राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद से पार्टी में अफ़रा-तफ़री का माहौल है। जहाँ पार्टी के वरिष्ठ नेता नए अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए माथापच्ची कर रहे हैं वहीं कांग्रेस में एक के बाद एक इस्तीफ़े का सिलसिला जारी है। रविवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे दिया। मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने भी अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। राहुल के पद छोड़ने के बाद इस्तीफ़ा देने वाले सिंधिया तीसरे महासचिव हैं। इससे पहले हरीश रावत और दीपक बावरिया भी महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं। लोकसभा चुनाव में ख़राब प्रदर्शन की ज़िम्मेदारी लेते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ भी प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं। अब सवाल उठता है कि कहीं यह सिलसिला आगे भी तो जारी नहीं रहेगा और यदि ऐसा हुआ तो क्या प्रियंका गाँधी भी तो इस्तीफ़ा नहीं देंगी
सबसे आख़िर में इस्तीफ़ा देने वालों में ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। अपना इस्तीफ़ा देने के बाद सिंधिया ने कहा कि वह जनता के जनादेश का सम्मान करते हैं और उसे स्वीकार करते हुए हार की ज़िम्मेदारी लेते हैं। सिंधिया के इस्तीफ़े के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या प्रियंका भी हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए महासचिव पद से इस्तीफ़ा देंगी। बता दें कि सिंधिया बतौर कांग्रेस महासचिव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे उनके प्रभार वाले हिस्से में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीती है। प्रियंका गाँधी वाड्रा बतौर कांग्रेस महासचिव पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं। वहाँ कांग्रेस ने सिर्फ़ एक रायबरेली सीट जीती है। कांग्रेस अध्यक्ष के बतौर राहुल अपनी परंपरागत सीट अमेठी से लोकसभा चुनाव हार गए हैं।
पार्टी में कुछ लोगों का कहना है कि सिंधिया के इस्तीफ़ा देने से प्रियंका पर भी इस्तीफ़ा देने का दबाव बढ़ गया है। राहुल ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रियंका को एक साथ पार्टी महासचिव बनाकर उत्तर प्रदेश की बागडोर संयुक्त रूप से सौंपी थी।
राहुल के इस्तीफ़ा देने के बाद कांग्रेस में इस्तीफ़ा देने की मची इस होड़ को राहुल के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता माना जा रहा है। मिलिंद देवड़ा के बारे में चर्चा है कि वह अब राष्ट्रीय राजनीति में क़दम रख सकते हैं। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम कांग्रेस के नए संभावित अध्यक्षों के लिए चर्चा में चल रहे नामों में लिए दिया जा रहा है।
वफ़ादारी दिखाने के लिए इस्तीफ़े
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी संविधान के मुताबिक़ राहुल के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद पार्टी में तमाम पद अस्थाई रह गए हैं। जो भी नया अध्यक्ष बनेगा वही अपने हिसाब से कांग्रेस कार्यसमिति के साथ-साथ पार्टी की अन्य इकाइयों और समितियों का नए सिरे से गठन करेगा। इसलिए इन नेताओं को इस्तीफ़ा देने की कोई ज़रूरत नहीं है। ऐसा लगता है कि राहुल और गाँधी-नेहरू परिवार के प्रति अपनी वफ़ादारी साबित करने के लिए ये लोग इस्तीफ़ा दे रहे हैं। कांग्रेस में पहले भी कई बार ऐसे मौक़े आए हैं कि जब संगठन में फेरबदल करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को खुला हाथ देने के लिए सभी महासचिवों ने एक साथ इस्तीफ़े दिए।
बैठक में गाँधी-नेहरू परिवार नहीं
राहुल के इस्तीफ़े के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने उनका विकल्प चुनने की एक पहाड़ जैसी चुनौती आ खड़ी हुई है। कई दौर की बैठकों के बाद भी अभी इस बात पर सहमति नहीं बन पाई है कि कांग्रेस का अध्यक्ष किसे बनाया जाए। हालाँकि शनिवार शाम को अचानक कांग्रेस कार्यालय 24 अकबर रोड पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की एक अहम बैठक हुई। इस बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे और पी चिदंबरम जैसे नेता भी शामिल थे। राहुल के इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस मुख्यालय पर वरिष्ठ नेताओं की यह पहली बैठक थी। इस बैठक में गाँधी-नेहरू परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं था। बताया जा रहा है कि इस बैठक में नए अध्यक्ष के नाम पर विचार तो हुआ है लेकिन किसी के नाम पर सहमति नहीं बनी है। इस बैठक में ज़्यादा चर्चा कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार पर मंडरा रहे ख़तरे को लेकर हुई।
नया अध्यक्ष पिछड़े या दलित वर्ग से
अभी तक कांग्रेसी ख़ेमे से ख़बरें आ रही थीं कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष पिछड़े या दलित वर्ग से होगा। अगर पार्टी पिछड़े वर्ग से अध्यक्ष बनाती है तो अशोक गहलोत का नाम तय माना जा रहा है। और अगर दलित वर्ग से बनाती है तो सुशील कुमार शिंदे और मल्लिकार्जुन खड़गे में से किसी एक नाम पर सहमति बन सकती है। हालाँकि मुकुल वासनिक का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए लिया जा रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष के लिए राहुल गाँधी की जगह किसी युवा नेता को ही अध्यक्ष बनाए जाने की सलाह देकर वरिष्ठ नेताओं के सामने एक नई चुनौती पेश कर दी है। कैप्टन का कहना है कि युवा नेतृत्व ही पार्टी को आगे ले जाने की क्षमता रखता है। चर्चा यह भी है कि पार्टी में एक अध्यक्ष के साथ-साथ दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाएँ जिनमें से एक कार्यकारी अध्यक्ष उत्तर भारत से तो दूसरा दक्षिण भारत से हो। पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ एक हफ़्ते के भीतर नए अध्यक्ष का नाम तय हो जाएगा।
कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती
कांग्रेस में जिस तरह महासचिव और अन्य पदों से नेताओं के इस्तीफ़ों का सिलसिला चल रहा है उसे देखते हुए लगता है कि अगले दो-चार दिन में कुछ और लोगों के इस्तीफ़े भी सामने आ सकते हैं। इससे नये अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में लगे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इस समय कांग्रेस के दिग्गज नेता दोहरी चुनौती का सामना करना कर रहे हैं। एक तरफ़ तो उनके सामने पार्टी का नया अध्यक्ष चुनना ही अपने आप में बड़ी चुनौती है। साथ ही अब दनादन इस्तीफ़ों से हो रही पार्टी की किरकिरी से पार्टी के बारे में लोगों में जा रहे ग़लत संदेश को रोकने की चुनौती भी आ पड़ी है।