कांग्रेस ने ऐसा क्या कर दिया कि मुस्लिम लीग के पर्दे में छिपे मोदी?
कांग्रेस का घोषणापत्र अपनी तमाम महत्वपूर्ण योजनाओं और वादों के लिए चर्चा बटोर ही रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसमें आज़ादी के आंदोलन के दौर की मुस्लिम लीग की छाया देखी ली। यह किसी सामान्य व्यक्ति का आरोप नहीं है जिसे हँसी में उड़ा दिया जाये। मुस्लिम लीग की छवि भारत का बँटवारा कराने वाले की है। यानी पीएम की नज़र में यह घोषणापत्र देश को बाँटने वाला है। ऐसे में यह समझना ज़रूरी है कि पीएम मोदी ने ऐसा क्यों कहा।
कांग्रेस की ओर से इस आरोप पर पलटवार स्वाभाविक था। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उचित ही याद दिलाया कि आज़ादी के पहले मुस्लिम लीग और पीएम मोदी के राजनीतिक पूर्वज यानी आरएसएस और सावरकारवादी हिंदू महासभाइयों के बीच गलबहियाँ थीं। बीजेपी के प्रात:स्मरणीय श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बतौर बंगाल के मंत्री 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का दमन करने के लिए अंग्रेज गवर्नर के सामने योजना पेश की थी। यह भी याद किया जा सकता है कि हिंदू और मुस्लिम को दो राष्ट्र बताने की मोहम्मद अली जिन्ना का सिद्धांत सावरकर का ही अनुसरण था। बीजेपी के कई प्रत्याशी प्रचार के दौरान सरेआम कह रहे हैं कि 2024 में बीजेपी को चार सौ पार सीटें इसलिए चाहिए कि भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाया जा सके। भारत हिंदू राष्ट्र बने और पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र, यह मुस्लिम लीग का ही प्रस्ताव था।
यानी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की परियोजना मुस्लिम लीग का ही अधूरा सपना है जिसे डॉ. आंबेडकर ने लोकतंत्र के लिए विपत्ति और सरदार पटेल ने पागलपन क़रार दिया था। यह परियोजना तो बीजेपी और आरएसएस की है। फिर कांग्रेस के घोषणापत्र में प्रधानमंत्री ने मुस्लिम लीग की छाया कैसे देख ली? ऐसा क्या है इस घोषणापत्र में?
कांग्रेस का यह घोषणापत्र इन अर्थों में निश्चित ही क्रांतिकारी है कि यह भारतीय राज्य को अधिक कल्याणकारी बनाने की दिशा में कुछ निश्चित और अभूतपूर्व प्रस्ताव रख रहा है। जाति जनगणना कराकर शासन-प्रशासन में आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देना, आरक्षण के पचास फ़ीसदी की सीमा को ख़त्म करना, ख़ाली पड़े 30 लाख सरकारी पदों को 50 फ़ीसदी महिला आरक्षण के साथ भरना, अप्रेंटिस योजना के तहत हर युवा को एक लाख रुपये की सालाना की पहली नौकरी, महिला आरक्षण को तुरंत लागू करना और हर गरीब परिवार की एक महिला को एक लाख सालाना की मदद, मनरेगा की मज़दूरी चार सौ रुपये करना, किसानों को स्वामीनाथन कमेटी की सिफ़ारिश के हिसाब से एमएसपी देना, अग्निवीर योजना को रद्द करना, आदिवासियों के हक़ में वन अधिकार क़ानून लागू करना और 25 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा योजना के साथ-साथ नागरिक अधिकारों को बहाल करने के वादे एक नये भारत के संकल्प की ओर इशारा कर रहे हैं। इस घोषणापत्र में और भी बहुत सी बातें हैं जिन्हें जोड़कर देखा जाये तो समाज और देश के हर हिस्से के लिए उम्मीदों का नया दौर शुरू हो सकता है।
