प्राथमिकता लॉकडाउन है तो जामिया छात्रों की गिरफ़्तारी में क्यों जुटी है पुलिस?
कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बाद भले ही लोग घरों में बंद हैं, लेकिन दिल्ली पुलिस नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों की गिरफ़्तारी में व्यस्त है। लॉकडाउन के बाद से पुलिस की स्पेशल सेल जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के पास नागरकिता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के मामले में अब तक चार लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है। क़रीब 20 और लोगों पर पुलिस की नज़र है। यानी पुलिस की व्यस्तता इनकी गिरफ़्तारी पर लगी है, जबकि दिल्ली में कोरोना वायरस के कारण स्थिति बिगड़ती जा रही है। इसी को लेकर नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं ने पुलिस के रवैये पर सवाल उठाए हैं।
26 नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं ने जामिया छात्रों की 'मनमानी गिरफ्तारी' की निंदा की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिस लॉकडाउन की आड़ में सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को गिरफ्तार करके अपनी शक्तियों का 'दुरुपयोग' कर रही है। इस संबंध में 'हम भारत के लोग' के बैनर तले नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने सोमवार को बयान जारी किया है। इसमें उन्होंने कहा है, ‘यह एक ऐसा समय है जब राष्ट्र को हमारे देश में स्वास्थ्य और भूख संकट पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है; जब हमारी प्राथमिकता इस वायरस से लड़ने के लिए एकजुट रहने की होनी चाहिए। ऐसे समय में जब लॉकडाउन के कारण नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का पूरी तरह से उपयोग करने में असमर्थ हैं तो सरकारों का नैतिक कर्तव्य है कि सत्ता के किसी भी दुरुपयोग से रक्षा की जाए।'
उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब दिल्ली में कोरोना वायरस काफ़ी ज़्यादा फैल चुका है। 24 घंटे में 356 नये पॉजिटिव केस आए हैं। शहर में कोरोना के कई हॉटस्पॉट बन गए हैं, उन सभी क्षेत्रों को सील किया जा रहा है।
लोगों के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है और पुलिस को चप्पे-चप्पे पर नज़र रखनी पड़ रही है।
वैसे, इन हालात में पुलिस की प्राथिकता क्या होनी चाहिए? लॉकडाउन का ठीक से पालन हो रहा है या नहीं, इसको देखना या नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ उस प्रदर्शन से जुड़े हुए लोगों को गिरफ़्तार करना जो काफ़ी पहले ही ख़त्म हो चुका है। क्या इसे बाद के लिए नहीं टाला जा सकता था जब लॉकडाउन ख़त्म हो जाता?
https://www.satyahindi.com/delhi/bjp-leader-gautam-gambhi-says-if-kapil-mishra-speech-provocative-strict-action-107712.html इस मामले में ताज़ा गिरफ़्तारी जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी की मीडिया कोऑर्डिनेटर सफूरा ज़रगर की है। वह जामिया में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन से जुड़ी रही थीं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर पूर्वी दिल्ली ज़िला पुलिस ने उन्हें तीन दिन पहले गिरफ़्तार किया था और इस मामले में सोमवार को कोर्ट से ज़मानत मिल गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, लेकिन इसी बीच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने प्रोडक्शन वारंट के तहत उन्हें फिर गिरफ़्तार कर लिया। पुलिस का दावा है कि वह जाफराबाद में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन का आयोजन करने वालों में से एक थीं। इस मामले में ज़रगर के अलावा कांग्रेस की इशरत जहाँ, कार्यकर्ता खालीद सैफी और जामिया के छात्र व छात्र राष्ट्रीय जनता दल की सदस्य मीरन हैदर को गिरफ़्तार किया जा चुका है।
बता दें कि जाफराबाद में फ़रवरी महीने में तब दंगा हुआ था जब नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के बाद बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने नागरिकता क़ानून के समर्थन में रैली निकाली थी। कपिल मिश्रा अपने समर्थकों के साथ प्रदर्शन वाली जगह पर इकट्ठा हुए थे। वहाँ भारी संख्या में पुलिस बल भी तैनात था। उस दौरान का एक वीडियो सामने आया था। इस वीडियो में दिख रहा था कि एक पुलिस अफ़सर के बगल में खड़े कपिल मिश्रा वहाँ पर धमकी देते हैं। वह पुलिस अफ़सर को संबोधित करते हुए कहते हैं, '...आप सबके (समर्थक) बिहाफ़ पर यह बात कह रहा हूँ, ट्रंप के जाने तक तो हम शांति से जा रहे हैं लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे यदि रास्ते खाली नहीं हुए तो... ठीक है?' इसके अगले ही दिन हिंसा हो गई थी।
बाद में इसने दंगे का रूप ले लिया था। इसमें कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। कपिल मिश्रा के इस बयान की तीखी आलोचना हुई थी और कहा जा रहा था कि यह भाषण भड़काऊ था। इस दंगे के बाद इसकी 'बड़ी साज़िश' का पता लगाने के लिए 16 इंस्पेक्टरों की एक एसआईटी बनाई गई। इसी मामले में पुलिस कार्रवाई कर रही है।
अब सवाल है कि क्या लॉकडाउन के बाद गिरफ़्तारी नहीं की जा सकती थी? क्या लॉकडाउन से पहले ऐसा नहीं किया जा सकता था? यदि ऐसा होता तो संभव था कि लॉकडाउन को पालन कराने में पुलिस ज़्यादा बेहतर कर पाती।