आम चुनाव के कुछ महीने पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर वोट हासिल करने की राजनीति का नतीजा बुलंदशहर की वारदात है। ऐसा इसलिए माना जा सकता है कि प्रशासन को सांप्रदायिक तनाव फैलाने की साजिश रचने की संभावना की जानकारी दी जा चुकी थी। ख़ुफ़िया एजेंसियों ने राज्य सरकार को यह बता दिया था कि कुछ ताक़तें सांप्रदायिक तनाव फैला कर माहौल बिगड़ सकती हैं। माना जाता है कि प्रशासन को यह पता था कि गोकशी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कुछ ख़ुराफ़ात की जा सकती है। पर प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और बुलंदशहर की वारदात सबके सामने है। उसकी नाकाम सबके सामने है। विडियो देखें: बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर सिंह की हत्या का विडियो वायरल
चुनाव के पहले सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ कर ध्रुवीकरण करने की बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नई नही है। पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भी ऐसा हुआ था। उसके बाद भी मेरठ, मुज़फ़्फरनगर, शामली, सहारनपुर समेत कई जिलों में गोकशी पर हिंदू संगठन और दूसरे समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए हैं। कई बार गोकशी की अफ़वाह को लेकर पथराव, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएँ हो चुकी हैं। मेरठ में ही लिसाड़ीगेट, ब्रह्मपुरी, दौराला, खरखौदा में इसे लेकर सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो चुकी है। इससे पहले सहारनपुर में हिंसा हुई थी और 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान भी तनाव पैदा किया गया था। सोमवार की वारदात को समझने के लिए यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि इसी समय वहां से तक़रीन 40 किलोमीटर दूर तबलीगी ज़मात का सम्मेलन चल रहा था। पुलिस प्रशासन का ध्यान उस ओर था। बुलंदशहर की वारदात से जुड़े विडियो यहां देखेंइससे बुलंदशहर वारदात को अंज़ाम देने वालों को दुहरा फ़ायदा हुआ। उन्होंने ऐसे समय तनाव फैलाया जब प्रशासन की ताक़त कहीं और लगी हुई थी, ध्यान कहीं और था। इसके साथ ही तनाव फैलाने वाले मुसलमानों को डराना भी चाहते थे। वे यह संकेत देना चाहते थे कि इस तरह के सम्मेलन की वजह से वे वारदात कर सकते हैं। इसके पीछे कौन लोग थे, यह बताने की ज़रूरत नही है। पर यह तो साफ़ है कि ऐसा माहौल बनाया गया है, जिसमें एक ख़ास समुदाय के लोग निशाने पर होते हैं। मुहम्मद अख़लाक ही हत्या के अभियुक्तों को अभी भी सज़ा नहीं मिली है, इसके उलट उनके परिजनों को ही गोकशी के मामले में फँसाने की कोशिशें की गईं। इसी तरह चलती ट्रेन में मुसलमान युवकों की हत्या के मामले में भी जाँच कहाँ तक पहुँची, लोगों को पता नहीं। इससे यह साफ़ होता है कि सरकार इस तरह के मामलों में ख़ास दिलचस्पी नही लेती है या कुछ नहीं कर पाती है। इससे साफ़ और बेहद ग़लत संकेत जाता है। बुलंदशहर वारदात उसी का नतीजा है। इस बार भी गोकशी की अफ़वाह फैली, सोशल मीडिया पर तस्वीरें और जानकारियाँ वायरल हुईं और लोगों में उत्तेजना फैलाई गई। गुस्साए लोगों ने सड़क जाम किया, पुलिस पर पथराव किया, उन पर हमला किया और झड़पें हुईं। इस झड़प में एक पुलिस इंस्पेक्टर की मौत हुई और दूसरे कई पुलिस वाले घायल हुए। तनाव फैलाने वालों और दंगा करने वालों के कामकाज का तरीका बिल्कुल वैसा ही था, जैसा इसके पहले कई बार हो चुका है। साफ़ संकेत है कि वे ताक़तें ही एक बार फिर सक्रिय थईं। उनका मक़सद वही था और निशाने पर उसी समुदाय के लोग थे, जिन्हें पहले निशाना बनाया जा चुका है। प्रशासन ने जाँच का आदेश दे दिया है, विशेष दल का गठन कर दिया है। पर उसके बाद क्या होगा और दोषियों को सजा मिलेगी या नहीं या कब तक मिलेगी, यह सवाल मौजूद है।