फिर पीएम मोदी ने इसमें मुस्लिम लीग की छाया कैसे देख ली? इस घोषणापत्र में न्याय के जिस दर्शन को आधार बनाया गया है, क्या मुस्लिम लीग से उसका कुछ लेना-देना रहा है? ज़ाहिर है, इसका जवाब नहीं में है। तो फिर मुस्लिम लीग का नाम क्यों लाया गया है? जवाब है प्रधानमंत्री मोदी का डर। वे इस घोषणापत्र की अपील को भाँप गये हैं और नहीं चाहते हैं कि इसकी बहुत चर्चा हो। इसलिए उन्होंने मुस्लिम लीग का जुमला उछाला है ताकि एक बड़ा वर्ग उसे बिना पढ़े-जाने ही ख़ारिज कर दे। यह इतिहास का एक कुटिल इस्तेमाल है ताकि वर्तमान की हक़ीक़त को धुँधला किया जा सके।
नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी चिंता ये है कि इस घोषणापत्र ने उनके दस साल के शासन की बखिया उधेड़ दी है।
जिस समय आईआईटी मुंबई के 36 फ़ीसदी और आईआईटी के 45 फ़ीसदी छात्रों को नौकरी नहीं मिल पाने की ख़बर आ रही है, उस समय विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी रोज़गार को लेकर जिस तरह के वादे कर रही है वह मोदी के अपने समर्थक वर्ग को बेचैन कर सकता है। जो मध्यवर्ग मोदी का बड़ा समर्थक माना जाता रहा है, उसे खींचने के लिए इस घोषणापत्र में कई चमकदार वादे हैं। ख़ासतौर पर सभी के लिए 25 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा। ये योजना राजस्थान की कांग्रेस सरकार लागू करके दिखा चुकी है। इलाज के बेहद महँगा होने के दौर में ये योजना उस बड़े वर्ग को अपनी ओर खींचने की क्षमता रखती है जो बीजेपी का वोटर माना जाता है। ऐसा ही मसला महिला आरक्षण का भी है। अग्निवीर योजना को ख़त्म करने की बेबाक़ घोषणा भी ग्रामीण भारत के युवाओं को आकर्षित कर सकती है।
यानी इस घोषणापत्र में न सिर्फ़ मोदी विरोधी बल्कि मोदी समर्थक वर्ग में उत्तेजना पैदा करने की क्षमता है। यही मोदी जी की सबसे बड़ी चिंता है। उनकी शैली बड़े-बडे़ सपने दिखाकर लोगों को वास्तविक मुद्दों से दूर ले जाने की रही है। भारत को विश्वगुरु बनाने, भारतीय पासपोर्ट की ताक़त बढ़ने, दुनिया में भारत की धाक जमने, या फिर ‘घुस के मारने’ जैसी बातें इसी का सबूत हैं। वे लगातार नई गारंटियों की बात करते हैं बिना इस बात की परवाह किये कि आख़िर उनकी पुरानी गारंटियों का क्या हुआ? वे नहीं चाहते कि इन मुद्दों पर जनता के बीच चर्चा हो। यहाँ तक कि चीन के भारतीय सीमा में घुस कर गाँव बसाने और हज़ारों किमी ज़मीन क़ब्ज़ा करने का उन्होंने संज्ञान भी नहीं लिया क्योंकि इससे उनकी ‘महाबली’ वाली छवि कमज़ोर पड़ती है। अरुणाचल प्रदेश के बीजेपी नेताओं से लेकर लद्दाख के सोनम वांग्चुक तक चीख-चीखकर बता रहे हैं कि चीन सीमा के अंदर घुस आया है लेकिन मोदी जी ऐसा जताते हैं मानो किसी दूसरे देश के बारे में बात हो रही है। कथित मुख्यधारा मीडिया को उन्होंने हर तरीक़े से जकड़ रखा है जो इस पर सवाल कर सकता था।
इसलिए कांग्रेस का यह घोषणापत्र मोदी जी को परेशान कर रहा है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि इस पर ज़्यादा चर्चा हुई तो माहौल बदलते देर नहीं लगेगी। कई अर्थशास्त्रियों ने स्पष्ट कहा है कि यह घोषणापत्र लागू हुआ तो आर्थिक गतिविधियों में काफ़ी तेज़ी आ जाएगी। ग़रीब तबके की क्रयशक्ति बढ़ेगी जिससे भारत की विकास दर डेढ़ प्रतिशत तक बढ़ सकती है। मोदी जी जानते हैं कि आज भी भारत में बीजेपी समर्थकों से ज़्यादा तादाद बीजेपी विरोधी मतदाताओं की है। विपक्ष का बिखरा होना बीजेपी को सत्ता में पहुँचा रहा है। ऐसे में अगर इस घोषणापत्र पर चर्चा हुई तो किसी भी पाले से अलग खड़े मतदाताओं पर ही नहीं, बीजेपी के समर्थक वर्ग पर भी प्रभाव पड़ेगा।
साफ़ है कि ‘मुस्लिम लीग’ वह पर्दा है जिसकी आड़ में वह कांग्रेस के घोषणापत्र की चमक को ढँकना चाहते हैं। यह अलग बात है कि इससे 2024 को लेकर उनका भय बेपर्दा हो गया है।