पीएम क्यों बोले- राजनीतिक हित को देश से ऊपर रख रहा है विपक्ष?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि विपक्ष अपने राजनीतिक हितों को देश से ऊपर रखता है। इसके साथ ही उन्होंने विपक्ष पर सरकार के विकास कार्यों में बाधा डालने का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री मोदी का यह आरोप उन विपक्षी दलों पर है जो लगातार विपक्षी एकता की बात तो करते रहे हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं दिखता है। वे एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ते दिखते हैं, बयानबाज़ी करते दिखते हैं और कई मुद्दों पर तो वे आपस में उलझते भी दिखते हैं।
बहरहाल, संसद के मौजूदा सत्र में विपक्षी दल महंगाई, सेना में अग्निवीर भर्ती योजना जैसे मुद्दों को लेकर विरोख कर रहे हैं। महंगाई पर चर्चा की मांग को लेकर विपक्ष के विरोध प्रदर्शन के कारण पिछले सप्ताह मानसून सत्र शुरू होने के बाद से संसद के दोनों सदनों में कार्यवाही लगभग ठप है।
समझा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसी संदर्भ में विपक्ष पर हमला किया है। समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सदस्य हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'कई बार विपक्षी दल सरकार के काम में कुछ बाधा डालते हैं क्योंकि वे सत्ता में रहते हुए अपने द्वारा लिए गए फ़ैसलों को लागू नहीं कर पाए।' पीएम ने कहा कि विपक्ष जब भी कोई फैसला लेता है तो सरकार से सवाल करता है।
उन्होंने कहा, 'अब अगर वे निर्णय लागू होते हैं, तो वे इसका विरोध करते हैं। देश के लोग इसे पसंद नहीं करते हैं।' प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि हाल के दिनों में विचारधारा या राजनीतिक हितों को समाज और देश के हितों से ऊपर रखने का चलन देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने किसी राजनीतिक दल का बिना नाम लिए विपक्ष पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि विचारधारा अपनी जगह लेकिन देश पहले होना चाहिए। विचारधाराओं से पहले देश और समाज है। किसी पार्टी या व्यक्ति का विरोध देश विरोधी न हो जाए। ये हर राजनीतिक पार्टी की जिम्मेदारी है।
Addressing a programme marking the 10th Punyatithi of late Shri Harmohan Singh Yadav Ji.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 25, 2022
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पीएम मोदी ने कहा कि हाल के समय में विचारधारा या राजनीतिक स्वार्थों को समाज और देश के हित से भी ऊपर रखने का चलन शुरू हुआ है। कई बार तो सरकार के कामों में विपक्ष के कुछ दल इसलिए अड़ंगे लगाते हैं क्योंकि जब वो सत्ता में थे, तो अपने लिए फैसले वो लागू नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि ये हर एक राजीतिक पार्टी का दायित्व है कि दल का विरोध, व्यक्ति का विरोध देश के विरोध में न बदले। विचारधाराओं का अपना स्थान है और होना चाहिए। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं, तो हो सकती हैं। लेकिन, देश सबसे पहले है, समाज सबसे पहले है। राष्ट्र प्रथम है।
मोदी ने कहा कि आपातकाल के दौरान जब देश के लोकतंत्र को कुचला गया तो सभी प्रमुख पार्टियों ने, हम सबने एक साथ आकर संविधान को बचाने के लिए लड़ाई भी लड़ी। चौधरी हरमोहन सिंह यादव जी भी उस संघर्ष के एक जुझारू सैनिक थे। हमारे यहां देश और समाज के हित, विचारधाराओं से बड़े रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि 'दलों का अस्तित्व लोकतन्त्र की वजह से है और लोकतन्त्र का अस्तित्व देश की वजह से है। हमारे देश में अधिकांश पार्टियों ने, खासकर, सभी गैर-काँग्रेसी दलों ने इस विचार को देश के लिए सहयोग और समन्वय के आदर्श को निभाया भी है।'
प्रधानमंत्री का यह बयान तब आया है जब आज कांग्रेस के चार सांसदों को 12 अगस्त को समाप्त होने वाले पूरे मानसून सत्र के लिए लोकसभा से निलंबित कर दिया गया है। उन सांसदों ने महंगाई को लेकर सदन के अंदर तख्तियों के साथ विरोध प्रदर्शन किया था।
स्पीकर ओम बिड़ला ने पहले उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर वे विरोध करना चाहते हैं तो वे सदन के बाहर ऐसा व्यवहार करें।
निलंबित सांसदों ने संसद परिसर के अंदर गांधी प्रतिमा पर धरना दिया। चार निलंबित सांसदों के साथ पत्रकारों से बात करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा, 'सरकार हमारे सांसदों को निलंबित करके हमें डराने की कोशिश कर रही है। उनकी क्या गलती थी? वे उन मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे थे जो लोगों के लिए मायने रखते हैं। कांग्रेस पार्टी इस तरह नहीं झुकेगी।'
बता दें कि प्रधानमंत्री ने जिस विपक्ष की बात की है उस विपक्ष में हाल ही में कई मुद्दों पर मतभेद दिखे हैं। हाल ही में जब उपराष्ट्रपति पद के विपक्ष के उम्मीदवार को लेकर ममता बनर्जी की टीएमसी ने मतदान से दूर रहने का फ़ैसला लिया है। उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के सामने कांग्रेस की दिग्गज नेता मार्गरेट अल्वा हैं।
ममता बनर्जी के भतीजे अभिजीत बनर्जी ने साफ़ तौर पर आरोप मढ़ा कि विपक्षी उम्मीदवार तय करने को लेकर परामर्श नहीं लिया गया था।
जिस दिन टीएमसी का यह बयान आया था उससे कुछ समय पहले ही टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों की एकता पर जोर दिया था। ममता बनर्जी ने पार्टी की शहीद दिवस रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि 2024 का चुनाव बीजेपी के विभाजन को खारिज करने वाला होगा। ममता ने जोर देकर कहा था कि 2024 में जब बीजेपी नाकाम होगी तो विपक्षी दलों को अगली सरकार बनाने के लिए साथ आना होगा।
ममता बनर्जी आज से दो साल बाद जिस विपक्षी एकता का संकेत दे रही हैं और जिसमें वह भरोसा जता रही हैं क्या वह सच में साथ आएगा? क्या ममता बनर्जी ने अब तक विपक्षी एकता के लिए कुछ ऐसा किया है या फिर उन्होंने उस विपक्षी एकता में खलल ही डाली है?
ममता बनर्जी खुद यूपीए से इतर विपक्षी दलों का एक मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटी हुई दिखी हैं। पिछले साल दिसंबर महीने में ममता ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के अस्तित्व को ही नकार दिया था। ममता ने कहा था कि 'ये यूपीए क्या है, कोई यूपीए नहीं है'।
दिसंबर महीने में दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाक़ात को लेकर एक सवाल के जवाब में ममता ने कहा था, 'हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए? क्या यह संवैधानिक बाध्यता है?' ममता बनर्जी के इस बयान में बेहद तल्खी थी।
इस बयान को उस संदर्भ में आसानी से समझा जा सकता है जिसमें ममता अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का पूरे देश में विस्तार करने में जुटी थीं और उसमें कई नेता कांग्रेस छोड़कर शामिल हो चुके थे। गोवा में चुनाव से पहले कांग्रेस के कई नेताओं को तोड़कर ममता की टीएमसी ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था।