राहुल गाँधी की नैतिक आभा से परेशान नज़र आ रहे हैं मोदी!
मध्यप्रदेश के बैतूल में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के बड़े नेता राहुल गाँधी को ‘मूर्खों का सरदार’ कहकर भारत के प्रधानमंत्री पद की गरिमा गिराने के अपने ही रिकॉर्ड को एक बार फिर तोड़ दिया है। ज़्यादा अफ़सोस की बात ये है कि यह टिप्पणी उन्होंने पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर की जो विपक्ष के साथ मर्यादित व्यवहार की मिसाल थे। जिन्होंने आज़ादी के बाद कोई दबाव न होते हुए भी धुर विरोधियों को भी अपनी कैबिनेट में शामिल किया और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विपक्षी युवा सांसद को भविष्य का प्रधानमंत्री कहने में संकोच नहीं किया। उनके बाद जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उन्होंने निजी तौर पर विपक्ष के किसी नेता पर ऐसी अभद्र टिप्पणी नहीं की जैसा कि मोदी जी करते आये हैं। विपक्षी नेताओं के लिए ‘जर्सी गाय’, ‘हाइब्रिड बछड़ा’, ‘कांग्रेस की विधवा’ और ‘पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड’ जैसे विशेषण उनके मुखारबिंद से पहले भी टपक कर इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं।
भारत का प्रधानमंत्री कोई व्यक्ति या किसी एक पार्टी का नेता नहीं, संपूर्ण भारत और भारतीयता का प्रतीक होता है। भारत के प्रधानमंत्री का हर क्षण, हर दिन ‘डॉक्यूमेंट’ किया जाता है यानी दस्तावेज़ों का हिस्सा बनता है। ये दस्तावेज़ आने वाली पीढ़ियों को बीते हुए एक युग से परिचय कराते हैं। जब प्रधानमंत्री बोलता है तो भारत का संसदीय गणतंत्र बोलता है। उसका व्यवहार संसदीय मर्यादा की मिसाल बनती है। व्यक्ति के रूप में किसी में जो भी कमी हो, प्रधानमंत्री पद पर बैठने के बाद उसका दायित्व होता है कि वह मर्यादा की इन कसौटियों पर खरा उतरे। प्रधानमंत्री बनने पर किसी नेता के लिए ज़रूरी होता है कि वह इस पद की मर्यादा के अनुरूप अपने व्यक्तित्व में आंगिक, भाषिक और वाचिक रूपांतरण करे। ऐसा करके ही वह भारत के हर नागरिक का गौरव बन सकता है।
समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी की यह भाषा अगली पीढ़ियों को कैसा महसूस करायेगी। वैसे, यह कोई ऐसा रहस्य नहीं जिसे मोदी जी जानते न हों। तो फिर इस कटुता की वजह क्या है? नि:संदेह इसका रिश्ता हार की आशंका से है। और यह हार केवल विधानसभा चुनावों को लेकर नहीं, राहुल गाँधी के व्यक्तित्व के सामने फ़ीका पड़ते जाने की भी है। 24 घंटे मीडिया मैनेजमेंट, केशसज्जा, मुखसज्जा, चमकदार पोशाकों और व्हाट्सऐप किस्सों के ज़रिये बनायी गयी मोदी जी की महान छवि, उस टी-शर्ट और पैंट वाले ‘सादा’ राहुल गाँधी के सामने कमज़ोर पड़ रही है जो कभी खेतों में जाकर किसानों के साथ धान रोपता है, स्टेशन पर कुलियों के साथ बोझा ढोता है, मिस्त्रियों के साथ मोटरसाइकिल की मरम्मत करता है, ट्रक ड्राइवर के साथ किसी हाईवे पर नज़र आता है तो कभी किसी डिलिवरी ब्वाय के स्कूटर पर होता है।
वह देश के नफ़रती माहौल के ख़िलाफ़ सिर्फ़ बयानबाजी नहीं करता, बल्कि लगभग चार हज़ार किलोमीटर की कन्याकुमारी से कश्मीर की पदयात्रा पर निकल जाता है। लाखों लोगों को गले लगाता है, उनकी पीड़ा से जुड़ता है। इस दौरान पड़ने वाले विधानसभा चुनावों को भी महत्व नहीं देता। वह ‘नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान’ खोलने को ही अपनी राजनीति करार देता है। वह सार्वजनिक रूप से पूछता है कि लोग ‘कुछ भी करके’ प्रधानमंत्री क्यों बनना चाहते हैं और संकेत देता है कि वह ‘कुछ भी’ करके प्रधानमंत्री बनने की होड़ में नहीं है! इस बीच पीएमओ से नत्थी हो चुका कथित मुख्यधारा मीडिया के कैमरे पूरी उपेक्षा करते हैं लेकिन सोशल मीडिया में राहुल गाँधी की ये सादगी छा जाती है। साफ़ लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री पद पर मोदी हैं लेकिन ‘भारत’ राहुल गाँधी की क्रियाकलापों से अभिव्यक्त हो रहा है।
