
जिन 'यूएन जैसे संगठनों से फायदा' उनको पीएम ने अप्रासंगिक क्यों बताया?
कांग्रेस ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक पॉडकास्ट में की गई उन टिप्पणियों की आलोचना की, जिसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठनों को अप्रासंगिक बताया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया कि मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ट्रंप की भाषा बोल रहे हैं। यह विवाद रविवार को सार्वजनिक हुए लेक्स फ्रिडमैन के साथ मोदी के साक्षात्कार से शुरू हुआ।
मोदी ने पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के पॉडकास्ट में कहा कि बढ़ते वैश्विक संघर्षों के बीच यूएन और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन क़रीब-क़रीब अप्रासंगिक हो गए हैं, क्योंकि उनमें कोई सुधार की गुंजाइश नहीं है। उन्होंने ट्रंप की विनम्रता और रेजिलिएंस की तारीफ़ की और कहा कि उनके पास अब स्पष्ट रोडमैप है। मोदी ने यह भी जोड़ा कि ट्रंप 'अमेरिका फर्स्ट' के लिए खड़े हैं, जबकि वह 'इंडिया फर्स्ट' के लिए हैं। यह बयान वैश्विक संगठनों की प्रासंगिकता और भारत-अमेरिका संबंधों पर उनकी सोच को दिखाता है।
जयराम रमेश ने इस बयान को ट्रंप की नकल बताया। उन्होंने कहा कि ये वही भाषा है जो ट्रंप इस्तेमाल करते हैं, जो वैश्विक संगठनों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। रमेश ने सवाल उठाया कि क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ, विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ और पेरिस जलवायु समझौता भारत के लिए फायदेमंद नहीं हैं? उन्होंने यह भी पूछा कि क्या यूएन ने अपनी कमियों के बावजूद भारतीय शांति सैनिकों को अवसर नहीं दिए?
कांग्रेस का तर्क है कि बहुपक्षीयता में सुधार की ज़रूरत है, लेकिन मोदी और ट्रंप की तरह इसे पूरी तरह खारिज करना ग़लत है। जयराम रमेश ने संकेत दिया कि मोदी का यह बयान ट्रंप को खुश करने और उनकी नीतियों का समर्थन करने की कोशिश हो सकता है।
Mr. Modi clearly is going out of his way to keep Mr. Trump in good humour.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 17, 2025
He says international organisations, from which India has benefitted immensely, have become irrelevant. This is the US President's language. In fact, it is Mr. Trump who is doing his best to make them…
पीएम की आलोचना क्यों?
इस विवाद को कई स्तरों पर समझा जा सकता है।
- पहला, मोदी का यूएन को अप्रासंगिक बताना भारत की पारंपरिक विदेश नीति से हटकर है, जो बहुपक्षीय मंचों पर जोर देती रही है।
- दूसरा, मोदी ने ट्रंप की तारीफ और उनके 'फर्स्ट' नारे से तुलना की, जो कांग्रेस को राजनीतिक नजरिए से स्वीकार्य नहीं है।
- तीसरा, वैश्विक संगठनों की आलोचना ऐसे समय में आई है जब ट्रंप ने भी हाल ही में अदालती आदेश को नजरअंदाज कर डिपोर्टेशन पॉलिसी लागू की, जिससे उनकी कार्यशैली पर सवाल उठे हैं।
कांग्रेस इसे मोदी की ट्रंप के प्रति नरम रुख अपनाने के तौर पर देख रही है।
कांग्रेस की आलोचना से घरेलू राजनीति में एक नया मोड़ आ सकता है। विपक्ष इसे मोदी की विदेश नीति और ट्रंप के साथ उनकी दोस्ती पर हमले का मौक़ा मान रहा है। रमेश का यह कहना कि भारत को इन संगठनों से अपार लाभ मिला है, जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश है कि मोदी की टिप्पणी देश के हितों के ख़िलाफ़ हो सकती है। वहीं, मोदी समर्थक इसे उनकी स्वतंत्र और साहसिक सोच बता सकते हैं, जो पुरानी व्यवस्था को चुनौती देती है।
पोडकास्ट में प्रधानमंत्री मोदी का दिया यह बयान वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है।
यूएन में भारत ने शांति मिशन से लेकर जलवायु परिवर्तन तक सक्रिय भूमिका निभाई है और स्थायी सुरक्षा परिषद सीट की मांग करता रहा है। ऐसे में, यूएन को अप्रासंगिक बताना भारत की दीर्घकालिक रणनीति से मेल नहीं खाता। दूसरी ओर, ट्रंप की तारीफ और उनकी नीतियों से तालमेल दिखाना भारत को अमेरिका के करीब ला सकता है, खासकर जब ट्रंप की नीतियाँ वैश्विक सुर्खियों में हैं।
मोदी का यह साक्षात्कार और उस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया दोनों नेताओं की रणनीति को उजागर करती है। जहां मोदी अपनी छवि को एक दूरदर्शी वैश्विक नेता के रूप में मजबूत करना चाहते हैं, वहीं कांग्रेस इसे ट्रंप के प्रति उनकी 'चापलूसी' और भारत की विदेश नीति से समझौता बताकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। यह विवाद दिखाता है कि वैश्विक मंच पर दोस्ती और नीति के बीच संतुलन कितना जटिल हो सकता है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)