सूरत की एक अदालत द्वारा राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद इस बात पर बहस चल रही है कि संसद की उनकी सदस्यता रहेगी की जाएगी। सदस्यता रद्द करने और बहाल करने का फैसला लोकसभा अध्यक्ष द्वारा लिया जाता है।
राहुल की सदस्यता पर जो भी फैसला होगा वह तो बाद में होगा। उससे पहले एक दिलचस्प मामला है लक्ष्यद्वीप के सांसद पीपी मोहम्मद फैसल का। जिन्हें एक मामले में दो साल से ज्यादा की सजा हुई, जिसके चलते उनकी सदस्यता खत्म हो गई। केरल हाईकोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी, जिसके अनुसार मोहम्मद फैसल सजायाफ्ता नहीं है, इस आधार पर उनकी संसद की सदस्यता रद्द करने का भी कोई आधार नहीं है। उसके बावजूद मोहम्मद फैसल संसद सदस्य के तौर पर काम नहीं कर पा रहे हैं। इसका कारण किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द करने का फैसला कोर्ट के आदेश के बाद सदन का अध्य़क्ष ले सकता है।
मोहम्मद फैसल के मामले में भी ऐसा ही हुआ, लोअर कोर्ट के आदेश पर फैसला लेते हुए लोकसभा अध्य़क्ष ने उनकी सदस्यता तो रद्द कर दी लेकिन हाईकोर्ट द्वारा सजा पर रोक लगाए जाने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने उनकी सदस्यता पर कोई फैसला नहीं लिया।
मोहम्मद फैसल को लोअर कोर्ट द्वारा 11 जनवरी को सजा सुनाई गई, 13 जनवरी को लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी, 25 जनवरी को केरला हाईकोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी।
लोकसभा से सदस्यता रद्द करने के बाद चुनाव आयोग ने सीट को खाली मानकर वहां उपचुनाव की घोषणा कर दी। चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद फैसल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग उपचुनाव कराए जाने की घोषणा रद्द करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट के फैसले के बाद कानून मंत्रालय ने भी उनकी सदस्यता बहाल करने की सिफारिस की।
इस मामले में मोदम्मद फैसल ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि 'सजा की सजा की घोषणा होते ही सदस्यता रद्द की जा सकती है, तो फिर सजा पर रोक या स्टे लगाए जाने के बाद सदस्यता की बहाली भी तो की जानी चाहिए'।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद मेरी सदस्यता बहाली की फाइल लोकसभा अध्यक्ष के ऑफिस में पड़ी हुई है, लेकिन उस पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है, न ही लोकसभा सचिवालय की तरफ से कोई आदेश जारी किया गया है।
कोर्ट के आदेश के बाद लोकसभा सचिवालय आदेश जारी नहीं कर रहा है। फैसल कहते हैं कि सदस्यता बहाली के आदेश के इंतजार में मैं रोज संसद आता हूं लेकिन सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले सकता हूं। सदस्यता बहाली को लेकर लोकसभा अध्यक्ष से कई बार अपील भी कर चुका हूं।
फैसल के मामले को देखते हुए सवाल उठता है कि कोई भी सदस्य को अगर सजायाफ्ता होने के बाद सदस्यता गंवा देता है, और बाद में उस पर रोक लगा दिये जाने के बाद उसकी सदस्यता रद्द नहीं की जा सकती, ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष सदस्यता रद्द बहाल करने के मसले पर कितना स्वतंत्र है, या फिर यह उसकी मर्जी पर निर्भर है कि वो जब तक चाहे सदस्यता बहाली के आदेश को टाल सकता है।