ऐसा लगता है कि राहुल गाँधी का यह ‘रूप-निखार’ प्रधानमंत्री मोदी के लिए असहनीय हो रहा है। राहुल गाँधी को ‘पप्पू’ बताने के लिए खर्च किये गये सैकड़ों करोड़ पानी में जाते दिख रहे हैं। मोदी जी ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ बनाने चले थे, लेकिन वह राहुल गाँधी के श्रम और वैचारिक तेज से पुनर्जीवित ही नहीं हो रही है, विधानसभा चुनावों में बीजेपी को पटकनी भी दे रही है।
राहुल खेत मज़दूर से लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों तक से जिस सहजता से संवाद करते हैं वह उनकी संवेदनशीलता से लेकर अध्ययनशीलता तक का पता देता है। उनकी डिग्री पर किसी को संदेह नहीं होता।
राहुल गाँधी की भाषा और व्यवहार में शालीनता एक अनिवार्य तत्व की तरह है। तभी वे कहते हैं कि “भाजपा के लोग पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष, मेरे या अन्य के खिलाफ जो मन में आता है बोलते हैं। गंदी से गंदी भाषा इस्तेमाल करते हैं। मोदीजी स्वयं करते हैं। मगर मैंने पहले कहा था और फिर कह रहा हूँ कि वह हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं। कांग्रेस प्रधानमंत्री के पद का आदर करती है। पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली भाषा का इस्तेमाल कोई कांग्रेसी नहीं करेगा।”
यह राजनीतिक चुनौतियों से जूझने के क्रम में किसी की लकीर मिटाने से ज़्यादा बड़ी लकीर खींचने का तरीका है जिसे राहुल गाँधी अपना रहे हैं। अब वे जातिजनगणना और भागीदारी का सवाल उठाकर भारतीय संविधान का अधूरा संकल्प पूरा करने की ओर बढ़ गये हैं जिसके सामने ध्रुवीकरण के ज़रिये चुनाव जीतने की आरएसएस/बीजेपी की जानी-पहचानी रणनीति क्षुद्र नज़र आती है। ‘जितनी आबादी, उतना हक़’ का राहुल गाँधी का नारा तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की जुगत भिड़ा रहे मोदी जी के लिए दु:स्वप्न साबित हो रहा है। भारत के मौजूदा राजनीतिक विमर्श का वैचारिक नेतृत्व इस समय राहुल गाँधी के हाथ में नज़र आ रहा है। राहुल गाँधी की नैतिक आभा के सामने मोदीजी की मीडिया निर्मित छवि धूमिल पड़ रही है।
अब ज़रा राहुल गाँधी पर प्रधानमंत्री मोदी ने झूठ बोलने का जो आरोप लगाया है, उसकी सच्चाई भी जान लेते हैं। एक चुनावी रैली में राहुल गाँधी ने कहा था कि वे देखना चाहते हैं कि मोबाइल फोन पर मेड इन चाइना नहीं, ‘मेड इन मध्यप्रदेश’ नज़र आये। ज़ाहिर है, वे विनिर्माण क्षेत्र में भारत की सुस्ती को चिन्हित कर रहे थे जिसमें तेजी लाना बेरोज़गारी दूर करने के लिए ज़रूरी है। लेकिन मोदी जी ने राहुल गाँधी पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए कहा कि भारत मोबाइल निर्यात में दूसरे नंबर पर पहुँच गया है लेकिन उन्हें देश की तरक्की देखी नहीं जाती। दरअसल, मोदी जी ने ‘कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा’ जोड़कर अपना तर्क गढ़ा है। कुछ महीने पहले ही आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि भारत में मोबाइल निर्माण दरअसल असेंबलिंग का नतीजा है। यानी बाहर से पुर्ज़े मँगाकर, उन्हें यहाँ जोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया से बना मोबाइल भारत के विनिर्माण क्षेत्र को गति नहीं देगा, क्योंकि बड़ी मात्रा में पुर्जे आयात करने पड़ते हैं। उन्होंने मोदी सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव स्कीम (पीएलआई) में कमी बताते हुए कहा था कि इसके तहत सब्सिडी का भुगतान केवल भारत में फोन को असेंबल करने के लिए किया जाता है, न कि भारत में विनिर्माण द्वारा जोड़े गये मूल्य पर।
यानी राहुल गाँधी मध्यप्रदेश के बेरोज़गारों की आँखों में जो सपने बो रहे थे वह निराधार नहीं था। पर मोदी जी को यह बात इस क़दर चुभी कि वे अपने पद की मर्यादा भूल गये। हद तो ये है कि जिस प्रदेश में 18 साल से उनकी पार्टी का शासन है वहाँ अपनी उपलब्धियों को गिनाने के बजाय वे राहुल गाँधी और, गाँधी परिवार और कांग्रेस को कोस कर वोट माँग रहे हैं। ऐसा करते हुए वे काफ़ी दयनीय नज़र आते हैं जो भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए क़तई शोभनीय नहीं है।
(लेखक कांग्रेस से जुड़े हैं)