कर्नाटक में आज सरकार गठन को लेकर कांग्रेस ने 2024 को लेकर अपने इरादे जाहिर कर दिए। कांग्रेस ने उस सोशल जस्टिस (सामाजिक न्याय) को कर्नाटक में लागू कर दी, जिसका जिक्र चुनावी रैलियों में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के मुंह से सिर्फ सुनने को मिलता था। ओबीसी समुदाय से मुख्यमंत्री (सिद्धारमैया) और वोक्कालिगा समुदाय से डिप्टी सीएम (डीके शिवकुमार) के साथ तीन दलित और एक एसटी मंत्री को बनाकर कांग्रेस ने अपनी मंशा साफ कर दी। चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने जाति आधारित जनगणना की खुलकर वकालत की थी। कांग्रेस के स्टैंड में यह बदलाव मामूली नहीं है। कांग्रेस हमेशा ब्राह्मणों, दलितों और मुसलमानों के वोट से चुनाव जीतती रही है। ब्राह्मण अभी भी भाजपा के साथ है। वो कांग्रेस में नहीं लौटा लेकिन कर्नाटक में तो दलित और मुसलमानों दोनों ही लौटे।
कर्नाटक से पहले पंजाब में भी कांग्रेस की पहली पसंद दलित सीएम (चरणजीत चन्नी) थे। यूपी में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दलित है। पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी दलित है। गौर से देखा जाए तो कांग्रेस ने दलितों को अपने पाले में लाने के लिए मुहिम छेड़ दी है और जहां-जहां मौका मिल रहा है, पार्टी दलितों को महत्व देने में पीछे नहीं हट रही है।
कर्नाटक में 17.15 फीसदी आबादी (20111 की जनगणना के मुताबिक) दलितों की है। करीब 11 फीसदी मुसलमान है। लेकिन इस रिपोर्ट में हमारा फोकस दलित वोट हैं। कर्नाटक में आज 8 मंत्री बने हैं, जिनमें से 3 एससी और 1 एसटी है। यहां ओबीसी के सीएम और वोक्कालिगा के डिप्टी सीएम की बात नहीं हो रही है। लेकिन 8 मंत्रियों में से तीन एससी और एक एसटी से मंत्री बनाना बहुत महत्वपूर्ण संकेत है। यानी आगे जब मंत्रिमंडल विस्तार होगा तो दलित समुदाय के मंत्रियों की संख्या बढ़ सकती है।
विपक्षी एकता से दूर-दूर रहने वाली बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती कैबिनेट में तीन दलित मंत्री बनाए जाने से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि दलित समुदाय से एक डिप्टी सीएम भी होना चाहिए था। मायावती की बसपा के बारे में यह जानना दिलचस्प होगा कि बीएसपी को इस बार यानी 2023 के विधानसभा चुनाव में भी 0.3 फीसदी वोट मिला है। 2018 में भी उसे 0.3 फीसदी वोट मिले थे। दलितों की पार्टी के रूप में स्थापित बीएसपी का वोट शेयर 2008 और 2013 में बहुत बेहतर था लेकिन उसके बाद बीएसपी कर्नाटक मृतप्राय हो गई। लेकिन मायावती को इसकी परवाह नहीं है, उन्हें किसी भी तरह से कांग्रेस की आलोचना करना है। आज भी उन्होंने कांग्रेस की इस बात के लिए आलोचना की।
दलित मतदाताओं के नजरिए से कर्नाटक का चुनाव कांग्रेस के लिए एक उपलब्धि है और आंकड़ों से पुष्टि हो रही है कि दलित और आदिवासी कांग्रेस में वापस लौट आए हैं। कांग्रेस ने 36 एससी आरक्षित सीटों में से 21 सीटें जीतीं और एसटी की 15 में से 14 सीटें हासिल कीं। भाजपा को एसटी की एक भी सीट नहीं मिली। एकमात्र सीट जेडीएस को चली गई। भाजपा को एससी की 15 सीटें मिली हैं। ये आंकड़े कांग्रेस के लिए एक बड़ी बढ़ोतरी बताते हैं, क्योंकि 2018 में उसने 7 एसटी सीटें और 12 एससी सीटें जीती थीं।
ऐसा लगता है कि कर्नाटक में दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा मडिगाओं के वोट इस बार कांग्रेस के पक्ष में आ गए हैं। इसी तरह, 'छूत' दलितों ने भी इस बार कांग्रेस को वोट दिया है, होलया अन्य दलितों के अलावा, जिनका कांग्रेस में हमेशा राजनीतिक प्रतिनिधित्व रहा है। एआईसीसी अध्यक्ष और कलबुर्गी से कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे खुद होलया दलित हैं। उनके बेटे प्रियंग खड़गे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक, कांग्रेस को राज्य में दलित वोटों में 14 फीसदी की बढ़ोतरी मिली है।