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नेताओं पर ईडी के 193 केसों में सिर्फ़ 2 में सजा; एजेंसी बनी सत्ता का हथियार?

नेताओं पर ईडी के 193 केसों में सिर्फ़ 2 में सजा; एजेंसी बनी सत्ता का हथियार?

पिछले दस वर्षों में ईडी द्वारा दर्ज 193 मामलों में सिर्फ 2 में सजा हुई। क्या प्रवर्तन निदेशालय सत्ता के दबाव में काम कर रहा है? विपक्ष के आरोपों और सरकारी दावों पर विश्लेषण।

ईडी पर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सत्ता के इशारे पर कार्रवाई करने का जो आरोप विपक्षी दल ईडी के ख़िलाफ़ लगाते रहे हैं, उसके संकेत अब आँकड़ों से भी मिल रहे हैं। दस साल में राजनेताओं के ख़िलाफ़ 193 मामले दर्ज किए गए जिसमें से सिर्फ़ दो में सज़ा हुई। ये आँकड़े खुद मोदी सरकार ने ही संसद में दिए हैं। 

यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा सांसद एए रहीम के एक सवाल के जवाब में दी। इस आंकड़े ने ईडी की कार्यप्रणाली और इसकी प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, साथ ही राजनीतिक हलकों में इसे लेकर बहस छिड़ गई है। क्या ईडी का इस्तेमाल राजनेताओं के ख़िलाफ़ जानबूझकर किसी ख़ास मक़सद से किया जा रहा है? क्या बिना किसी सबूत के मामले बना दिए जाते हैं और क्या ईडी को लेकर सत्ता का दुरुपयोग किया जा रहा है?

इन सवालों का जवाब मोदी सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी से मिल सकती है। पिछले एक दशक में ईडी ने मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों, एमएलसी और राजनीतिक नेताओं या किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े व्यक्तियों के ख़िलाफ़ 193 मामले दर्ज किए। इनमें से केवल दो मामलों में सजा होना एक ओर तो जांच एजेंसी की कम सफलता दर को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल उठाता है कि क्या ये कार्रवाइयां केवल जांच तक सीमित रह जाती हैं या फिर सबूतों और अभियोजन की गुणवत्ता में कमी है। सरकार ने यह भी साफ़ किया कि कोई भी मामला योग्यता के आधार पर रफा-दफा नहीं हुआ। इसका मतलब है कि ज़्यादातर मामले या तो लंबित हैं या जांच के विभिन्न चरणों में अटके हुए हैं।

राजनीतिक दल लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि ईडी के मामले लंबे समय तक दबाए रखे जाते हैं और जब चुनाव आते हैं तो फिर इन मामलों को सक्रिय कर दिया जाता है। कथित 'जॉब फोर लैंड स्कैम' में बुधवार को ही लालू यादव के परिवार को ईडी ने तलब किया। बिहार में अगले कुछ महीनों में चुनाव होना है। आरजेडी आरोप लगा रहा है कि ऐसा चुनाव में भुनाने के लिए फर्जी आरोपों में छवि ख़राब करने के लिए किया जाता है। सभी विपक्षी दल ऐसे ही आरोप लगाते रहे हैं। 

ईडी का दावा है कि वह केवल विश्वसनीय सबूतों के आधार पर मामले दर्ज करती है और राजनीतिक संबद्धता के आधार पर भेदभाव नहीं करती। लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि यह एजेंसी मौजूदा सरकार के राजनीतिक हथियार के रूप में काम कर रही है। इस दावे को बल तब मिलता है जब दिखता है कि 193 में से 125 मामले पिछले पांच वर्षों में दर्ज किए गए, जो नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान का समय है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल के वर्षों में ईडी की कम सजा दर पर चिंता जताई है। अरविंद केजरीवाल मामले में फ़ैसले में कोर्ट ने कहा था कि पीएमएलए शिकायतों और गिरफ्तारियों का डेटा कई सवाल उठाता है। इसने गिरफ्तारी पर एकसमान नीति की ज़रूरत पर जोर दिया था।

