाब रही, जबकि मझवां सीट उसकी सहयोगी पार्टी निषाद पार्टी ने जीती। दोनों सीटों से विधायक अब सांसद बन गए हैं, जिसके चलते उपचुनाव होना है। बीजेपी 2017 और 2022 में फूलपुर सीट जीतने में कामयाब रही, जबकि बीजेपी ने 2017 में मझवां सीट जीती। 2022 में निषाद पार्टी का विधायक चुना गया। फूलपुर और मझवां विधानसभा सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए केशव प्रसाद मौर्य को जिम्मेदारी दी गई है। केशव प्रसाद मौर्य खुद फूलपुर से सांसद रह चुके हैं और इसी इलाके से आते हैं। फूलपुर में दलित और यादव मतदाता अहम हैं, लेकिन कुर्मी यहां तुरुप का इक्का साबित हो रहे हैं। यहां ब्राह्मण और मुस्लिमों की बड़ी संख्या है, जिसके चलते सपा जीत रही है। मझवां सीट के समीकरण पर नजर डालें तो यहां ब्राह्मण, मल्लाह, कुशवाहा, पाल, दलित और ठाकुर वोटर अहम हैं, जिनका फायदा उठाकर यहां जीत की पटकथा लिखी गई है। 2002 से 2017 तक बसपा का कब्जा था और उसके बाद 2017 में बीजेपी और 2022 में निषाद पार्टी ने जीत हासिल की। ​​बीजेपी ने केशव मौर्य के जरिए ओबीसी वोटों को आकर्षित कर अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखने की रणनीति बनाई है।

करहल में कुछ कर पाएंगे ब्रजेश पाठक

डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को कानपुर की सिसमऊ और मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट का प्रभार दिया गया है। ये दोनों सीटें बीजेपी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण मानी जा रही हैं। सिसमऊ विधानसभा सीट पर लगातार तीन बार से सपा जीतती आ रही है और इरफान सोलंकी विधायक थे। 1996 के बाद से बीजेपी इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई है. करहल सीट सिर्फ एक बार सपा हारी है। ऐसे में दोनों सीटें सपा की सबसे मजबूत सीटों में मानी जाती हैं और बीजेपी के लिए काफी मुश्किल हैं। उपचुनाव में सबसे मुश्किल काम ब्रजेश पाठक को सौंपा गया है, जहां उनके ऊपर कमल खिलाने की जिम्मेदारी है। 2022 में करहल सीट से अखिलेश यादव विधायक रह चुके हैं, जिन्होंने सांसद बनने के बाद इस्तीफा दे दिया है। 

सिसमऊ सीट के समीकरणों पर नजर डालें तो यहां सबसे ज्यादा वोटर मुस्लिम हैं, उसके बाद ब्राह्मण, फिर दलित, कायस्थ, वैश्य, यादव और सिंधी हैं। मुस्लिम वोटर करीब एक लाख हैं, जबकि 50 हजार ब्राह्मण हैं। इरफान सोलंकी ने मुस्लिम वोटों के साथ अन्य जातियों के वोट जोड़कर जीत की हैट्रिक बनाई थी। करहल सीट सपा की पारंपरिक सीट रही है, जहां यादव मतदाता एक लाख से अधिक हैं, इसके बाद पाल और शाक्य मतदाता हैं। इसके अलावा दलित और ठाकुर वोट भी अच्छे हैं। ऐसे में सबसे कठिन सीट देने से ब्रजेश पाठक की चुनौती बढ़ गई है। इन दोनों सीटों पर बीजेपी की जीत ब्रजेश पाठक के लिए लोहे के चने चबाने जैसी है।

मीरापुर की लड़ाई भूपेंद्र चौधरी के लिए आसान नहीं

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी को मुजफ्फरनगर की मीरापुर और मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी मिली है। बीजेपी के मुताबिक दोनों सीटें मुश्किल मानी जा रही हैं। कुंदरकी सीट से बीजेपी सिर्फ एक बार चुनाव जीत पाई है, जबकि मीरापुर सीट पर राजनीतिक अस्तित्व में आने के बाद बीजेपी सिर्फ एक बार 2017 में चुनाव जीत पाई है। 2022 में सपा कुन्दरकी सीट जीतने में कामयाब रही है, जबकि मीरापुर सीट सपा के समर्थन से रालोद ने जीती थी। रालोद से विधायक चंदन चौहान अब सांसद चुने गए हैं। आरएलडी इस सीट पर उपचुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, जबकि बीजेपी कुंदरकी सीट पर अपनी किस्मत आजमाएगी। 

कुन्दरकी सीट के राजनीतिक समीकरण पर नजर डालें तो 65 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं, इसके बाद दलित और अन्य ओबीसी मतदाता हैं। इसके अलावा राजपूत मतदाताओं की संख्या करीब 30 हजार है। मीरापुर सीट के समीकरण पर नजर डालें तो यहां मुस्लिमों की संख्या सबसे ज्यादा है। यहां एक लाख दस हजार मुस्लिम और करीब 55 हजार दलित मतदाता हैं। इसके बाद जाटों की संख्या 25 हजार, गुर्जरों की 20 हजार है, जबकि प्रजापति और अन्य ओबीसी के भी अच्छे वोट हैं। ऐसे में दोनों ही मुस्लिम बहुल सीटें हैं, देखना होगा कि बीजेपी और उसके सहयोगियों के लिए जीत का फॉर्मूला भूपेंद्र चौधरी कैसे तय करते हैं।

धर्मपाल के खाते में गाजियाबाद-खैर

यूपी भाजपा के संगठन महासचिव धर्मपाल सिंह को गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 2022 में बीजेपी दोनों सीटें जीतने में कामयाब रही थी। गाजियाबाद सीट 2007 से बीजेपी के पास है, जबकि 2017 से बीजेपी इस सीट पर जीत रही है। इन दोनों विधानसभा सीटों पर जाट मतदाताओं की अच्छी संख्या है और आरएलडी के साथ गठबंधन के कारण बीजेपी की स्थिति मजबूत मानी जाती है। गाजियाबाद में वैश्य, दलित, जाट और मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं, जबकि खैर सीट पर जाट, दलित और मुस्लिम जीत-हार की भूमिका में हैं। बीजेपी की जीत का सिलसिला बरकरार रखने की चुनौती बीजेपी के संगठन महासचिव धर्मपाल सिंह के कंधों पर है।