आज भी जब हम रेडियो को ट्यून करते हैं, तो इसमें सबसे ज़्यादा जिन गीतकारों का नाम गूँजता है, उनमें हसरत जयपुरी का नाम पहले पायदान पर है। हसरत जयपुरी ने अपने पाँच दशक के फ़िल्मी करियर में 350 फ़िल्मों के लिए कोई दो हज़ार गीत लिखे। सभी गीत एक से बढ़कर एक दिल को छू लेने वाले। आज भी उनके नगमों का कोई मुक़ाबला नहीं। ख़ास तौर से निर्माता-निर्देशक राज कपूर और मौसिकार शंकर जयकिशन के लिए उन्होंने लाजवाब गीत लिखे।
राजस्थान के जयपुर में 15 अप्रैल, 1918 को पैदा हुए हसरत जयपुरी का असल नाम इक़बाल हुसैन था। उनके नाना फ़िदा हुसैन ‘फ़िदा’ मशहूर शायर थे। उन्हीं की वजह से हसरत में शायरी का रुझान बढ़ा। सत्रह साल की उम्र आते-आते वह भी शेर-ओ-शायरी करने लगे। इस बाली उम्र में उन्होंने जो अपना पहला शेर लिखा,
‘किस अदा से वह जान लेते हैं/मरने वाले भी मान लेते हैं।’
इस शेर ने ही जैसे उनके मुस्तकबिल की कहानी लिख दी थी।
इक़बाल हुसैन, शायर मौलाना हसरत मोहानी से बेहद मुतास्सिर थे। लिहाज़ा उन्होंने अपना तखल्लुस भी हसरत रख लिया। जब वह नौजवान ही थे कि एक मुशायरे के सिलसिले में मौलाना हसरत मोहानी का जयपुर में आना हुआ। इस मुशायरे में नौजवान इक़बाल हुसैन ने न सिर्फ़ शिरकत की, बल्कि उन्होंने अपने महबूब शायर हसरत मोहानी से मुलाक़ात भी की। हसरत मोहानी उनसे खुलूस से मिले और उन्होंने इक़बाल हुसैन को सलाह दी कि उनका तखल्लुस तो हसरत ठीक है, मगर वे इस नाम के आगे जयपुरी और जोड़ लें। उस वक़्त यह चलन आम था। ज़्यादातर बड़े शायर जोश मलीहाबादी, फ़िराक़ गोरखपुरी, शकील बदायूंनी, मजरूह सुल्तानपुरी, खुमार बाराबंकवी अपने शहर के नाम से ही जाने-पहचाने जाते थे। इक़बाल हुसैन को हसरत मोहानी की राय जँच गई और इस तरह वे इक़बाल हुसैन से हसरत जयपुरी हो गए।
लड़कपन में ही हसरत जयपुरी को पड़ोस में रहने वाली एक लड़की से मोहब्बत हो गई। लेकिन यह एक तरफ़ा मोहब्बत परवान नहीं चढ़ सकी। वे अपनी माशूका से मोहब्बत का इज़हार तक नहीं कर पाए। हसरत जयपुरी का इश्क भले ही परवान नहीं चढ़ा, लेकिन उसका असर आगे चलकर उनकी शायरी में हुआ। हसरत जयपुरी की शायरी में प्यार-मोहब्बत, मिलन-जुदाई के जो बार-बार अक्स आते हैं, उसमें उनकी लड़कपन की मोहब्बत का बड़ा रोल है। अपने इंटरव्यू में उन्होंने इस बात को बार-बार दोहराया है-
“शे’रो शायरी की तालीम मैंने अपने नाना जान से हासिल की, लेकिन इश्क़ का सबक़ राधा ने सिखाया।’’
साल 1940 में गम-ए-रोज़गार हसरत जयपुरी को जयपुर से बंबई खींच ले गया। बंबई में उन्होंने आठ साल तक बस कंडक्टरी की। कंडक्टरी के साथ वह शायरी भी करते रहे। जो मुशायरे होते, उसमें शिरकत करते। प्यार में नाकामी, ज़िंदगी की जद्दोजहद ने उनकी शायरी को और निखारा।
