प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बीच की दूरी लगातार बढ़ती ही जा रही है। भागवत ने शुक्रवार को मोदी सरकार की नीतियों की खुले आम आलोचना कर डाली। उन्होंने नागपुर में प्रहार समाज जागृति संस्था के एक कार्यक्रम में कहा कि सरकार की नीतियों का असर पूरे देश पर पड़ता है। इसी क्रम में उन्होंने महँगाई और बेरोज़गारी बढने पर चिंता जताई है। उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध नहीं हो रहा है, पर सीमा पर पहले से अधिक लोग मारे जा रहे हैं।
महँगाई का सच
महँगाई पर दिया उनका बयान प्रधानमंत्री के दावों के बिल्कुल उलट है। मोदी ने 15 दिसंबर को बेजेपी के 'मेरा बूथ, सबसे मजबूत' कार्यक्रम के दौरान कहा कि उनकी सरकार सफलतापूर्वक महँगाई दर को रोके रही है।
सच तो यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से महँगाई दर पहले गिरी, पर बीते कुछ समय से लगातार बढ़ी है। आँकड़े बताते हैं कि 2014 में जिस समय मोदी प्रधानमंत्री बने, महँगाई की दर 5.8 प्रतिशत थी, जो गिरते हुए 2017 में 3.6 प्रतिशत तक आ गई। लेकिन उसके बाद यह बढ़ने लगी तो लगातार बढ़ती हुई इस साल 4.89 प्रतिशत तक जा पहुँची। इसलिए भागवत का यह कहना कि महँगाई बढ़ी है, सच से परे नहीं है।
लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह कहना है कि युद्ध नहीं होने के बावजूद सीमा पर पहले से ज़्यादा सैनिक शहीद हो रहे हैं।
नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान सीमा पर पाकिस्तानी फ़ौज़ के साथ होने वाली झड़पों और उसमें मारे जाने वाले सैनिकों को बहुत ही बड़ा मुद्दा बना दिया था। यह मुद्दा भावनात्मक तो है ही, बीजेपी-आरएसएस के राष्ट्रवाद के खाँचे में भी फ़िट बैठता है।
सीमा पर ज़्यादा सैनिक मरे
रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने एक प्रश्न के जवाब में राज्यसभा को बताया कि पाकिस्तान सीमा पर होने वाले युद्धविराम उल्लंघन और गोलाबारी में 2015 से 2018 के बीच भारतीय सेना के 44 और सीमा सुरक्षा बल के 25 जवान मारे गए हैं। यानी भारत ने अपने कुल 69 जवान इन झड़पों में खोए हैं। उन्होंने लिखित प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि साल 2015 में युद्धविराम उल्लंघन की 152 घटनाएँ हुईं। ये घटनाएँ बढ़ती गईं। साल 2016 में 228, 2017 में 860 और 2018 में 942 बार पाकिस्तान सीमा पर युद्धविराम उल्लंघन की घटनाएँ हुईं। ख़ुद मोदी सरकार आधिकारिक तौर पर मानती है कि युद्धविराम की घटनाएं बढ़ी हैं और उनमें मारे जाने वाले सैनिकों की तादाद भी। मोहन भागवत ने मोदी सरकार के बारे में जो कुछ कहा, वह ग़लत नहीं है।
क़ब्रिस्तान-श्मसान पर मोदी की आलोचना
मोहन भागवत ने एक बार यह कह कर बीजेपी और मोदी के समर्थकों के लिए दिक्क़त पैदा कर दी थी कि वे क़ब्रिस्तान और श्मशान की राजनीति का समर्थन नहीं करते, आरएसएस इस तरह की बात नहीं करती है। उन्होंने मोदी का नाम तो नहीं लिया था, पर यह चोट साफ़ तौर पर प्रधानमंत्री पर ही था। मोदी ने उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश सरकार पर हमला बोलते हुए यह आरोप लगाया था कि वह सरकार क़ब्रिस्तान और श्मशान जैसी चीजों पर भी भेदभाव करती है और हिन्दुओं की परवाह नहीं करती। उन्होंने फ़तेहपुर में एक चुनाव रैली में कहा था, 'यदि किसी गाँव में क़ब्रिस्तान है तो वहां श्मसान भी होना चाहिए, यदि रमज़ान और ईद के मौके पर बिजली दी जाती है तो होली-दीवाली पर भी बिजली रहनी चाहिए।'
