मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की आहट सुनाई पड़ रही है। दरअसल, सत्ता के संघर्ष के ‘खेल’ में अब राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर के बीच ‘ठन’ गई है। राजभवन और विधानसभा स्पीकर के बीच चल रही इस रस्साकशी में कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर ढेरों सवाल खड़े हो रहे हैं। राज्यपाल या विधानसभा स्पीकर में से किसकी चलेगी, जल्द साफ हो जायेगा। वैसे, राजभवन जिस तरह का रवैया अपना रहा है, उससे सूबे में राष्ट्रपति शासन लगने की संभावनाएं बढ़ रही हैं।
राज्यपाल लालजी टंडन शनिवार से एक्शन में हैं। शनिवार की रात उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र भेजकर कहा था, ‘बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण के ठीक बाद फ्लोर टेस्ट कराया जाये।’ महामहिम ने कांग्रेस विधायकों के विद्रोह के बाद नंबर गेम में पिछड़ गई नाथ सरकार के अल्पमत में होने का अंदेशा भी जताया था।
राज्यपाल के सुस्पष्ट निर्देशों (सोमवार को फ्लोर टेस्ट संबंधी) को विधानसभा स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने ‘अनदेखा’ कर दिया। बजट सत्र के पहले दिन की जो कार्यसूची विधानसभा सचिवालय ने रविवार रात को जारी की थी उसमें महज राज्यपाल के अभिभाषण भर का जिक्र है और फ्लोर टेस्ट कार्यसूची से नदारद है।
कार्यसूची देखते ही राज्यपाल टंडन की त्यौरियां चढ़ गईं और महामहिम ने रविवार की रात क़रीब 12 बजे मुख्यमंत्री को तलब किया और सोमवार को ही फ्लोर टेस्ट कराये जाने के निर्देशों को दुहराया था।
महामहिम से मिलकर निकले कमलनाथ ने मीडिया से कहा, ‘सदन को शांतिपूर्ण ढंग से चलाये जाने को लेकर बातचीत हुई है।’ फ्लोर टेस्ट से जुड़े प्रश्न पर मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सदन में वोटिंग किस तरह से और कब होगी, यह सब स्पीकर तय करेंगे।’ मुख्यमंत्री ने दोहराया, ‘मैं फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हूं। लेकिन जब तक बेंगलुरू से बंधक विधायक लौटकर नहीं आयेंगे, फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकेगा।’ मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद सियासत और गर्मा गई।
फ्लोर टेस्ट कराये सरकार: शिवराज
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार रात सवा बजे प्रेस से बातचीत की और सवाल किया, ‘अगर सरकार बहुमत साबित करने के लिए तैयार है तो फ्लोर टेस्ट क्यों नहीं करवा रही है टालमटोल क्यों की जा रही है' शिवराज ने कहा, ‘सदन में क्या होगा इसका निर्णय स्पीकर नहीं सरकार करती है। बेंगलुरू में विधायक बंधक नहीं हैं, वे केन्द्रीय सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं उपलब्ध कराई जा रही है
‘विधायकों के हाथ उठवाये सरकार’
मुख्यमंत्री को बुलाने से पहले महामहिम ने उन्हें दो दिनों में दूसरा पत्र भी भेजा। इस पत्र में निर्देश दिये गये थे कि सरकार बहुमत साबित करने के लिए विधायकों के हाथ उठवाये। उन्होंने पत्र में कहा, ‘ज्ञात हुआ है कि विधानसभा का इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम पूरी तरह से दुरुस्त नहीं है। ऐसे में निष्पक्ष और स्वतंत्र मतदान की प्रक्रिया विधायकों के हाथ उठवाकर ही पूरी कराई जाये।’
रात ढाई बजे पहुंचे बीजेपी विधायक
कांग्रेस के विधायक रविवार दोपहर को भोपाल वापस लौट आये थे जबकि बीजेपी के विधायक रात ढाई बजे विशेष विमान से भोपाल पहुंचे। यहां से इन्हें अलग-अलग बसों से अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। मीडिया ने खूब टटोला मगर बीजेपी के रणनीतिकारों ने नहीं बताया कि भोपाल में इन्हें कहां ले जाया जा रहा है।
नहीं आये बाग़ी विधायक
कांग्रेस से बग़ावत करने वाले 22 विधायक अभी तक भोपाल नहीं पहुंचे हैं। इन सभी के बेंगलुरू में ही होने की सूचनाएं थीं। ख़बरें आ रहीं थीं कि एक विशेष विमान बेंगलुरू एयरपोर्ट पर इन्हें लाने के लिए तैयार खड़ा है और इशारा मिलते ही ये विधायक राजधानी भोपाल के लिए उड़ान भर सकते हैं।
दूसरी सूचना यह भी थी कि बीजेपी और उसके रणनीतिकार इन विधायकों को वोटिंग से नदारद रखने के पक्ष में हैं। छह बाग़ी विधायकों के त्यागपत्र स्पीकर मंजूर कर चुके हैं। बचे हुए 16 पर निर्णय होना है। ऐसे में 16 विधायकों की सदन में अनुपस्थिति का लाभ बीजेपी को मिलेगा और वह आसानी से कमलनाथ सरकार को वोटिंग में हरा देगी।
जिस तरह से राज्यपाल टंडन पिछले दो दिनों से कमलनाथ सरकार से संवाद कर रहे हैं, उसे राष्ट्रपति शासन की आहट माना जा रहा है। संविधान में निहित शक्तियों का उल्लेख करते हुए राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को खत लिखा था। फ्लोर टेस्ट कराने और इस टेस्ट में किस तरह की प्रक्रिया सरकार अपनाये, इस बारे में तमाम निर्देश राज्यपाल ने खत में दिये थे।
स्पीकर ने राज्यपाल के निर्देशों की पहली नजर में अनदेखी कर दी है। इससे राजभवन, सरकार और विधानसभा के बीच टकराव के हालात बन गये हैं। यदि टकराव बढ़ा तो निर्देशों को ना सुना जाना सरकार को बर्खास्त करने का ठोस ‘सबब’ बनेगा।