मुशायरों में आहिस्ता-आहिस्ता उनकी मकबूलियत बढ़ने लगी। ऐसे ही एक मुशायरे में अजीम थियेटर अदाकार पृथ्वीराज कपूर ने हसरत जयपुरी को सुना। उनकी जज्बाती नज़्म ‘मज़दूर की लाश’ पृथ्वीराज कपूर को बेहद पंसद आई। यह नज़्म हसरत जयपुरी ने फुटपाथ पर उनके साथ रात बिताने वाले अपने एक दोस्त की मौत पर लिखी थी। राज कपूर उस वक़्त फ़िल्म ‘बरसात’ बनाने की तैयारी में लगे हुए थे। फ़िल्म के संगीत के लिए उन्होंने शंकर जयकिशन और गीतकार के तौर पर शैलेन्द्र को चुन लिया था। फ़िल्म के लिए उन्हें एक और गीतकार की तलाश थी। पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर को मशविरा दिया कि वह एक बार हसरत जयपुरी को ज़रूर सुन लें। अपने वालिद की सलाह पर राज कपूर ने हसरत जयपुरी के साथ एक मीटिंग की। जिसमें फ़िल्म के मौसिकार शंकर जयकिशन भी शामिल थे। शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी को लोकगीत पर आधारित एक धुन सुनाई और इस पर गीत लिखने को कहा। हसरत जयुपरी ने धुन पर तुरंत ही उन्हें यह लाईन ‘जिया बेकरार है, छाई बहार है, आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है...’ सुनाई। जो फ़िल्म निर्देशक राज कपूर और संगीतकार शंकर जयकिशन दोनों को बहुत पसंद आई। और इसी के साथ हसरत जयपुरी, उस आर के बैनर का हिस्सा हो गए, जिसमें गीतकार शैलेन्द्र और मुकेश पहले ही संग थे।
फ़िल्मी गीत-संगीत में दिलचस्पी रखने वाले यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि फ़िल्म ‘बरसात’ से ही संगीतकार शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र ने भी अपने सिने करियर की शुरुआत की थी।
‘बरसात’
साल 1949 में रिलीज हुई फ़िल्म ‘बरसात’ के सारे गाने ही सुपर हिट साबित हुए। हसरत जयपुरी के लिखे गाने ‘जिया बेकरार है, छाई बहार है...’, ‘छोड़ गए बालम...’ भी ख़ूब पसंद किए गए। फ़िल्म ‘बरसात’ के गीतों से हसरत जयपुरी की कामयाबी का जो सिलसिला शुरू हुआ वह ‘आवारा’ (1951), ‘श्री 420’ (1955), ‘चोरी चोरी’ (1956), ‘अनाड़ी’ (1959), ‘जिस देश में गंगा बहती है’ (1960), ‘संगम’ (1964), ‘तीसरी कसम’ (1966), ‘दीवाना’ (1967), ‘अराउंड द वर्ल्ड’ (1967), ‘मेरा नाम जोकर’ (1970), ‘कल आज और कल’ (1971) तक चला। इस दौरान राज कपूर, शंकर जयकिशन और हसरत जयपुरी की तिकड़ी ने शानदार गीत रचे और फ़िल्मी दुनिया को अपने समधुर गीत-संगीत से समृद्ध किया। राज कपूर के अलावा उनके भाई शम्मी कपूर के लिए भी हसरत जयपुरी ने अनेक गीत लिखे।
शम्मी कपूर की ‘प्रोफ़ेसर’, ‘जंगली’, ‘राजकुमार’, ‘ब्रह्मचारी’, ‘पगला कहीं का’, ‘अंदाज़’, ‘एन इवनिंग इन पेरिस’, ‘प्रिंस’ आदि फ़िल्मों की कामयाबी के पीछे हसरत जयपुरी के प्यार-शरारत, चुहल भरे गीतों का बड़ा योगदान है।
‘बदन पे सितारे लपेटे हुए...