उन्होंने राज्य सरकार पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिटकरण का आरोप लगाने के लिए यह कहा था।
अल्पसंख्यक तुष्टिकरण संघ का प्रिय विषय है और वह इसे ज़ोरशोर से उठाता रहा है। संघ ने कई बार इस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार को घेरा है। पर मोदी के भाषण के कुछ दिन बाद ही संघ प्रमुख ने क़ब्रिस्तान-श्मसान की बात न करने की सलाह दे डाली थी।
इंदिरा की तारीफ़
इसी तरह भागवत ने यह कह दिया था कि वे यह नहीं मानते कि बीते 70 साल में देश में कोई काम ही नहीं हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने इंदिरा गाँधी की तारीफ़ कर दी थी। उन्होंने बीते साल आरएसएस के विजयदशमी कार्यक्रम में कहा था कि इंदिरा गाँधी ने अनुसूचित जाति-जनजातियों के लिए छठी पँचवयर्षीय योजना के दौरान 1980-85 में विशेष स्कीम चालू की थी, जिसका फ़ायदा उन समुदायों को मिला था। भागवत ने इंदिरा गाँधी की प्रशंसा करते हुए यह कहा था।
इसके अलावा विज्ञान भवन में 'भारत का भविष्य: आरएसएस के विचार से' विषय पर अपनी बात रखते हुए कांग्रेस पार्टी की ही तारीफ़ कर दी थी। उन्होंने कहा कि था कि देश की आज़ादी की लड़ाई में कांग्रेस की बहुत बड़ी भूमिका है और उसने कई बड़े नेता देश को दिए हैं।
नेहरू पर चोट
इंदिरा और कांग्रेस की तारीफ़ मोदी के लिए ख़ास परेशानी का सबब है। नरेंद्र मोदी की यह लागातार कोशिश है कि नेहरू और कांग्रेस की नीतियों पर लगातार चोट करते रहें और नेहरू को 'विलन' के रूप में पेश करें। इसी रणनीति के तहत मोदी ने 'नेहरू-बनाम पटेल' और 'नेहरू-बनाम सुभाष' का नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की और इसमें कुछ हद तक कामयाब भी रहे। वे कई बार सीधे और कई बार घुमा फिरा कर देश की तमाम बुराइयों के लिए नेहरू को ज़िम्मेदार ठहरा चुके हैं। अंतिम वाक़या बीते हफ़्ते का ही है। मोदी ने बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक के बाद कार्यकर्ताओं को दिल्ली के रामलीला मैदान में संबोधित करते हुए कहा कि यदि आज़ादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू के बाजय पटेल हुए होते तो देश बिल्कुल अलग दिशा में गया होता और आज जैसी स्थिति क़तई नहीं हुई होती।कांग्रेस मुक्त भारत?
मोदी इसी तर्क को कई बार इस रूप में पेश कर चुके हैं, कांग्रेस मुक्त भारत। उन्होंने 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि आज़ादी के बाद गाँधी कांग्रेस को भंग कर देना चाहते थे। कांग्रेसियों ने उनकी एक न सुनी, पर वे गाँधी के इस विचार को पूरा करेंगे और देश से कांग्रेस को ख़त्म कर देंगे। इसके बाद वे लगभग हर चुनाव, उपचुनाव में 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा बुलंद ज़रूर करते हैं।
पर भागवत ने दिल्ली में एक किताब के विमोचन समारोह में कहा, 'कांग्रेस मुक्त भारत राजनीतिक नारा है। यह आरएसएस की भाषा नहीं है। हम किसी को भी बाहर निकाल कर चलने में यक़ीन नहीं करते, संघ सबको साथ लेकर चलने की नीति अपनाता है। '
बीते कुछ दिनों में आरएसएस ही नहीं, बीजेपी के भी कुछ नेता मोदी पर हमले कर चुके हैं। इसी क्रम में बीते दिनों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नेतृत्व को हार की ज़िम्ममेदारी लेने को कहा था। यह अकेली घटना नही है और गडकरी अकेले नेता नहीं हैं, जिसने मोदी पर हमला किया है। पर ये हमले अब बढ़ते जा रहे हैं। ज़ाहिर है, संघ परिवार में मोदी के प्रति नाराज़गी बढ़ती ही जा रही है।