ओम बिड़लाः 'आलाकमान' और भाजपा की धुन पर नाचने वाला एक कलाकार
ओम बिड़ला तीसरी बार राजस्थान में कोटा से भाजपा सांसद चुने गए हैं और बुधवार 26 जून को वो लोकसभा के स्पीकर ध्वनिमत से चुन लिए गए। विपक्ष ने सांकेतिक विरोध किया। लेकिन जब पलटूराम के नाम से मशहूर नीतीश कुमार की जेडीयू, अवसरवाद के लिए विख्यात चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और ईडी-सीबीआई से डरे हुए जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी जैसी पार्टियों का साथ भाजपा को मिला हो तो उसका मनचाहा विवादित शख्स स्पीकर बनना ही था। ओम बिड़ला के कंधे पर सवार होकर भाजपा आलाकमान (मोदी-शाह) अब उन सारे बड़े फैसलों को करने वाले हैं, जिसकी बाबत लोकसभा चुनाव 2024 से पहले खुद भाजपा के लोग बताते फिरते थे।
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नए स्पीकर ने चुने जाने के फौरन बाद 26 जून 2024 को ही अपना रंग दिखाना और जमाना शुरू कर दिया है। इसी रिपोर्ट में आगे उस पर चर्चा की गई है।
ओम बिड़ला ने सिर्फ संसद में ही नहीं बल्कि संसद के बाहर भी कई विवादों को जन्म दिया। कोटा लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी आईएएस बेटी अंजलि बिड़ला ने खुलकर उनके लिए चुनाव प्रचार किया। लेकिन चुनाव आयोग ने कभी इसका संज्ञान नहीं लिया। मीडिया में कभी इस पर कोई बहस नहीं हुई। हालांकि अंजलि के चयन पर विवाद भी हुआ। उन्होंने 2019 में यूपीएससी परीक्षा दी थी। वे यूपीएससी की कांसालिडेटेड रिजर्व लिस्ट से चुनी गईं। विवाद बढ़ने पर यूपीएससी ने 2021 में बताया कि ऐसी कंसालिडेटेड रिजर्व लिस्ट वो बनाता है, जिसके जरिए बाद में आईएएस की नियुक्ति होती है। लेकिन इसके लिए ऐसे कैंडिडेट को प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास करना होती है। इस विवाद को यहीं छोड़कर ओम बिड़ला के पिछली संसद में किए गए फैसलों पर बात करना जरूरी है।
बतौर स्पीकर विवादास्पद फैसले
संसदीय इतिहास में ओम बिड़ला सिर्फ विपक्षी सांसदों को निलंबित करने और विपक्षी नेताओं के गंभीर आरोपों को संसदीय कार्यवाही से बाहर निकालने के लिए याद किए जाते रहेंगे। स्पीकर निश्चित रूप से सबसे बड़ी पार्टी से होता है लेकिन स्पीकर की कुर्सी पर बैठने के बाद वो सिर्फ अपनी ही पार्टी का नहीं रह जाता। खासकर जब संसद में किसी एक पार्टी का भारी बहुमत हो तो यहीं पर स्पीकर को अपनी तटस्थता और रणनीतिक कौशल दिखाना होता है। लेकिन ओम बिड़ला ने लगभग 140 विपक्षी सदस्यों को निलंबित कर इतिहास रच दिया। और यह सब उन तीन न्याय आपराधिक संहिताओं को पास कराने के लिए किया गया जो सीआरपीसी का स्थान लेंगी। 1 जुलाई से तीन संहिताएं लागू होने वाली है। तीनों न्याय संहिताएं लोकतंत्र विरोधी हैं और देश में अभिव्यक्ति की आजादी को नए खतरों का सामना करना पड़ेगा। तीनों संहिताओं को बिना बहस अध्यक्ष ओम बिड़ला ने पास होने दिया था।
अडानी समूह के खिलाफ राहुल गांधी ने बोलने का साहस दिखाया। लेकिन उनके तथ्यात्मक बयानों को सदन की कार्यवाही से निकालने का आदेश इन्हीं ओम बिड़ला ने दिया। विश्व मीडिया ने अडानी पर खोजपूर्ण रपटें छापीं। फिर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आई, बिड़ला साहब ने उस पर बहस ही नहीं होने दी। टीएमसी की महुआ मोइत्रा ने भी अडानी मामला संसद में उठाना चाहा। लेकिन राहुल गांधी को और महुआ मोइत्रा को लोकसभा की सदस्यता से वंचित करने में बिड़ला भाजपा आलाकमान का एक हथियार बन गए।
यह भी ओम बिड़ला की रहनुमाई में हुआ जब संसद में राहुल गांधी बोलने के लिए खड़े होते थे तो लोकसभा टीवी का कैमरा ओम बिड़ला पर होता था और राहुल की सिर्फ आवाज सुनाई देती थी। कई मुखर सांसदों के माइक का बटन ही बंद कर दिया जाता था। राहुल गांधी अब नेता विपक्ष हैं। देखना है कि 18वीं लोकसभा में ओम बिड़ला का व्यवहार नेता विपक्ष के लिए कैसा होता है।
ओम बिड़ला ने इन दो मुद्दों पर भी बहस नहीं होने दी। और ये उनका अपना फैसला नहीं था। वे किसी के कहने पर ऐसा कर रहे थे।
- चीन की भारतीय सीमा में घुसपैठ। अनगिनत बार कई सीमाओं पर झड़पें। लोकसभा में इस मुद्दे पर बहस नहीं होने दी गई।
- मणिपुर में जातीय जनसंहार, गैंगरेप, तीन सौ चर्चों का जलाया जाना। इन पर भी बहस नहीं होने दी गई। प्रधानमंत्री ने मणिपुर के आदिवासियों का हालचाल लेना आज तक जरूरी नहीं समझा।
