मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष ‘बनाने’ का दांव, सोनिया एवं राहुल गांधी खेलेंगे? यह सवाल कांग्रेस खेमे से कहीं ज्यादा आमजन, नौकरशाही, मीडिया और विरोधी दलों (विशेषकर बीजेपी) में चर्चा का केन्द्र है।
दिग्विजय सिंह इन दिनों केरल में है। भारत जोड़ो यात्रा के वे समन्वयक हैं। राहुल गांधी इस यात्रा की अगुआई कर रहे हैं। यात्रा 7 सितंबर से आरंभ हुई है। यात्रा का पूरा ताना-बाना दिग्विजय सिंह ने बुना है।
दिग्विजय सिंह 5 सितंबर से केरल में डेरा डाले हुए हैं। राहुल गांधी के साथ लगातार यात्रा में वे चल रहे हैं। बीते 21 दिनों में दिग्विजय सिंह यात्रा की तैयारियों के सिलसिले में केरल से उड़कर पश्चिम बंगाल, असम एवं उड़ीसा गये और केरल वापस लौटे हैं। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की पेशवाई में शामिल होने के लिये दिग्विजय सिंह, ग्वालियर भी आये थे। फिर वापस केरल लौट गये।
खबर है कि दिग्विजय सिंह को दिल्ली पहुंचने के निर्देश मिले हैं। आज रात को वे दिल्ली पहुंचेंगे। दिल्ली से बुलावे को कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। सुगबुगाहट है कि केंद्रीय नेतृत्व दिग्विजय सिंह से कांग्रेस अध्यक्ष पद का परचा भरवाने के ‘मूड’ में है। दिग्विजय सिंह खुद को अध्यक्ष पद की ‘रेस’ में बता भी चुके हैं।
भोपाल में दिग्विजय सिंह से जुड़े बेहद करीबी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि सिंह को दिल्ली पहुंचने के निर्देश हुए हैं। वे फिलहाल केरल के मल्लपुरम जिले में हैं। यात्रा आज कॉजीकोट और मल्लापुरम के बीच बनी हुई है। दिग्विजय सिंह सेे अध्यक्ष पद का परचा भरवाने की सुगबुगाहट और कयासबाज़ी के बीच भोपाल से लेकर दिल्ली, और दिल्ली से लेकर अन्य राज्यों के कांग्रेसियों से कहीं ज्यादा आमजन, नौकरशाही, मीडिया तथा विरोधी दलों में ये सवाल चर्चाओं में है, ‘‘क्या दिग्विजय सिंह पर केन्द्रीय नेतृत्व दांव खेलेगा? उन्हें अध्यक्ष बनवाया जाना कांग्रेस के लिये सही दांव होगा?’’ तमाम सवालों के जवाब भी सवाल उठाने वाले स्वयं ही दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक राकेश दीक्षित का कहना है, ‘बीजेपी को बीजेपी के ही अंदाज में एक्सपोज कर देने का कौशल दिग्विजय सिंह के पास है। वे वचन के पक्के हैं। यारों के यार हैं, तो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को ठिकाने लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने को लेकर भी ख्यात हैं।’
दिग्विजय सिंह की मुस्लिमपरस्ती वाली छवि की ओर ध्यान दिलाये जाने पर दीक्षित कहते हैं, ‘यह वक्त, इस ऐंगल (मुस्लिमपरस्ती), अन्य नफ़े और नुकसान को देखने का नहीं है! पार्टी की नैया भंवर में फंसी हुई है। नैया, डूबने की कगार पर है। ऐसे हालतों में दिग्विजय सिंह जैसे खिवैया पर दांव खेलने में आलाकमान को गुरेज नहीं करना चाहिये। जो नेता हैं, उनमें दांव खेले जाने के लिये दिग्विजय सिंह उपयुक्त च्वाइस है।’
दर्जन भर राज्यों के प्रभारी रहे हैं दिग्विजय
दस सालों तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के पास अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में महासचिव रहते हुए अनेक राज्यों का प्रभार रहा है। वे यूपी, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, गोवा, असम आदि के प्रभारी रह चुके हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक सिंह जाना-पहचाना चेहरा हैं। जी 23 के उन नेताओं, जो पार्टी में बचे हुए हैं को कैसे मनाना है, दिग्विजय सिंह बखूबी जानते हैं। दिग्विजय सिंह का बड़ा प्लस पाइंट हिन्दी-अंग्रेजी पर समान अधिकार होना भी है।
गांधी-नेहरू परिवार से नजदीकी के अलावा दिग्विजय सिंह का एक अन्य प्लस पाइंट बड़े से बड़ा आरोप लगने पर आपा नहीं खोना है। वे संयंमित और तर्कसंगत तरीके से राजनीतिक आरोपों और प्रतिद्वंद्वयों को शालीनता के साथ जवाब देते हैं। सिंह पर भ्रष्टाचार के बड़े सारे आरोप बीजेपी ने लगाये, लेकिन साबित एक भी नहीं हुआ।
दिग्विजय सिंह के मानहानि के नोटिस पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा और नेता प्रतिपक्ष रहे विक्रम वर्मा जैसे घाघ नेताओं को एक समय के बाद कदम पीछे खींचना पड़े थे। बीजेपी की फायर ब्रांड लीडर के तौर पर विख्यात रहीं उमा भारती भी आरोप सिद्ध नहीं कर पायीं थीं और उन्होंने मानहानि के मुकदमे को झेला।
दिग्विजय सिंह के कमजोर पक्ष
दिग्विजय सिंह के कमजोर पक्षों में उनके विवादास्पद बयान, मुस्लिमपरस्ती वाली छवि, कमजोर पड़ चुका राजनीतिक प्रबंधन और दिल्ली में अनेक बड़े कांग्रेसी नेता एवं धड़ों का उनसे दूर होना है। भले ही दिग्विजय सिंह पर मुस्लिम परस्त होने के आरोप लगते हैं, लेकिन वे सनातन धर्म को मानने वाले कांग्रेस के अगुवा नेता हैं। हर ग्यारस का उपवास वे करते हैं। धर्म-कर्म में पीछे नहीं रहते हैं।पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे पीसीसी चीफ कमल नाथ से दिग्विजय सिंह के रिश्ते पहले जैसे नज़र नहीं आते हैं। किंगमेकर के रूप में ख्यात नाथ ने एक अवसर पर रहस्योद्घाटन किया था, ‘कैसे दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका रही थी।’
बहरहाल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ‘विश्वासपात्रों’ के ‘कदम’ ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के सभी समीकरणों को बदल दिया है। गहलोत और दिग्विजय सिंह गहरे दोस्त हैं। तमाम नामों के बीच दिग्विजय सिंह का नाम अध्यक्ष पद के लिये उभरना शायद गहलोत को काफी सुकून दे रहा होगा।
उधर मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वी.डी.शर्मा ने दिग्विजय सिंह को कांग्रेस पार्टी की बागडोर मिलने की संभावनाओं से जुड़े प्रश्न के उत्तर में कटाक्ष भरे अंदाज में कहा, ‘कांग्रेस एक परिवार तक सीमित रही है। अब पूरी तरह से टूट और बिखर चुकी पार्टी में बदनामी से बचने के लिये परिवार खुद आगे न होकर अपने दरबारी को आगे कर रहा है! इससे ज्यादा उम्मीद कांग्रेस से देश को नहीं करना चाहिए।’