राज कपूर की फ़िल्मों के गीत सुनो, फिर शम्मी कपूर की इन फ़िल्मों के गीतों को सुनो, दोनों में ही ज़मीन-आसमान का फर्क नज़र आता है। एक ही मौसिकार और एक ही नगमानिगार, लेकिन अंदाज़ बिल्कुल जुदा-जुदा। फ़िल्मों में शम्मी कपूर की जो इमेज थी, उसी इमेज के मुताबिक़ हसरत जयपुरी ने गीतों को लिखा। जो लोगों को बेहद पसंद आए। ‘आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ...’, ‘ये गुलबदन...’ (फ़िल्म प्रोफ़ेसर), ‘एहसान होगा तेरा...’(फ़िल्म जंगली), ‘मेरी मोहब्बत जवाँ रहेगी...’ (फ़िल्म जानवर), ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए...’ (फ़िल्म प्रिंस), ‘तू बेमिसाल है, तेरी तारीफ़ क्या करूं...’, ‘आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे...’ (फ़िल्म ब्रह्मचारी), ‘तुमने किसी की जान को...’, ‘इस रंग बदलती दुनिया में...’(फ़िल्म राजकुमार), ‘तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे...’ (फ़िल्म पगला कहीं का) आदि एक लंबी फेहरिस्त है, इन गानों की। इन्हीं गानों के चलते गर हम हसरत जयपुरी को रूमानी गीतों का राजकुमार कहें, तो ग़लत नहीं होगा।
राज कपूर और शम्मी कपूर के अलावा जुबली कुमार उर्फ राजेन्द्र कुमार की फ़िल्मों के लिए भी हसरत जयपुरी ने नायाब गीत रचे। जिन लोगों ने ‘दिल एक मंदिर’, ‘आरजू’, ‘आई मिलन की बेला’, ‘सूरज’, ‘गीत’ और ‘झुक गया आसमान’ आदि फ़िल्मों के गीत सुने हैं, वे जानते हैं कि हसरत जयपुरी अपने गीतों से किस तरह करिश्मा करते थे। मिसाल के तौर पर उनके इन गीतों पर नज़र डालिये ‘हम तेरे प्यार में सारा आलम...’(फ़िल्म दिल एक मंदिर), ‘अजी रूठकर अब कहाँ जाइएगा...’, ‘ए नर्गिसे मस्ताना बस इतनी शिकायत है...’ (फ़िल्म आरजू), ‘जिसके सपने हमें रोज़ आते रहे...’ (फ़िल्म गीत)।
हसरत जयपुरी फ़िल्मों के टाइटल सॉन्ग लिखने में भी माहिर थे। ‘बरसात’, ‘दिल एक मंदिर’, ‘दीवाना’, ‘तेरे घर के सामने’, ‘एन इवनिंग इन पेरिस’, ‘रात और दिन’, ‘हिना’ आदि कई फ़िल्मों के टाइटल सॉन्ग उनकी कलम से ही निकले थे।
हसरत जयपुरी ने सिर्फ़ रूमानी नगमें ही नहीं लिखे, वे अलग-अलग मूड और नेचर के गाने लिखने में भी बड़े माहिर थे। फ़िल्मों में जिस तरह की स्थिति होती, वह पल भर में उस तरह का गीत रच देते। ‘तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर...’, ‘ईचक दाना बीचक दाना दाने ऊपर दाना...’ जैसे गाने हसरत जयपुरी के हरफनमौला फन के ही शानदार नमूने हैं। यही नहीं ‘अजहूं न आए बालमाँ, सावन बीता जाए...’ और ‘दाग न लग जाए...’ जैसे शास्त्रीय संगीत में रंगे-रचे गीत भी उन्हीं की बेजोड़ कलम से निकले हैं।
फ़िल्मी दुनिया में एक दौर था, जब हसरत जयपुरी के गाने फ़िल्म की कामयाबी की निशानी माने जाते थे। उन्होंने जो गीत लिखे, उन्हें मुकेश, मोहम्मद रफी, मन्ना डे और लता मंगेशकर जैसे महान गायकों ने गाकर अमर कर दिया। इन सिंगरों के लोकप्रिय गीत उठाकर देख लीजिए, उसमें एक बड़ी तादाद हसरत जयपुरी के गानों की ही होगी। मसलन, मुकेश के सुपर हिट गीत ‘आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें...’, ‘जाऊँ कहाँ बता ऐ दिल...’, ‘दीवाना मुझ को लोग कहें...’, ‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन समाई...’, ‘हम छोड़ चले हैं महफ़िल को...’, ‘छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए...’, ‘हम तुमसे मोहब्बत करके सनम रोते भी रहे...’, ‘आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें कोई उनसे कह दे...’, ‘जाने कहाँ गए वो दिन...’ तो मोहम्मद रफी के लिए भी उन्होंने कई कालजयी गीत रचे ‘उनके ख्याल आए तो...’, ‘दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर...’, ‘गम उठाने के लिए मैं तो जिए जाऊँगा...’ लता मंगेशकर ने भी हसरत जयपुरी के जो गाने गाए, उनका जवाब नहीं।
मिसाल के तौर पर ‘सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी...’ (फ़िल्म सीमा), ‘रसिक बलमा दिल क्यूँ लगाया...’ (फ़िल्म चोरी चोरी), ‘मैं पिया तेरी तू माने या न माने...’(फ़िल्म बसंत बहार), ‘रात का समाँ झूमे चंद्रमा...’ (फ़िल्म जिद्दी), ‘तकदीर का फसाना जाकर...’ (फ़िल्म सेहरा)।
हसरत जयपुरी के गीतों की ऑल इंडिया मकबूलियत का राज, उनकी सादा ज़ुबान है। जो आम जन को भी आसानी से समझ में आती है। उन्होंने जहाँ इश्क-मोहब्बत में डूबे बेहद रूमानी गीत ‘ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर तुम...’ (फ़िल्म-संगम), ‘चले जाना जरा ठहरो...’ (अराउंड द वर्ल्ड) लिखे, तो वहीं महबूब की जुदाई और गम में डूबे जज्बात ‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई’ (फ़िल्म-तीसरी कसम), ‘जाने कहाँ गए वो दिन...’ (फ़िल्म-मेरा नाम जोकर) को उसी शिद्दत से अल्फाजों में पिरोया। हसरत जयपुरी एक बार फ़िल्मों में जो मशरूफ हुए, तो मुशायरों से दूर होते चले गए। फ़िल्मी गानों से ही उन्हें फुर्सत नहीं मिलती थी, लिहाज़ा वे अदबी काम कैसे कर पाते। हसरत जयपुरी की ज़िंदगानी में सिर्फ़ उनका ग़ज़लों का एक मजमुआ ‘आबशार ग़ज़ल’ ही मंज़रे आम पर आया। जिसमें उनकी 128 ग़ज़लें शामिल हैं। हसरत जयपुरी की कुछ मशहूर ग़ज़लों ‘ऐ मेरी जाने ग़ज़ल, चल मेरे साथ ही चल...’, ‘जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते’, ‘हम रातों को उठ-उठ के जिनके लिए रोते हैं’ और ‘नज़र मुझसे मिलाती हो तो तुम शरमा सी जाती हो’, को उन्हीं के शहर जयपुर के रहने वाले ग़ज़ल गायकों अहमद हुसैन, मुहम्मद हुसैन ने गाकर अमर कर दिया है।
सातवें दशक में पहले शैलेन्द्र, उसके बाद संगीतकार जयकिशन और फिर मुकेश की मौत से हसरत जयपुरी को काफ़ी धक्का लगा। फिर उसके बाद उनकी जोड़ी किसी संगीतकार के साथ उस तरह की नहीं बनी। अलबत्ता वह गीत ज़रूर लिखते रहे और बीच-बीच में उनके ये गीत, हिट भी हुए। ‘सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन...‘ (फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली), ‘मैं हूँ खुशरंग हिना...’ (फ़िल्म हिना) हसरत जयपुरी के आख़िरी वक़्त में लिखे हुए गीत हैं, जो दोनों ही बेहद मक़बूल हुए। पुरानी पीढ़ी के साथ-साथ नई पीढ़ी ने भी इन गीतों को ख़ूब पसंद किया। अपने गीतों से श्रोताओं को एक लंबे अरसे तक मदहोश कर देने वाला यह बेमिसाल शायर, गीतकार 17 सितम्बर 1999 को हमसे हमेशा के लिए जुदा हो गया। आज भले ही हसरत जयपुरी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके तमाम गीत ये सदा दे रहे हैं-
“तुम मुझे यूँ भूला ना पाओगे/जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे/संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे।”