मीडिया की संसद में एंट्री रोकने में ओम बिड़ला चैंपियन रहे। कोविड प्रतिबंधों की आड़ में मीडिया के एक बड़े वर्ग की एंट्री तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बिड़ला ने रोक दी। यह सब एक सोची समझी योजना के तहत किया जा रहा था। मीडिया के जिन लोगों की एंट्री संसद में थी, उनकी मॉनिटरिंग पहले भी होती थी। यह सब किसके लिए किया जा रहा था। इसे समझना बहुत टेढ़ी बात नहीं है।
बिड़ला का ब्राह्मण प्रेम
ओम बिड़ला की एक्स (ट्विटर) पर जातिवादी टिप्पणी को लेकर काफी विवाद हुआ। उस समय वो नए-नए लोकसभा अध्यक्ष बने थे तो कोटा में हर छोटे-बड़े प्रोग्राम में पहुंच जाते थे। 8 सितंबर 2029 को ब्राह्मण महासभा की कोटा बैठक में भाग लेते हुए बतौर लोकसभा अध्यक्ष बिड़ला ने कहा था- ब्राह्मणों का हमेशा समाज में उच्च स्थान रहा है। यह स्थान उनकी त्याग, तपस्या का परिणाम है। यही वजह है कि ब्राह्मण समाज हमेशा से मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है।
समाज में ब्राह्मणों का हमेशा से उच्च स्थान रहा है। यह स्थान उनकी त्याग, तपस्या का परिणाम है। यही वजह है कि ब्राह्मण समाज हमेशा से मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है। pic.twitter.com/ZKcMYhhBt8
— Om Birla (@ombirlakota) September 8, 2019
ओम बिड़ला की इस टिप्पणी से लोग नाराज हो गए और कई लोगों ने लोकसभा अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे की मांग की। गुजरात के विधायक और दलित कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी ने ओम बिड़ला से जाति व्यवस्था के समर्थन के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा। जिग्नेश ने कहा- "भारतीय जाति व्यवस्था का यह उत्सव न केवल निंदनीय है, बल्कि अपमानजनक भी है! यह हमारे लिए एक मजाक है कि उनके जैसा जातिवादी व्यक्ति हमारा लोकसभा अध्यक्ष है। उन्हें इस रवैये के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।"
नागरिक अधिकार संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने भी ओम बिड़ला की टिप्पणी की निंदा की थी। पीयूसीएल ने कहा था कि बिड़ला का ट्वीट भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 14 में लिखा है, "राज्य भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा।" संस्था ने कहा- "हम (ओम बिड़ला के) बयान की कड़ी निंदा करते हैं। किसी समुदाय का वर्चस्व स्थापित करना, किसी समुदाय को अन्य समुदायों से श्रेष्ठ घोषित करना संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है। यह एक तरह से अन्य समुदायों के प्रति हीनता की भावना पैदा करता है।" मोदी राज में आज अनुच्छेद 14 की क्या स्थिति है, यह कोई छिपी बात नहीं है।
ओम बिड़ला का 18वीं लोकसभा में कार्यकाल कैसा होगा, इस पर अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन एक मशहूर अंग्रेजी मुहावरे का हिन्दी अनुवाद है- आने वाली घटनाएं अपना साया पहले ही छोड़ देती हैं। 26 जून को भारत ने देखा जब 50 साल पुरानी घटना को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निन्दा प्रस्ताव लोकसभा में नए स्पीकर ओम बिड़ला ने पास होने दिया।
This is the first day of the House, and look at this man’s arrogance.
— Amock (@y0geshtweets) June 26, 2024
He should act as a custodian of the House rather than behave like a party spokesperson#ombirla #ParliamentSession pic.twitter.com/XvZKfKrUtB
50 साल बाद इंदिरा गांधी की निन्दा!
50 साल पहले लगाए गए आपातकाल की सजा इस देश ने इंदिरा गांधी को हराकर दी थी। उसके बाद उनकी शहादत हुई। फिर उनके बेटे राजीव गांधी की शहादत हुई। जिस आपातकाल की तारीफ आरएसएस ने की थी और कुछ को छोड़कर तमाम नेताओं ने इंदिरा गांधी के सामने सरेंडर कर दिया था। वो लोग आज इंदिरा का निन्दा प्रस्ताव पारित कर रहे हैं। इंदिरा के आपातकाल से उस समय भी असली लड़ाई देश की मीडिया ने लड़ी थी। आरएसएस और भाजपा के अधिकांश नेताओं को छोड़कर तमाम समाजवादी, कम्युनिस्ट नेता जेलों में थे। प्रेस सेंसरशिप लागू थी।ओम बिड़ला की भूमिका अपनी जगह लेकिन जेडीयू के नीतीश कुमार, टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू, वाईएसआरसीपी के जगनमोहन रेड्डी को यह देश उतना ही याद रखेगा, जितना वो ओम बिड़ला को याद रखेगा। क्योंकि इन तीनों की वजह से भाजपा के आलाकमान (मोदी-शाह) अपनी पसंद के कलाकार को फिर से रंगमंच पर लाने में सफल रहे हैं।