विपक्षी एकता का प्रयास आज फिर से तेज हो गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व राहुल गांधी से मिले और फिर बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से। राहुल गांधी ने नीतीश से अपनी मुलाक़ात को विपक्षी एकता के लिए ऐतिहासिक क़रार दिया है। तो क्या सच में अब विपक्षी एकता का प्रयास काफ़ी गंभीरता से किया जा रहा है? क्या नीतीश को विपक्षी एकता के लिए कोई ख़ास ज़िम्मेदारी दी गई है?
कांग्रेस के नेताओं के साथ मुलाक़ात के साथ ही ये कयास लगाए जाने लगे थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से उनकी मुलाक़ात के बाद तो यह कयास और ज़्यादा पुष्ट होता नज़र आया। केजरीवाल ने बुधवार को दिल्ली में अपने बिहार के समकक्ष नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाक़ात की। अगले साल होने वाले राष्ट्रीय चुनाव में भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों के एक साथ आने पर जोर दिया गया।
नीतीश और तेजस्वी की दिल्ली में दूसरे दलों के नेताओं के साथ मुलाक़ातों के बाद कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस नेताओं ने नीतीश को विपक्षी दलों को एकजुट करने की ज़िम्मेदारी दी है। कहा जा रहा है कि काफ़ी हद तक यह संयोजक जैसी ज़िम्मेदारी होगी। हालाँकि, इसकी पुष्टि न तो कांग्रेस की तरफ़ से की गई है और न ही जेडीयू या आरजेडी की तरफ़ से। आम आदमी पार्टी ने भी इस पर ज़्यादा कुछ नहीं बोला है। इन सभी पार्टियों ने इतना ही कहा है कि यह सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का प्रयास है।
यह 2024 के चुनाव के लिए विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए कांग्रेस और जनता दल (यूनाइटेड) यानी जदयू के शीर्ष नेताओं की पहली औपचारिक बैठक थी।
नीतीश के साथ बैठक में राहुल गांधी सहित कई नेताओं ने कहा, 'हमने यहाँ एक ऐतिहासिक बैठक की। बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा की गई और हमने फ़ैसला किया कि हम सभी दलों को एकजुट करेंगे और आगामी चुनाव एकजुट तरीके से लड़ेंगे। हमने यह फैसला किया है और हम सभी इसके लिए काम करेंगे।'
राहुल गांधी के ऐसे बयान की सहमति में बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा,
“
हम देश में अधिक से अधिक पार्टियों को एकजुट करने के लिए पूरे प्रयास करेंगे।
नीतीश कुमार, बिहार सीएम
जदयू, आरजेडी और कांग्रेस बिहार में गठबंधन सरकार में हैं। नीतीश कुमार के दिल्ली में और विपक्षी नेताओं से मिलने की संभावना है। इधर खड़गे ने भी भाजपा के खिलाफ 'समान विचारधारा' वाली पार्टियों को एकजुट करने के प्रयास में डीएमके के एमके स्टालिन और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सहित अन्य लोगों से भी बात की है।
बता दें कि नीतीश कुमार ने इससे पहले पिछले साल भी विपक्षी एकता के प्रयास में कई दलों के नेताओं के साथ मुलाक़ात की थी। नीतीश ने पिछले साल अगस्त महीने में बीजेपी को दरकिनार कर तेजस्वी यादव की राजद और कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन को फिर से आकार दिया है। उस गठबंधन के तुरंत बाद के हफ्तों में नीतीश कई विपक्षी नेताओं से मिले थे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर भी नीतीश से जाकर पटना में मिले थे। हालाँकि केसीआर की अपनी खुद की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं।
लेकिन नीतीश कुमार अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा की बात को खारिज करते रहे हैं। वह कहते रहे हैं, 'मैं केवल विपक्ष को एकजुट करना चाहता हूँ।' लेकिन जानकार उनकी बात को पक्के तौर पर इस रूप में नहीं लेते हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि वह बिहार की राजनीति तेजस्वी यादव के हवाले कर खुद दिल्ली का रास्ता अपना सकते हैं। कुछ लोग तो जेडीयू के आरजेडी में विलय के कयास भी लगा रहे हैं। बहरहाल, यह एक कयास मात्र ही है और इसकी अभी पुष्टि नहीं की जा सकती है।
जदयू नेता नीतीश कुमार ने विपक्षी नेताओं तक पहुँच का दूसरा चरण शुरू किया है। माना जा रहा है कि उन्हें उन विपक्षी दलों के नेताओं से मिलने का ज़िम्मा दिया गया है जिनकी कांग्रेस के साथ पटरी नहीं बैठती है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसे नेताओं के साथ मुलाक़ात नीतीश कुमार के एजेंडे में हो सकती हैं। लेकिन सवाल वही है कि क्या नीतीश 2024 से पहले सभी विपक्षी दलों को एकजुट कर पाएँगे?