पिछले साल तृणमूल कांग्रेस के नेता पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ईडी का सजा प्रतिशत बेहद खराब है और यह सवाल उठाया था कि एक आरोपी को कब तक बिना सजा के हिरासत में रखा जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि पिछले दस वर्षों में 5000 मामलों में से केवल 40 में सजा हुई, जो कि ईडी की गुणवत्ता वाली अभियोजन पर ध्यान देने की ज़रूरत को रेखांकित करता है। 

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को तब तगड़ा झटका दिया था जब इसने साफ़ कह दिया था कि ईडी सीधे पीएमएएल के तहत आरोपी को गिरफ़्तार नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ़्तारी करने के इसके अधिकार में कटौती कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि एक विशेष अदालत द्वारा शिकायत का संज्ञान लेने के बाद ही ईडी गिरफ्तार नहीं कर सकती है। अदालत ने साफ़ साफ़ कह दिया कि ईडी को यदि पीएमएलए के तहत गिरफ़्तारी करनी हो तो उसे विशेष अदालत से संपर्क करना होगा और उसको बताना होगा कि वह आरोपी को हिरासत में लेना चाहती है। यानी अदालत की मंजूरी ज़रूरी कर दी।

बहरहाल, संसद में दी गई ताज़ा जानकारी केवल राजनीतिक नेताओं से संबंधित मामलों पर केंद्रित है, जो इस आंकड़े को और भी सीमित दायरे में लाती है।

 - Satya Hindi

डेटा से साफ़ है कि 2019-2024 की अवधि में ईडी मामलों में उछाल आया, जिसमें सबसे अधिक 32 मामले 2022-2023 में दर्ज हुए। मंत्री ने बताया कि इनमें से दो मामलों में सजा हुई—एक 2016-2017 में और दूसरा 2019-2020 में।

विपक्षी नेताओं पर मामले बढ़े?

रहीम के सवाल पर कि 'क्या हाल के वर्षों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी मामले बढ़े हैं, और यदि हां, तो इसका औचित्य क्या है?' मंत्री ने जवाब दिया कि ऐसी कोई जानकारी नहीं रखी गई है।

क्या कहते हैं ओवरऑल आँकड़े?

पिछले पांच वर्षों में 911 मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में से 654 में सुनवाई पूरी हुई और केवल 42 में सजा हुई। यह 6.42% की सजा दर है। राजनीतिक नेताओं के संदर्भ में यह दर और भी कम है, जो केवल 1% से थोड़ा अधिक है। यह अंतर यह सवाल उठाता है कि क्या ईडी की जाँच और अभियोजन प्रक्रिया में कोई कमी है या फिर ये मामले राजनीतिक दबाव में जल्दबाजी में दर्ज किए जाते हैं, जिनमें ठोस सबूत जुटाना मुश्किल हो जाता है।

विपक्षी दलों ने इस आंकड़े को सरकार के ख़िलाफ़ हथियार बनाया है। उनका कहना है कि यह कम सजा दर इस बात का सबूत है कि ईडी का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को परेशान करने और उनकी छवि ख़राब करने के लिए किया जा रहा है, न कि वास्तविक अपराधों को सजा दिलाने के लिए।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने दावा किया है कि 2014 के बाद से ईडी के मामलों में विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है। दूसरी ओर, सरकार और भाजपा का कहना है कि ईडी स्वतंत्र रूप से काम करती है और उसकी कार्रवाई कानून के दायरे में होती है, जिसकी समीक्षा विशेष अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में होती है।

ईडी द्वारा राजनीतिक नेताओं के ख़िलाफ़ बेहद कम सजा दर न केवल इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर अपराधों से निपटने के लिए जांच एजेंसियों को अपनी रणनीति और संसाधनों पर पुनर्विचार करना होगा। साथ ही, यह राजनीतिक बहस को और गर्म करता है कि क्या ईडी का इस्तेमाल वास्तव में अपराध रोकने के लिए हो रहा है या यह सरकार के हाथों एक औजार बन गई है। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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